सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

थैंक्स गाड, अ़ब सिर्फ़ लीला है.

भला हुआ, अ़ब सिर्फ़ रामलीला होती है, सच में वह सब नहीं है, जो सतयुग में हो चुका है। वरना बड़ी आफत हो जाती। रावण को मारने में ज्यादा कष्ट नहीं होता, दस नाकों का मालिक रावण आखिर कितनी नाकों में मास्क बाँधता, स्वाईन फ्लू से निपट लेता। लंका में विद्रोह होजाता, अरहर ने भाव नब्बे रूपये से ऊपर जाने पर। लंका की पब्लिक ही रावण को निपटा लेती। मंदोदरी रावण से कहती हुई पाई जाती - हे दशानन! आपके दस मुखों के लिए दाल के जुगाड़मेंट में लंका का खजाना खाली हो लिया है। दस मुखों के लिए टमाटर लाने के लिए और लोन नहीं मिल सकता, क्योंकि जिन सोने की इमारतों को आपने बनवाया था, उनकी ईएमआई चुकाने तक के लिए कुछ नहीं बचा है।
रावण को ईएमआई वाले ही निपटा लेते। मौत से बचना आसन है, पर ईएमआई वसूलने वालों से बचना मुश्किल है। कर्ज ना चुकाने की वजह से ईएमआई वालों के हाथों पिट रहा होता रावण। ईएमआई वालों और रावण के संवाद कुछ यूँ होते -
लंका जल गई है, वे सारी बिल्डिंगे जल गई है, जो हमने फाइनेंस की थी - ईएमआई वाले कहते।
जी, इसमे मैं क्या कर सकता हु। आप अ़ब बदतमीजी से बात कर रहे है, लोन देते समय तो आप निहायत ही शराफत का बर्ताव कर रहे थे - रावण गुहार लगाता।
जी, लोन देने के लिए शिष्टाचार विभाग के लोग आते है, पर वसूलने के लिए ठुकाई विभाग को लगाया जाता है- ईएमआई वाले कहते। मैं अपने राक्षसगणों को बुलाकर तुम्हे सबक सिखवाता हूँ - रावण कहता।
आपके सरे राक्षस हमारे वसूली एजेंट है। हमारे लिए काम करते है - ईएमआई वाले बताते।
रावण को समझ में आ जाता की उसके राक्षस वसूली एजेंट हो लिए है और ईएमआई वालों के साथ है।
अ़ब का सा टाइम होता तो जाम्बंत के लिए बहुत दिक्कतें हो जाती। जाम्बंत अपने जूनियरों से कहते - हे वत्स! युध्ध कॉमनवेल्थ गेम्स की तरह सिर पर आ खड़ा है, पर सेतु का निर्माण नहीं दीखता। ऑफिसर वही समझाते की चिंता न करे, टाइम पर हो जाएगा। कॉमनवेल्थ अफसरों के हाथ में रामसेतु होता, तो फ़िर रामसेतु अ़ब तक बन ही रहा होता। आश्वासनों के खम्बों पर उम्मीदों का पुल बन रहा होता।
आइए, रामलीला देखते हुए ऊपर वाले को धन्यवाद दे कि अ़ब सिर्फ़ रामलीला हो रही है। वरना जाम्बंत आफत में पड़ जाते।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

जीने का अंदाज....एक बार ऐसा भी करके देखिए...

जीवन को यदि गरिमा से जीना है तो मृत्यु से परिचय होना आवश्यक है। मौत के नाम पर भय न खाएं बल्कि उसके बोध को पकड़ें। एक प्रयोग करें। बात थोड़ी अजीब लगेगी लेकिन किसी दिन सुबह से तय कर लीजिए कि आज का दिन जीवन का अंतिम दिन है, ऐसा सोचनाभर है। अपने मन में इस भाव को दृढ़ कर लें कि यदि आज आपका अंतिम दिन हो तो आप क्या करेंगे। बस, मन में यह विचार करिए कि कल का सवेरा नहीं देख सकेंगे, तब क्या करना...? इसलिए आज सबके प्रति अतिरिक्त विनम्र हो जाएं। आज लुट जाएं सबके लिए। प्रेम की बारिश कर दें दूसरों पर। विचार करते रहें यह जीवन हमने अचानक पाया था। परमात्मा ने पैदा कर दिया, हम हो गए, इसमें हमारा कुछ भी नहीं था। जैसे जन्म घटा है उसकी मर्जी से, वैसे ही मृत्यु भी घटेगी उसकी मर्जी से। अचानक एक दिन वह उठाकर ले जाएगा, हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। हमारा सारा खेल इन दोनों के बीच है। सच तो यह है कि हम ही मान रहे हैं कि इस बीच की अवस्था में हम बहुत कुछ कर लेंगे। ध्यान दीजिए जन्म और मृत्यु के बीच जो घट रहा है वह सब भी अचानक उतना ही तय और उतना ही उस परमात्मा के हाथ में है जैसे हमारा पैदा होना और हमारा मर जाना। इसलिए आज...

प्रसन्नता से ईश्वर की प्राप्ति होती है

दो संयासी थे एक वृद्ध और एक युवा। दोनों साथ रहते थे। एक दिन महिनों बाद वे अपने मूल स्थान पर पहुंचे, जो एक साधारण सी झोपड़ी थी। जब दोनों झोपड़ी में पहुंचे। तो देखा कि वह छप्पर भी आंधी और हवा ने उड़ाकर न जाने कहां पटक दिया। यह देख युवा संयासी बड़बड़ाने लगा- अब हम प्रभु पर क्या विश्वास करें? जो लोग सदैव छल-फरेब में लगे रहते हैं, उनके मकान सुरक्षित रहते हैं। एक हम हैं कि रात-दिन प्रभु के नाम की माला जपते हैं और उसने हमारा छप्पर ही उड़ा दिया। वृद्ध संयासी ने कहा- दुखी क्यों हो रहे हों? छप्पर उड़ जाने पर भी आधी झोपड़ी पर तो छत है ही। भगवान को धन्यवाद दो कि उसने आधी झोपड़ी को ढंक रखा है। आंधी इसे भी नष्ट कर सकती थी किंतु भगवान ने हमारी भक्ति-भाव के कारण ही आधा भाग बचा लिया। युवा संयासी वृद्ध संयासी की बात नहीं समझ सका। वृद्ध संयासी तो लेटते ही निंद्रामग्न हो गया किंतु युवा संयासी को नींद नहीं आई। सुबह हो गई और वृद्ध संयासी जाग उठा। उसने प्रभु को नमस्कार करते हुए कहा- वाह प्रभु, आज खुले आकाश के नीचे सुखद नींद आई। काश यह छप्पर बहुत पहले ही उड़ गया होता। यह सुनकर युवा संयासी झुंझला कर बोला- एक त...