सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आपकी प्यास, आपका रास्ता

एक बार गौतम बुद्ध एक गांव में ठहरे थे। एक व्यक्ति ने उनको आकर कहा कि आप रोज कहते हैं कि हर व्यक्ति मोक्ष पा सकता है। लेकिन हर व्यक्ति मोक्ष पा क्यों नहीं लेता है? बुद्ध ने कहा, मेरे मित्र, एक काम करो। संध्या को गांव में जाना और सारे लोगों से पूछकर आना, वे क्या पाना चाहते हैं। एक फेहरिस्त बनाओ। हर एक का नाम लिखो और उसके सामने लिख लाना, उनकी आकांक्षा क्या है। वह आदमी गांव में गया। उसने एक-एक आदमी को पूछा। थोडे-से लोग थे उस गांव में, सबने उत्तर दिए। वह सांझ को वापस लौटा। उसने बुद्ध को आकर वह फेहरिस्त दी। बुद्ध ने कहा, इसमें कितने लोग मोक्ष के आकांक्षी हैं? वह बहुत हैरान हुआ। उसमें एक भी आदमी ने अपनी आकांक्षाओं में मोक्ष नहीं लिखाया था। बुद्ध ने कहा, हर आदमी पा सकता है, यह मैं कहता हूं। लेकिन हर आदमी पाना चाहता है, यह मैं नहीं कहता। हर आदमी पा सकता है, यह बहुत अलग बात है और हर आदमी पाना चाहता है, यह बहुत अलग बात है। अगर आप पाना चाहते हैं, तो यह आश्वासन मानें। अगर आप सच में पाना चाहते हैं तो इस जमीन पर कोई ताकत आपको रोकने में समर्थ नहीं है। अगर आप नहीं पाना चाहते तो इस जमीन पर कोई ताकत आपको

छुरी से भी तेज होती है शब्दों की चुभन

इस दुनिया में सिर्फ जुबान ही कड़वी और मीठी भी है ऐसा कहा जाता है कि किसी तीखे हथियार से ज्यादा गहरे जख्म किसी के तीखे शब्दों के होते हैं क्योंकि हथियार से किए गए जख्म तो भर जाते हैं लेकिन शब्दों के जख्म कभी नहीं भरते। आपकी बोली भी आपके व्यक्तित्व का एक आइना होती है अगर आप मीठा नहीं बोल सकते तो कोई बात नहीं लेकिन कोशिश करें कि आप जो भी बोले उससे किसी की भावनाओं का ठेस ना पहुंचे। एक बार चार दोस्त बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे। उनमें से एक ने पूछा कि संसार में मीठा क्या है? और तीखा क्या है? सभी ने अपनी राय दी किसी ने कहा गुड़ मीठा है। किसी ने कहा शक्कर। किसी ने कहा रसगुल्ले सभी ने मनपसंद चीजों के नाम बताए।उनमें से एक दोस्त ने कहां कि मेरी राय में तो जुबान ही कड़वी और मीठी होती है। सब दोस्तों ने उसका खुब मजाक बनाया कहा ये कैसी अजीब बात है। उस बात को बहुत दिन गुजर गए। एक दिन उस दोस्त ने अपने सारे दोस्तों को खाने पर बुलाया। उसने अपने घर में दावत की पूरी तैयारी कर रखी थी। खाना लाजवाब बना था। अब सभी लोग खाना खाने बैठे तो वह बोला आप लोग तो ऐसे खा रहे हैं जैसे कभी खाना देखा ही नहीं ये सुनकर सभी दोस्त

