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जीना है बेफि़क्र जिंदगी तो अपना लें यह सीख

इंसान जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं को बंटोर लें, किंतु स्वभाव की एक खामी दूर न करे तो उससे मिले कलह और अशांत महौल से जीवन कभी भी सुकून से नहीं बीतेगा। यह खामी या दोष है- क्रोध। धर्मशास्त्रों में क्रोध यानी गुस्सा जीवन के लिये बाधक बताया गया है। जिस पर काबू करने के लिये क्रोध से दूरी ही बेहतर उपाय माना गया है। शास्त्रों में लिखा है कि अक्रोधेन जयेत क्रोध यानी गुस्सा न करना ही क्रोध पर विजय का सूत्र है। इससे जुड़ा जैन शास्त्रों का ही एक प्रसंग क्रोध पर काबू रख सफलता के गुर भी सिखाता है - कथा के मुताबिक राजकुमार बलदेव, वासुदेव व सात्यकि वन में भटक गए। रात बिताने के लिए तीनों ने बारी-बारी से पहरा देने का फैसला किया। सबसे पहले जब सात्यकि पहरा देने शुरु किया तो वहां एक दैत्य प्रकट हो गया। सात्यकि ने आवेश में आकर उसे चले जाने की चेतावनी दी, किंतु उस दैत्य का आकार और शक्ति सात्यकि के ऐसे बोल, व्यवहार से और बढ़ गए। तब उस दैत्य ने सात्यकि पर हमला कर घायल कर दिया। इसी तरह सात्यकि के बाद वासुदेव के पहरा देने पर वह दैत्य फिर से प्रकट हुआ। वासुदेव के भी सात्यकि की तरह दैत्य को देखकर तमतमाने से दैत्य