जीवन को यदि गरिमा से जीना है तो मृत्यु से परिचय होना आवश्यक है। मौत के नाम पर भय न खाएं बल्कि उसके बोध को पकड़ें। एक प्रयोग करें। बात थोड़ी अजीब लगेगी लेकिन किसी दिन सुबह से तय कर लीजिए कि आज का दिन जीवन का अंतिम दिन है, ऐसा सोचनाभर है।
अपने मन में इस भाव को दृढ़ कर लें कि यदि आज आपका अंतिम दिन हो तो आप क्या करेंगे। बस, मन में यह विचार करिए कि कल का सवेरा नहीं देख सकेंगे, तब क्या करना...? इसलिए आज सबके प्रति अतिरिक्त विनम्र हो जाएं। आज लुट जाएं सबके लिए। प्रेम की बारिश कर दें दूसरों पर। विचार करते रहें यह जीवन हमने अचानक पाया था। परमात्मा ने पैदा कर दिया, हम हो गए, इसमें हमारा कुछ भी नहीं था।
जैसे जन्म घटा है उसकी मर्जी से, वैसे ही मृत्यु भी घटेगी उसकी मर्जी से। अचानक एक दिन वह उठाकर ले जाएगा, हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। हमारा सारा खेल इन दोनों के बीच है। सच तो यह है कि हम ही मान रहे हैं कि इस बीच की अवस्था में हम बहुत कुछ कर लेंगे। ध्यान दीजिए जन्म और मृत्यु के बीच जो घट रहा है वह सब भी अचानक उतना ही तय और उतना ही उस परमात्मा के हाथ में है जैसे हमारा पैदा होना और हमारा मर जाना। इसलिए आज ऐसा महसूस करें आज आखिरी दिन है। कल रहें न रहें तो क्यों न आज जिएं। प्रेम से जिएं उस परमात्मा की मर्जी से जिएं।
हमारे कई संत-महात्मा अपने जीवन के हर दिन को मौत की मस्ती के साथ जीते थे। क्योंकि इन लोगों का मानना था कि जन्म परमपिता परमेश्वर ने दिया है तो समापन भी वे ही करेंगे और उनका यही बोध कि आज का दिन अंतिम हो सकता है, उनको अमर बना गया।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......