ये हैं भारतीय इतिहास के युगनायक शिक्षक

भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक शिक्षक रहे हैं। राम से लेकर विवेकानंद तक जितने भी युगनायक हुए हैं, उनके पीछे किसी महान गुरु का आशीर्वाद और शिक्षा रही है। आइए जानते हैं कि कौन-कौन से ऐसे महान गुरु हैं जिन्होंने युगनायकों को जन्म दिया है। सांदीपनि - भगवान श्रीकृष्ण के गुरु आचार्य सांदीपनि थे। उज्जैयिनी वर्तमान में उज्जैन में अपने आश्रम में आचार्य सांदीपनि ने भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण ने सर्वज्ञानी होने के बाद भी सांदीपनि ऋषि से शिक्षा ग्रहण की और ये साबित किया कि कोई इंसान कितना भी प्रतिभाशाली या गुणी क्यों न हो, उसे जीवन में फिर भी एक गुरु की आवश्यकता होती ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिन में ये कलाएं सीखीं थी। सांदीपनि ऋषि परम तपस्वी भी थे, उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त किया था कि उज्जैयिनी में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। वशिष्ठ - त्रैतायुग में भगवान राम के गुरु रहे श्री वशिष्ठ भी भारतीय गुरुओं में उच्च स्थान पर हैं। भगवान राम की प्रतिभा और उनके सद्व्यवहार को सबसे पहले श्री वशिष्ठ ने ही पहचाना। उन्होंने भगवा

...इसीलिये कहते हैं मां-बाप को धरती के भगवान

माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीवन में बहुत कुछ करते हैं। वे बच्चों की जरुरतों को पूरा ध्यान रखते हैं लेकिन अक्सर देखने में यह आता है कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और मां-बाप बुढ़े, तो बच्चे उन्हें घर का अनावश्यक सामान समझने लगते हैं। जबकि उम्र के इस पढ़ाव पर उन्हें अपनों के प्रेम की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। इसलिए अपने माता-पिता की आवश्यकताओं को समझें और उनके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें। माता-पिता को धरती के भगवान का दर्जा दिया गया है। भगवान के समान महान मानने के पीछे का असल मर्म क्या है आइये जानते हैं एक छोटे से प्रसंग के जरिये... एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ के आस-पास एक बच्चा खेलने आया करता था। बच्चे और पेड़ की दोस्ती हो गई। पेड़ ने उस बच्चे से कहा तू आता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बच्चा बोला लेकिन तुम्हारी शाखाएं बहुत ऊंची है मुझे खेलने में दिक्कत होती है। बच्चे के लिए पेड़ थोड़ा नीचे झुक गया। वह बच्चा खेलने लगा। एक बार बहुत दिनों तक बच्चा नहीं आया तो पेड़ उदास रहने लगा। और जब वह आया तो वह युवा हो चुका था। पेड़ ने उससे पूछा तू अब क्यों मेरे पास नहीं आता? वह बोला अब मै

खुद को पहचानें..

एक बार की बात है। एक बाप अपने तीन बेटों में संपत्ति बांटना चाहता था लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि तीनों में से किस बेटे को अपनी जायदाद दे। तीनों जुड़वा थे उम्र से भी तय नहीं किया जा सकता है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तो उसने फकीर से सलाह ली। फकीर ने उसे एक तरीका बताया । उसने बेटों से कहा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं और बेटों को उसने कुछ बीज दिए और कहा कि इन बीजों को सम्हाल कर रखना। उसके बाद उनके पिता तीर्थ पर चले गए उसके बाद लम्बे समय के बाद लौटे। वे एक-एक कर तीनों के घर गए। पहले बेटेे के घर पहुंचे। पहले बेटे से उन्होंने पूछा बेटा मैंने जो तुम्हे बीज दिए थे उसका तुमने क्या किया? उसने कहा पिताजी कौन से बीज मुझे तो याद ही नही। पिता ने उसे कुछ भी नहीं कहा। उसके बाद पिता ने अपने दूसरे बेटे के घर जाकर भी यही प्रश्र किया। उसने अपनी तिजोरी की चाबी पिता को दे दी और कहा मैंने आपकी अमानत को तिजोरी में सम्हाल कर रखा है। पिता को फिर निराशा हुई। अब वे तीसरे बेटे के पास गए और वही प्रश्र दोहराया। उसने कहा पिताजी आप को मेरे साथ कहीं चलना होगा। दोनों थोड़ी दूर चले और सामने एक बगीचा था। पुत्र ने क

