क्या जब आपका मोबाइल आपके पास नहीं होता तो आप बेचैन हो जाते है? क्या आप बार-बार अपना फ़ोन चेक करते हैं कि वो बज तो नहीं रहा? क्या आपको अपने मोबाइल कि घंटी तब भी सुने देती है, जबकि वो नहीं बज रहा होता है? अगर इन सवालों के जवाब 'हां' है, तो आप भी रिंग एन्ग्जाईटी के गिरफ्त में है।
फोर्टिस हॉस्पिटल के सायकायट्रिस्ट डॉक्टर समीर मल्होत्रा के अनुसार रिंग एन्ग्जाईटी का सीधा मतलब है - मोबाइल को लेकर घबराहट या बेचैनी। इससे पीड़ित व्यक्ति हर वक्त यही सोचता रहता है कि इस समय उसे कौन कॉल कर रहा होगा। उसे किसी कॉल और मेसेज के मिस होने का भी डर लगा रहता है। जब भी आपके आसपास फ़ोन बजता है, तो आप तत्काल अपना फ़ोन चेक करते है कि कहीं आपकी कॉल तो नहीं आ रही। दरअसल जो लोग मोबाइल पर बेहद ज्यादा निर्भर रहते है, उनमे रिंग एन्ग्जाईटी के लक्षण पे जाते है। ऐसे लोग हर वक्त मोबाइल के बारे में कुछ न कुछ सोचते रहते है। यह समस्या उन लोगों में ज्यादा पाई जाती है, जो हर वक्त काम में उलझे रहते है, और मोबाइल कि घंटी उनकी इस बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा देती है। ऐसे लोग किसी से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करते, बल्कि उन्हें फ़ोन से बात करना ही ज्यादा बेहतर लगता है।
हैरानी वाली बात तो यह है कि ऐसे लोगों को अपने मोबाइल से इतना लगाव हो जाता है कि सोते-जागते, नहाते, खाते-पिटे, टेलीविजन देखते समय उन्हें हर जगह, हर वक्त अपने मोबाइल कि रिंग टोन सुनाई देती है। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि रिंग एन्ग्जाईटी कि समस्या कुछ लोगों को इस कदर घेर लेती है कि उन्हें शारीरिक और दिमागी तौर पर कई परेशानियाँ हो जाती है। जैसे थोड़ी-थोड़ी देर बाद उनका मुंह सूखता रहता है, अंदर से बहुत ज्यादा घबराहट होती है। ऐसे लोग नींद से उठ उठकर अपना मोबाइल चेक करते है कि कहीं कोई फ़ोन तो नहीं आया है। इन लोगों को किसी सायकायट्रिस्ट से कंसल्ट करना जरुरी हो जाता है। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से नींद न आना और गर्दन, कान तथा सिर में दर्द की समस्याएँ भी आती है।
दरअसल मोबाइल से हमारा फायदा तो होता है, लेकिन इन पर हद से ज्यादा निर्भरता हमारे लिए परेशानी का सबब बन जाती है। ऐसा नहीं है की इस परेशानी से आप छुटकारा नहीं पा सकते है। कुछ उपाय करके रिंग एन्ग्जाईटी से बचा भी जा सकता है। सबसे पहले तो आपको अपनी इस टेंडेंसी के बारे में पता होना चाहिए। मोबाइल पर बात करने के घंटे फिक्स कर ले। मोबाइल का लिमिटेड इस्तेमाल करे। मोबाइल को शरीर के ज्यादा करीब न रखे। रिंग एन्ग्जाईटी से बचने के लिए मेडिटेशन और योग का सहारा भी लिया जा सकता है। कुछ घंटे रिलेक्स करें। अच्छी नींद लें और फेमिली या दोस्तों के साथ फ़ोन पर गप्प लड़ाने से अच्छा उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। सबसे अच्छी बात तो यह होगी की प्रकृति के करीब रहें।
रिंग एन्ग्जाईटी की समस्या सबसे ज्यादा युवाओं में पाई जाती है क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा अपने फ़ोन के साथ व्यस्त रहते है। आज के भागदौड़ भरी जिन्दगी में युवा इतने फास्ट हो जाते है कि वे कॉल या मेसेज का थोड़ी देर भी इंतजार नहीं कर सकते। उन्हें सब कुछ फटाफट चाहिए। ज्यादा से ज्यादा फ्रेंड्स और लोगों से कनेक्ट होने की ख्वाहिस भी रिंग एन्ग्जाईटी को जन्म देती है। अक्सर यह देखा जाता है जो लोग स्ट्रेसफुल जॉब में होते है, वे भी इसके शिकार होते है।
मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल आपकी प्रोफेशनल लाइफ के साथ साथ आपकी पर्सनल लाइफ पर भी इफेक्ट डाल सकता है। एक स्टडी के अनुसार रिंग एन्ग्जाईटी में आप अपने फ़ोन पर इतने ज्यादा डिपेंड हो जाते है कि आपके दिमाग के कुछ सेल्स काल्स को इमैजिन करने लग जाते है जिससे बेचैनी और घबराहट होने लगती है।
