महावीर ने पहला अन्तर-तप कहा है प्रायश्चित। शब्दकोशों में प्रायश्चित का अर्थ है पश्चाताप रिपेटेंस। लेकिन प्रायश्चित का अर्थ पश्चाताप नहीं है। पश्चाताप और प्रायश्चित में इतना अन्तर है जितना जमीं और आसमान में।
पश्चाताप का अर्थ है जो आपने किया है उसके लिए पछतावा; लेकिन जो आप है उसके लिए पछतावा नहीं। आपने चोरी की है तो आप पछता लेते है चोरी के लिए। आपने हिंसा की है तो आप पछता लेते है हिंसा के लिए। आपने बेईमानी की है तो पछता लेते है बैमानी के लिए। आप अपने लिए नहीं पछताते, आप तो ठीक ही है। आप ठीक आदमी से एक छोटी सी भूल हो गई थी कर्म में, उसे आपने पश्चाताप करके पोछ दिया।
इसलिए पश्चाताप अंहकार को बचाने की प्रक्रिया है। क्योंकि अगर आपके पास बहुत साड़ी भूले इक्कठी हो जाए तो आपके अंहकार को चोट लगनी शुरू होगी। मैं बुरा आदमी हु की मैंने गाली दी। मैं बुरा आदमी हु की मैंने क्रोध किया। आप है बहुत अच्छे आदमी, गाली आप दे नहीं सकते है, किसी परिस्थिति में निकल गई होगी। इसलिए आप पछता लेते है और फ़िर से अच्छे आदमी हो जाते है। पश्चाताप आपको बदलता नहीं, जो आप है वही बनाये रखने की व्यवस्था है। इसलिए रोज आप पश्चाताप करेंगे और रोज आप पाएंगे की आप वही कर रहे है जिसके लिए कल पछताए थे। पश्चाताप आपके बीइंग, आपकी अंतरात्मा में कोई अन्तर नहीं लाता, सिर्फ़ आपके कृत्यों में कहीं भूल थी, और वह भूल इसलिए मालूम पारतीहै की उससे आप अपनी इमेज को, अपनी प्रतिमा को जो आपने समझ राक्ही है, बनाने में असमर्थ हो जाते है।
महावीर के पास कोई साधक आता था तो वे उसे पिछले जन्म के स्मरण में ले जाते थे, सिर्फ़ इसलिए, ताकि वह देख ले की कितनी बार यही सब दोहरा चुका है और यह कहना बंद कर दे की यह मेरे कर्म की भूल है और यह जान ले की भूल मेरी है। पश्चताप, कर्म ग़लत हुआ, इससे सम्बंधित है। प्रायश्चित, मैं ग़लत हु, इस बोध से सम्बंधित है। और ये दोनों बाते बहुत भिन्न है। पश्चताप करने वाला वहीँ का वहीँ बना रहता है और प्रायश्चित करने वाले को अपनी जीवन चेतना रूपांतरित कर देनी होती है। सवाल यह नहीं है की मैंने क्रोध किया तो मैं पछता लू। सवाल यह है की मुझसे क्रोध सो सका तो मैं दूसरा आदमी हो जाऊ, ऐसा आदमी जिससे क्रोध न हो सके, प्रायश्चित का यह अर्थ है ट्रांस्फोर्मेशन ऑफ़ दी लेवल ऑफ़ बीइंग। यह सवाल नहीं हे की मैंने कल क्रोध किया था, आज मैं नहीं करूँगा। सवाल यह है कल मुझसे क्रोध हुआ था, मैं कल के ही जीवन तल पर आज हु। वही चेतना मेरी आज है। पश्चाताप करनेवाला कल के लिए क्षमा मांग लेगा। हर वर्ष हम मांगते है क्षमा। पिछले वर्ष माँगा था, उसके पहले क्षमा मांगी थी। कब वह दिन आएगा जब की क्षमा मांगने का अवसर ही न रह जाए। अभी तो क्षमा मांगते भी है और यह भी जानते है भलीभांति की जहाँ से क्षमा मांगी जा रही है वहां कोई रुपातरण नहीं हुआ है। वह आदमी आज भी वैसा ही है, जैसा पिछले वर्ष था।
प्रायश्चित का अर्थ है मृत्यु उस आदमी की जो भूल कर रहा था, उस चेतना की जिससे भूल हो रही थी। पश्चताप का अर्थ है उस चेतना का पुनजीवन जिससे भूल हो रही थी। फ़िर से रास्ता साफ करना, फ़िर से पुनः वही पहुँच जा जहाँ हम खरे थे और जहाँ से भूल होती थी। ध्यान रहे, लोग इसलिए क्षमा नहीं मांगते की वे समझ गए है की उनसे अपराध हो गया। वे इसलिए क्षमा मांगते है की यह अपराध उनकी प्रतिमा को खंडित करता है। वे इसलिए क्षमा नहीं मांगते की आपको चोट पहुँची है, क्योंकि वे कल फ़िर से चोट पहुँचाना जारी रखते है। वे इसलिए क्षमा मांगते है की अपराध के भाव से उनकी महानता को चोट पहुँची है। वे उसे सुधार लेते है। हम सबका एक सेल्फ इमेज है। सच नहीं है वह जरा, लेकिन वहीँ हमारा असली है।
