सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

महंगाई के दौर में सपने देखने का महत्व

इन दिनों मैं सुंदर-सुंदर सपने देख रहा हु। क्या करूँ, अ़ब दिन ही ऐसे आ गए है। बहुत सोचता हु की एक बार हिम्मत करके अपनी इच्छाएँ पूरी कर ही लूँ पर अफोर्ड नहीं कर पता। आखिर हैसियत भी तो होनी चाहिए। अ़ब तो दिन में किसी के सामने इच्छा प्रकट करने में डर लगने लगा है। सोचता हूँ कहीं सामने वाला यह न सोचने लग जाए की यह जरुर पागल हो गया है। सो सपने देख-देखकर काम चला रहा हु। अ़ब लाख सोचता हूँ कि सपने नहीं देखूं पर मन का क्या करूँ। मन पर कैसे काबू रखूं। उसने तो बहुत अच्छे-अच्छे दिन देखे है। पर अ़ब की बात अलग है। रात को बस ख्वाबों में उनके दीदार करता रहता हु। सुंदर-सुंदर सी गोल-मटोल... लाल-लाल खिला हुआ रंग.... आप चौंक गए न। आप भी बस... । आपकी सोच कभी सुंदर अभिनेत्रियों से आगे बढेगी ही नहीं। अरे भई, मैं तो अरहर की दाल और टमाटर की बात कर रहा हु। महंगाई के इस दौर में चिंतन-सुख पर निर्भरता बढ़ गई है।
सुबह उठता हु तो रसोई का ताला खोलकर काम शुरू करता हु। ताला! आप हंसो मत, आजकल महंगाई इतनी हो गई है की यह सब जरुरी हो गया है। आजकल किसी का भरोसा नहीं है। कमरों के ताले लगाने का अ़ब कोई फायदा नहीं है। टीवी, फ्रिज और इलेक्ट्रानिक्स आईटम आजकल कौन चोरी करता है। अगर कोई घर से घी, तेल, शक्कर, दालें या सेफ में रखे टमाटर ले जाए तो लेने के देने पर जाएँगे। रसोई के मामले में अभिनव प्रोयोग शुरू कर दी गए है। आलमारी से शक्कर निकालकर अनुमान से नहीं डाली जाती। अ़ब बाकायदा दानों की गिनती होती है। रोजाना रेट देखकर दानो की संख्या कम कर दी जाती है। चूँकि स्तर बनाए रखना जरुरी है, इसलिए दाल बनती जरुर है पर वह किसी रहस्य से कम नहीं होती। उसे परखने के लिए किसी बड़े रसोई विशेषज्ञ की जरुरत होती है क्योंकि उसमे दाल की कितनी कम मात्रा डाली गई है, यह कोई अनुभवी गोताखोर ही बता सकता है। सूखी सब्जी अ़ब इतिहास का विषय बनकर रह गई है। भगवन भला करे इन चिकित्सकों का, जिसकी वजह से अ़ब इज्जत बची रह जाती है। जब भी कोई मेहमान सब्जी या बिना चुपड़ी रोटी को देखकर नाक-भौं सिकोरता है, तो उसे स्वस्थ्य का हवाला दे दिया जाता है की रोगों से बचने के लिए डॉक्टर घी खाने से सख्त मन करता है। सो हमने तो लाना ही बंद कर रखा है। और सब्जियों में तो आजकल इतने केमिकल आने लगे है कि बस उन्हें खाते ही डर लगने लगा है। अ़ब चाय में कम शक्कर की तो पूछो ही मत। शुगर की प्रॉब्लम कोई छोटी-मोटी प्रॉब्लम थोड़े ही है। सब्जी में तेल डालकर मरना थोड़े ही है। हम तो बस अ़ब रामदेव महाराज की शरण में आ गए है। हमारे घर में तो सब बनना बंद हो गया है।
मिठाइयों की दुकान पर चढ़े अरसा हो गया। उनके दाम पढ़कर सिहरन सी होने लग जाती है। अ़ब तो कहीं शादी-ब्याह -पार्टी में जाते है तो जरा ज्यादा खा आते है। बाद में उन्हें ही याद करके जी बहलाते रहते है। और रही बात घुमने की तो अ़ब घर से बहार कहाँ निकलते है। कहीं भी जाओ पेट्रोल का खर्चा देखकर जान निकल जाती है। अ़ब हमारी किस्मत ऐसी कहाँ की घुमे हम और खर्चा सरकार वहन करे। सरकारी गाड़ी हमारे भाग्य में कहाँ। पर्यटन की तो सोचो ही मत। आजकल तो टीवी पर देखकर ही देश-विदेश घूम लेते है। बाकी ..... और अ़ब करें क्या। सो सुंदर-सुंदर सपने देख लेते है। सपनों में ही अच्छा खा लेते है, अच्छा पी लेते है और घूम लेते है। हाँ, सपनों में बिल्कुल कंजूसी नहीं करते। अच्छे-अच्छे सपने देख रहे है। खूब सलाद खा रहे है, बढ़िया सब्जी बनवा लेते है, रोटी बिना देसी घी के नहीं खाते और तो और दो-दो कटोरी दालें पी जाते है। खाने के बाद मीठा खाना कभी नहीं भूलते। क्या करें, पुरानी आदत है, छूटे नहीं छूटती।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