फोर्टिस हॉस्पिटल के सायकायट्रिस्ट डॉक्टर समीर मल्होत्रा के अनुसार रिंग एन्ग्जाईटी का सीधा मतलब है - मोबाइल को लेकर घबराहट या बेचैनी। इससे पीड़ित व्यक्ति हर वक्त यही सोचता रहता है कि इस समय उसे कौन कॉल कर रहा होगा। उसे किसी कॉल और मेसेज के मिस होने का भी डर लगा रहता है। जब भी आपके आसपास फ़ोन बजता है, तो आप तत्काल अपना फ़ोन चेक करते है कि कहीं आपकी कॉल तो नहीं आ रही। दरअसल जो लोग मोबाइल पर बेहद ज्यादा निर्भर रहते है, उनमे रिंग एन्ग्जाईटी के लक्षण पे जाते है। ऐसे लोग हर वक्त मोबाइल के बारे में कुछ न कुछ सोचते रहते है। यह समस्या उन लोगों में ज्यादा पाई जाती है, जो हर वक्त काम में उलझे रहते है, और मोबाइल कि घंटी उनकी इस बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा देती है। ऐसे लोग किसी से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करते, बल्कि उन्हें फ़ोन से बात करना ही ज्यादा बेहतर लगता है।
हैरानी वाली बात तो यह है कि ऐसे लोगों को अपने मोबाइल से इतना लगाव हो जाता है कि सोते-जागते, नहाते, खाते-पिटे, टेलीविजन देखते समय उन्हें हर जगह, हर वक्त अपने मोबाइल कि रिंग टोन सुनाई देती है। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि रिंग एन्ग्जाईटी कि समस्या कुछ लोगों को इस कदर घेर लेती है कि उन्हें शारीरिक और दिमागी तौर पर कई परेशानियाँ हो जाती है। जैसे थोड़ी-थोड़ी देर बाद उनका मुंह सूखता रहता है, अंदर से बहुत ज्यादा घबराहट होती है। ऐसे लोग नींद से उठ उठकर अपना मोबाइल चेक करते है कि कहीं कोई फ़ोन तो नहीं आया है। इन लोगों को किसी सायकायट्रिस्ट से कंसल्ट करना जरुरी हो जाता है। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से नींद न आना और गर्दन, कान तथा सिर में दर्द की समस्याएँ भी आती है।
दरअसल मोबाइल से हमारा फायदा तो होता है, लेकिन इन पर हद से ज्यादा निर्भरता हमारे लिए परेशानी का सबब बन जाती है। ऐसा नहीं है की इस परेशानी से आप छुटकारा नहीं पा सकते है। कुछ उपाय करके रिंग एन्ग्जाईटी से बचा भी जा सकता है। सबसे पहले तो आपको अपनी इस टेंडेंसी के बारे में पता होना चाहिए। मोबाइल पर बात करने के घंटे फिक्स कर ले। मोबाइल का लिमिटेड इस्तेमाल करे। मोबाइल को शरीर के ज्यादा करीब न रखे। रिंग एन्ग्जाईटी से बचने के लिए मेडिटेशन और योग का सहारा भी लिया जा सकता है। कुछ घंटे रिलेक्स करें। अच्छी नींद लें और फेमिली या दोस्तों के साथ फ़ोन पर गप्प लड़ाने से अच्छा उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। सबसे अच्छी बात तो यह होगी की प्रकृति के करीब रहें।
रिंग एन्ग्जाईटी की समस्या सबसे ज्यादा युवाओं में पाई जाती है क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा अपने फ़ोन के साथ व्यस्त रहते है। आज के भागदौड़ भरी जिन्दगी में युवा इतने फास्ट हो जाते है कि वे कॉल या मेसेज का थोड़ी देर भी इंतजार नहीं कर सकते। उन्हें सब कुछ फटाफट चाहिए। ज्यादा से ज्यादा फ्रेंड्स और लोगों से कनेक्ट होने की ख्वाहिस भी रिंग एन्ग्जाईटी को जन्म देती है। अक्सर यह देखा जाता है जो लोग स्ट्रेसफुल जॉब में होते है, वे भी इसके शिकार होते है।
मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल आपकी प्रोफेशनल लाइफ के साथ साथ आपकी पर्सनल लाइफ पर भी इफेक्ट डाल सकता है। एक स्टडी के अनुसार रिंग एन्ग्जाईटी में आप अपने फ़ोन पर इतने ज्यादा डिपेंड हो जाते है कि आपके दिमाग के कुछ सेल्स काल्स को इमैजिन करने लग जाते है जिससे बेचैनी और घबराहट होने लगती है।
टिप्पणियाँ
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......