सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान



आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है।

एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर देता हूं और फिर जो भी बनता है वह आप सब को अलौकिक लगता है।
इसी प्रकार अगर हम अपने जीवन में अहम को मार दें तो जीवन जीने में और ज्यादा आनंद आता है।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............

jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वो कागज़ की कश्ती

ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती , वो बारिश का पानी   स्वर्गीय श्री सुदर्शन फाकिर साहब की लिखी इस गजल ने बहुत प्रसिद्धि पाई,हर व्यक्ति चाहे वह गाता हो या न गाता हो, इस ग़ज़ल को उसने जरुर गुनगुनाया,मन ही मन इन पंक्तियों को कई बार दोहराया. जानते हैं क्यु?क्युकी यह ग़ज़ल जितनी सुंदर गई गई हैं,सुरों से सजाई गाई गई हैं,उससे भी अधिक सुंदर इसे लिखा गया हैं, इसके एक एक शब्द में हर दिल में बसने वाली न जाने कितनी ही बातो ,इच्छाओ को कहा गया हैं।   हम में से शायद ही कोई होगा जिसे यह ग़ज़ल पसंद नही आई इसकी पंक्तिया सुनकर उनके साथ गाने और फ़िर कही खो जाने का मन नही हुआ होगा,या वह बचपनs की यादो में खोया नही होगा। बचपन!मनुष्य जीवन की सर्वाधिक सुंदर,कालावधि.बचपन कितना निश्छल जैसे किसी सरिता का दर्पण जैसा साफ पानी,कितना निस्वार्थ जैसे वृक्षो,पुष्पों,और तारों का निस्वार्थ भाव समाया हो, बचपन इतना अधिक निष्पाप,कि इस निष्पापता की कोई तुलना कोई समानता कहने के लिए, मेरे पास शब्द ही नही हैं।

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं

मनचाही मंजिल उन्हें ही मिलती है जो...

बड़े खुशनसीब होते हैं वे जिनका सपना पूरा हो जाता है। वरना तो ज्यादातर लोगों को यही कह कर अपने मन को समझाना होता है कि- किसी को मुकम्मिल जंहा नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आंसमा नहीं मिलता। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। मंजिल के मिलने के पीछे लक का हाथ तो होता है, पर एक सीमा तक ही, वरना चाह और कोशिश अगर सच्ची हो तो कायनात भी साथ देती है। अगर आपको जीवन में सफल बनना है तो अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहना जरूरी है। आपकी पूरी नजर आपके लक्ष्य पर होनी चाहिए। तभी आपकी सफलता निश्चित हाती है। आइये चलते हैं एक वाकये की ओर... एक मोबाइल कम्पनी में इन्टरव्यू के लिए के लिए कुछ लोग बैठै थे सभी एक दूसरे के साथ चर्चाओं में मशगूल थे तभी माइक पर एक खट खट की आवाज आई। किसी ने उस आवाज पर ध्यान नहीं दिया और अपनी बातों में उसी तरह मगन रहे। उसी जगह भीड़ से अलग एक युवक भी बैठा था। आवाज को सुनकर वह उठा और अन्दर केबिन में चला गया। थोड़ी देर बाद वह युवक मुस्कुराता हुआ बाहर निकला सभी उसे देखकर हैरान हुए तब उसने सबको अपना नियुक्ति पत्र दिखाया । यह देख सभी को गुस्सा आया और एक आदमी उस युवक से बोला कि हम सब तुमसे पहले यहां