जीने का अंदाज....एक बार ऐसा भी करके देखिए...

जीवन को यदि गरिमा से जीना है तो मृत्यु से परिचय होना आवश्यक है। मौत के नाम पर भय न खाएं बल्कि उसके बोध को पकड़ें। एक प्रयोग करें। बात थोड़ी अजीब लगेगी लेकिन किसी दिन सुबह से तय कर लीजिए कि आज का दिन जीवन का अंतिम दिन है, ऐसा सोचनाभर है। अपने मन में इस भाव को दृढ़ कर लें कि यदि आज आपका अंतिम दिन हो तो आप क्या करेंगे। बस, मन में यह विचार करिए कि कल का सवेरा नहीं देख सकेंगे, तब क्या करना...? इसलिए आज सबके प्रति अतिरिक्त विनम्र हो जाएं। आज लुट जाएं सबके लिए। प्रेम की बारिश कर दें दूसरों पर। विचार करते रहें यह जीवन हमने अचानक पाया था। परमात्मा ने पैदा कर दिया, हम हो गए, इसमें हमारा कुछ भी नहीं था। जैसे जन्म घटा है उसकी मर्जी से, वैसे ही मृत्यु भी घटेगी उसकी मर्जी से। अचानक एक दिन वह उठाकर ले जाएगा, हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। हमारा सारा खेल इन दोनों के बीच है। सच तो यह है कि हम ही मान रहे हैं कि इस बीच की अवस्था में हम बहुत कुछ कर लेंगे। ध्यान दीजिए जन्म और मृत्यु के बीच जो घट रहा है वह सब भी अचानक उतना ही तय और उतना ही उस परमात्मा के हाथ में है जैसे हमारा पैदा होना और हमारा मर जाना। इसलिए आज...

प्रसन्नता से ईश्वर की प्राप्ति होती है

दो संयासी थे एक वृद्ध और एक युवा। दोनों साथ रहते थे। एक दिन महिनों बाद वे अपने मूल स्थान पर पहुंचे, जो एक साधारण सी झोपड़ी थी। जब दोनों झोपड़ी में पहुंचे। तो देखा कि वह छप्पर भी आंधी और हवा ने उड़ाकर न जाने कहां पटक दिया। यह देख युवा संयासी बड़बड़ाने लगा- अब हम प्रभु पर क्या विश्वास करें? जो लोग सदैव छल-फरेब में लगे रहते हैं, उनके मकान सुरक्षित रहते हैं। एक हम हैं कि रात-दिन प्रभु के नाम की माला जपते हैं और उसने हमारा छप्पर ही उड़ा दिया। वृद्ध संयासी ने कहा- दुखी क्यों हो रहे हों? छप्पर उड़ जाने पर भी आधी झोपड़ी पर तो छत है ही। भगवान को धन्यवाद दो कि उसने आधी झोपड़ी को ढंक रखा है। आंधी इसे भी नष्ट कर सकती थी किंतु भगवान ने हमारी भक्ति-भाव के कारण ही आधा भाग बचा लिया। युवा संयासी वृद्ध संयासी की बात नहीं समझ सका। वृद्ध संयासी तो लेटते ही निंद्रामग्न हो गया किंतु युवा संयासी को नींद नहीं आई। सुबह हो गई और वृद्ध संयासी जाग उठा। उसने प्रभु को नमस्कार करते हुए कहा- वाह प्रभु, आज खुले आकाश के नीचे सुखद नींद आई। काश यह छप्पर बहुत पहले ही उड़ गया होता। यह सुनकर युवा संयासी झुंझला कर बोला- एक त...