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दिसंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो और एक नजर

आते-जाते रास्तों पर मिलते थे वो मिलना भी क्या नजरों से मिलती थी नजर बस यूं ही सिलसिला चलता रहा एक दिन नहीं, दो दिन नहीं सालों- सालों तक ऐसा ही चला उनका आना, नजरे झुका कर जाना ऐसे ही एक दिन मिले वो उन्होंने हिला दिए लब अपने और मुझे लगा उन्होंने कुछ कहा उनका कुछ कहना या न कहना मेरा कुछ समझना या न समझना उनके आने से पहले ही मेरा वहां पहुंचना होने लगा मेरे लिए जरूरी एक नजर भर देखने के लिए चौबीस घंटे का इंतजार खलने लगा एक नजर के चक्कर में छूट गया सब कुछ दिन-रात बैचेनी होती थी इस बैचेनी में न मिली कामयाबी हुआ यूं कि न मैंने उन्हें कुछ कहा न उन्होंने कुछ कहा मुझे बस यूं ही अनजाने में समय गुजर गया अपना अब क्या न वो मिलते है रास्ते में न ही इच्छा होती कुछ करने की बस यूं ही चल रहा हूं जीवन पथ पर

फैशन बनता बलात्कार ,(सो गई है आत्मा )

आज सर्वाधिक  प्रचलित शब्द है,माडर्न  होना या आधुनिक जीवन जीना..बच्चे ,बूढ़े,युवा,स्त्री -पुरुष सब एक ही दिशा में दौड़ लगते नज़र आते हैं, ऐसा लगता है कि उनको एक ही भय है, कि कहीं हम  इस रेस में पिछड  न जाएँ.यही कारण है,हमारा रहन-सहन,वेशभूषा ,वार्तालाप का ढंग सब बदल रहा है.ग्रामीण जीवन व्यतीत करने वाले भी किसी भी शहरी के समक्ष स्वयं को अपना पुरातन चोला उतारते नज़र आते हैं.ऐसा लगता है कि अपने पुराने परिवेश में रहना कोई अपराध है. समय के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है,बदलते परिवेश में समय के साथ चलना अनिवार्यता है.भूमंडलीकरण के इस युग में जब “कर लो दुनिया मुट्ठी में “का उद्घोष सुनायी देता है,तो हम स्वयं को किसी शिखर पर खड़ा पाते हैं. आज मध्यमवर्गीय भारतवासी भी फोन ,इन्टरनेट,आधुनिक वस्त्र-विन्यास ,खान-पान ,जीवन शैली को अपना रहा है. वह नयी पीढ़ी के क़दमों के साथ कदम मिलाना चाहता है.आज बच्चों को भूख लगने पर  रोटी का समोसा बनाकर,या माखन पराठा  नहीं दिया जाता,डबलरोटी,पिज्जा,बर्गर ,कोल्ड ड्रिंक दिया जाता है,गन्ने का रस,दही की लस्सी का नाम

“हादसा एक दम नहीं होता, वक़्त करता है परवरिश बरसों”

फेसबुक और सोशल मिडिया पर बलात्कार के विरोध में उठती आवाजे यह बताती हैं कि पूरा समाज बलात्कार जैसे अनैतिक कृत्य के बहुत खिलाफ हैं,पर आखिर एक आदमी में बलात्कारी जैसा हिंसक पशु कहा से जन्म लेता हैं ? आज जो मिडिया बलात्कारों/यौन अपराधों/छेड़खानी को इतने ज्यादा कवरिंग के साथ एक एक सबूत के साथ पड़ोस रहा हैं ,उसका हमारे उपर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ रहा हैं ,वास्तव में हमारा सबसे शक्तिशाली मस्तिष्क का ९० % भाग अवचेतन मन सिर्फ चित्रों व कल्पनाओं की छवियो भाषा को समझता हैं ,और जो भी यह समझता हैं उसको दुनिया में हकीकत में अवश्य लाता हैं | सुबह और रात [सोने से पहले] हमारा मस्तिष्क अल्फ़ा अवस्था [alpha waves of brain]में होता हैं ,यह ऐसी अवस्था हैं की इस वक्त हम खुद को जो भी तस्वीर दिखायेंगे वह हमारे जीवन में धीरे धीरे हकीकत का रूप लेता जायेंगा | इस दौरान एक आम आदमी [कसबे/महानगर/शहर]का क्या करता हैं ?सुबह उठकर सबसे पहले [अभी अल्फ़ा अवस्था में ही]समाचार पत्र पढता हैं और चाय पीता हैं ,अखबारों में सबसे ज्यादा समाचार चोरी,हत्या,मृत्यु ,आकस्मिक बलात्कार आदि से भरे होते हैं ,औ

कुछ इस तरह से दुनिया में आए भगवान ईसा मसीह

क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे अहम और विश्व का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है. हर साल 25 दिसम्बर को मनाया जाने वाला यह त्यौहार आज हर जाति और धर्म में समान लोकप्रियता हासिल कर चुका है. इसकी रंगारंग धूमधाम और मनोरंजन को देखते हुए अब ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ने लगे हैं. क्रिसमस भगवान ईसा मसीह (जिन्हें यीशु के नाम से भी पुकारा जाता है) के जन्मदिवस के रुप में मनाया जाता है. ‘क्रिसमस’ शब्द ‘क्राइस्ट्स और मास’ दो शब्दों के मेल से बना है, जो मध्य काल के अंग्रेजी शब्द ‘क्रिस्टेमसे’ और पुरानी अंग्रेजी शब्द ‘क्रिस्टेसमैसे’ से नकल किया गया है. 1038 ई. से इसे ‘क्रिसमस’ कहा जाने लगा. इसमें ‘क्रिस’ का अर्थ ईसा मसीह और ‘मस’ का अर्थ ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या ‘मास’ है. यीशु के जन्‍म के संबंध में नए टेस्‍टामेंट के अनुसार व्‍यापक रूप से स्‍वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा. गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्‍म देगी तथा बच्‍च