पश्चाताप का अर्थ है जो आपने किया है उसके लिए पछतावा; लेकिन जो आप है उसके लिए पछतावा नहीं। आपने चोरी की है तो आप पछता लेते है चोरी के लिए। आपने हिंसा की है तो आप पछता लेते है हिंसा के लिए। आपने बेईमानी की है तो पछता लेते है बैमानी के लिए। आप अपने लिए नहीं पछताते, आप तो ठीक ही है। आप ठीक आदमी से एक छोटी सी भूल हो गई थी कर्म में, उसे आपने पश्चाताप करके पोछ दिया।
इसलिए पश्चाताप अंहकार को बचाने की प्रक्रिया है। क्योंकि अगर आपके पास बहुत साड़ी भूले इक्कठी हो जाए तो आपके अंहकार को चोट लगनी शुरू होगी। मैं बुरा आदमी हु की मैंने गाली दी। मैं बुरा आदमी हु की मैंने क्रोध किया। आप है बहुत अच्छे आदमी, गाली आप दे नहीं सकते है, किसी परिस्थिति में निकल गई होगी। इसलिए आप पछता लेते है और फ़िर से अच्छे आदमी हो जाते है। पश्चाताप आपको बदलता नहीं, जो आप है वही बनाये रखने की व्यवस्था है। इसलिए रोज आप पश्चाताप करेंगे और रोज आप पाएंगे की आप वही कर रहे है जिसके लिए कल पछताए थे। पश्चाताप आपके बीइंग, आपकी अंतरात्मा में कोई अन्तर नहीं लाता, सिर्फ़ आपके कृत्यों में कहीं भूल थी, और वह भूल इसलिए मालूम पारतीहै की उससे आप अपनी इमेज को, अपनी प्रतिमा को जो आपने समझ राक्ही है, बनाने में असमर्थ हो जाते है।
महावीर के पास कोई साधक आता था तो वे उसे पिछले जन्म के स्मरण में ले जाते थे, सिर्फ़ इसलिए, ताकि वह देख ले की कितनी बार यही सब दोहरा चुका है और यह कहना बंद कर दे की यह मेरे कर्म की भूल है और यह जान ले की भूल मेरी है। पश्चताप, कर्म ग़लत हुआ, इससे सम्बंधित है। प्रायश्चित, मैं ग़लत हु, इस बोध से सम्बंधित है। और ये दोनों बाते बहुत भिन्न है। पश्चताप करने वाला वहीँ का वहीँ बना रहता है और प्रायश्चित करने वाले को अपनी जीवन चेतना रूपांतरित कर देनी होती है। सवाल यह नहीं है की मैंने क्रोध किया तो मैं पछता लू। सवाल यह है की मुझसे क्रोध सो सका तो मैं दूसरा आदमी हो जाऊ, ऐसा आदमी जिससे क्रोध न हो सके, प्रायश्चित का यह अर्थ है ट्रांस्फोर्मेशन ऑफ़ दी लेवल ऑफ़ बीइंग। यह सवाल नहीं हे की मैंने कल क्रोध किया था, आज मैं नहीं करूँगा। सवाल यह है कल मुझसे क्रोध हुआ था, मैं कल के ही जीवन तल पर आज हु। वही चेतना मेरी आज है। पश्चाताप करनेवाला कल के लिए क्षमा मांग लेगा। हर वर्ष हम मांगते है क्षमा। पिछले वर्ष माँगा था, उसके पहले क्षमा मांगी थी। कब वह दिन आएगा जब की क्षमा मांगने का अवसर ही न रह जाए। अभी तो क्षमा मांगते भी है और यह भी जानते है भलीभांति की जहाँ से क्षमा मांगी जा रही है वहां कोई रुपातरण नहीं हुआ है। वह आदमी आज भी वैसा ही है, जैसा पिछले वर्ष था।
प्रायश्चित का अर्थ है मृत्यु उस आदमी की जो भूल कर रहा था, उस चेतना की जिससे भूल हो रही थी। पश्चताप का अर्थ है उस चेतना का पुनजीवन जिससे भूल हो रही थी। फ़िर से रास्ता साफ करना, फ़िर से पुनः वही पहुँच जा जहाँ हम खरे थे और जहाँ से भूल होती थी। ध्यान रहे, लोग इसलिए क्षमा नहीं मांगते की वे समझ गए है की उनसे अपराध हो गया। वे इसलिए क्षमा मांगते है की यह अपराध उनकी प्रतिमा को खंडित करता है। वे इसलिए क्षमा नहीं मांगते की आपको चोट पहुँची है, क्योंकि वे कल फ़िर से चोट पहुँचाना जारी रखते है। वे इसलिए क्षमा मांगते है की अपराध के भाव से उनकी महानता को चोट पहुँची है। वे उसे सुधार लेते है। हम सबका एक सेल्फ इमेज है। सच नहीं है वह जरा, लेकिन वहीँ हमारा असली है।
टिप्पणियाँ
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......