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चुस्त पिता का पत्र सुस्त पुत्र के नाम

मेरे बेटे जब भी मैं औरों के सुपुत्रों को देखता हु, मुझे दिली कोफ्त होती है। वो अपने मम्मीज-डैडीज का नाम रोशन कर रहे है। और एक तो, मेरी औलाद है कि हमेशा अपना थोबडा लटकाए मिलता है। जब देखो, तब घर में ही पड़ा होता है। चेहरे पर फेसियल क्रीम, स्नो या लोशन की जगह उदासी पोते रहता है। मेरे बच्चे, मैं तो उस घड़ी को कोसता हूँ, जब तू इस घर पर टपका था। बड़ी ही मनहूस घड़ी थी वह, जब मेरे को चेहरे पर हमेशा ही बारह बजने वाली औलाद नसीब हुई। कितनी भी चाभी भर लो, तू चलने-फिरने का नाम ही नहीं लेता। लगता है अन्दर के सारे स्प्रिंग्स ढीले है। मेरी मान, यह लुन्ज्पुन्ज्पन छोड़। अपने में स्मार्टनेस ला।
पडोसियों के जवान छोरे न जाने किस-किस तरह से चर्चाओं में आते जा रहे है। और एक तु है की स्कूली किताबों से जिल्द की तरह चिपका रहता है। पास तो लीक हुए एक्जाम पपेर्स के सहारे भी हुआ जा सकता है। अमां, क्या करेगा फालतू फंड की म्हणत करके। इतना पढ़-लिख कर? चलो, मन, किताबें चाट-चाट कर तु इम्तिहान में अव्वल आ लेगा। लेकिन इस किताबी इल्म के बाद नौकरी कहाँ धरी है? आजकल तो नौकरियां सिफारिशों से भी नहीं मिलती। साडी गलियां नगद नारायण चौराहे की तरफ़ खुलती है। यूँ भी मंदी के इस बुरे दौर में प्लेसमेंट की उम्मीद करना पाप है। क्या तुने किसी गरीब को चुनाव जीतते देखा है? तु अपनी कुछ एक बुक्स दीमकों के लिए भी छोड़। मैं तुझे महान बनाना चाहता हु। शाम के वक्त घर से थोड़ा बहार भी निकलना सीख। यह स्वस्थ्य और जीविका दोनों के लिए जरुरी है। क्या तुझे शहरों की हसीन सड़के अपनी ओर नहीं खिचती?
यह कुछ कर गुजरने की उम्र है। डांस सीख। म्यूजिक सुन। सिक्स-पैक एब्स बना। चैटिंग कर। ईडी-सीडी देख मेरे लखते जिगर। निहारता चल की दुनिया कितनी हसीन है। वह औलाद ही क्या, जो पिता के पदचिन्हों पर लात रखकर न चले। अगर तु मेरे शतांश लक्षण भी अपना ले, तो मैं पुरे मोहल्ले में सिर उठाकर चलने के काबिल बन जाऊंगा। कुछ तो कर मेरे लघु उत्पाद। तेरा मामा हाल-फिलहाल ही इलाके का थानेदार बना है। यह सुंदर मौका लौट कर नहीं आएगा।
तु इतना शर्मीला क्यों है मेरे बच्चे? न तु पान खता है, न ही पान मसाला। दारू से दुरी रखता है। तुझे तो सिगरेट-तम्बाकू के हिज्जे तक नहीं पता। आज के दौर में तु खाक तरक्की करेगा? अगर अपनी सम्पूर्ण नौजवान पीढी तेरे जैसी हो जाए, तो टेलिविज़न चैनल्स के विज्ञापन बंद हो लेंगे। मॉल में धोतियों-लुंगियों की सेल लगेगी। सौन्दर्य प्रसाधन भैसे लगायेगी। ब्यूटी पार्लरों में बकरिया बढेगी। जिम में बैल मसल्स बनायेंगे। बता, तु नव संस्कृति के खुलेपन को बाजार में आने से रोकने के वास्ते जन्मा है क्या?
मुझे तो तेरी यह जिन्दगी अकारथ लगती है। वाह री औलाद। मैं तेरे से कितनी साडी उम्मीदें लगाये बैठा हु। मगर आज तक तुने किसी पर हाथ तक नहीं उठाया। यहाँ तो मरियल से मरियल चोर तक अपनी जेब में कट्टा डालकर घूमता है। तु सब्जी काटने वाले चाकू तक को छूने से घबराता है।
हे इस देश के नौनिहाल, तु इस देश का भविष्य हे। तुझे तो भागते भुत की लंगोटी उतरवाने की कला आनी चाहिए. तु भारत का कर्णधार हे। इसलिए रोज दस-बीस के कान उमेठना तेरी नैतिक जिम्मेदारी हे। विद्यालय के किसी टीचर, प्रिंसिपल या किसी कन्या के अभिभावक ने कभी तेरी कोई शिकायत तक नहीं भेजी। तु भले से भी रस्टीकेट नहीं हुआ। अ़ब तो मुझे संदेह होने लगा हे की तु कॉलेज जाता भी है या नहीं! मेरे लाडले, उठ, जग। तमाम नेताओं ओर अफसरों के लड़के अपने कृत्यों से अमर हो गए। तु कब सुधरेगा? लगता है, तेरे सारे काम भी मुझे ही करने पड़ेंगे।
इस देश का भविष्य तुझे ही संवारना है। मेरे आशीर्वाद सदैव तेरे साथ है। बाद में यह न कहना की पापा ने तुझे आदमी नहीं बनने दिया।

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