50 साल से वो इस बुरी आदत को छोडऩे की कोशिश कर रहा था

आदत मन से जुड़ी एक विशेष स्थिति को कहा जाता है। और जग जाहिर है कि मन सबसे बड़ा रहस्य का पिटारा है। आदत के बारे में कहा जाता है कि उसे पकड़ा तो जा सकता है लेकिन छोडऩा उतना ही कठिन होता है। आदत से परेशान होकर व्यक्ति संकल्प लेता है कसमें खाता है लेकिन जिस आवेश में आकर उसने कसम खाई थी, उसके शांत होते ही महाचालाक मन फिर से आदत को दोहराने की तरकीब निकाल ही लेता है। हजारों-लाखों में कोई एक होगा जो दृढ़ संकल्प करता भी है और हर हाल में उसे पूरा भी करता है। आदत कितनी ताकतवर होती है यह जानने के लिये आइये चलते हैं एक बेहद छोटी व बहुत सुन्दर कथा की ओर... ओशो के नाम से विश्वभर में विख्यात महान दार्शनिक, विचारक और संत आचार्य रजनीश के पास एक दुखी और परेशान व्यक्ति आया। उसे देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह लगभग 70-75 साल की आयु पार कर चुका था। मोका मिलते ही वह बड़ा दुखी होकर बोला- ''आचार्य जी! मेने सुना है कि आपने कई लोगों की जिंदगियां बदल दी हैं, मुझ पर भी दया कीजिये। वैसे तो मेरी लगभग पूरी उम्र ही खत्म होने को आई है, लेकिन मैं नहीं चाहता कि इस बोझ को लेकर में मरूं। असल में मेरी समस्या

16 अद्भुत बातें... जो जिंदगी के हर मोड़ पर काम आएंगी!

वैसे तो अच्छी बातें, उपदेश या प्रवचन का नाम सुनते ही तथा कथित आधुनिक व्यक्ति नाक-मुंह सिकोडऩे लगता है, इससे यही जाहिर होता है कि उसकी इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है, तथा इतना समय भी नहीं है। बड़े बुर्जुगों और अनुभवियों का कहना है कि कुछ बातें पसंद न आने पर भी कर ही लेनी चाहिये-जैसे ठिठुरती ठंड में रजाई छोड़कर जल्दी उठ बैठना। यहां हम अनुभवों का निचोड़ कुछ ऐसी कीमती बातें दे रहे हैं जो जिंदगी को गहराई से जानने वाले ज्ञानियों ने नोट की हैं... 1. गुण - न हो तो रुप व्यर्थ है। 2. विनम्रता- न हो तो विद्या व्यर्थ है। 3. उपयोग- न आए तो धन व्यर्थ है। 4. साहस- न हो तो हथियार व्यर्थ है। 5. भूख- न हो तो भोजन व्यर्थ है। 6. होंस- न हो तो जोश व्यर्थ है। 7. परोपकार- न करने वालों का जीवन व्यर्थ है। 8. गुस्सा- अक्ल को खा जाता है। 9. अहंकार- मन को खा जाता है। 10. चिंता- आयु को खा जाती है। 11. रिश्वत- इंसाफ को खा जाती है। 12. लालच- ईमान को खा जाता है। 13. दान- करने से दरिद्रता का अंत हो जाता है। 14. सुन्दरता- बगैर लज्जा के सुन्दता व्यर्थ है। 15. दोस्त-चिढ़ता हुआ दोस्त मुस्कुराते हुए दुश्मन से अच्छा

जीना है बेफि़क्र जिंदगी तो अपना लें यह सीख

इंसान जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं को बंटोर लें, किंतु स्वभाव की एक खामी दूर न करे तो उससे मिले कलह और अशांत महौल से जीवन कभी भी सुकून से नहीं बीतेगा। यह खामी या दोष है- क्रोध। धर्मशास्त्रों में क्रोध यानी गुस्सा जीवन के लिये बाधक बताया गया है। जिस पर काबू करने के लिये क्रोध से दूरी ही बेहतर उपाय माना गया है। शास्त्रों में लिखा है कि अक्रोधेन जयेत क्रोध यानी गुस्सा न करना ही क्रोध पर विजय का सूत्र है। इससे जुड़ा जैन शास्त्रों का ही एक प्रसंग क्रोध पर काबू रख सफलता के गुर भी सिखाता है - कथा के मुताबिक राजकुमार बलदेव, वासुदेव व सात्यकि वन में भटक गए। रात बिताने के लिए तीनों ने बारी-बारी से पहरा देने का फैसला किया। सबसे पहले जब सात्यकि पहरा देने शुरु किया तो वहां एक दैत्य प्रकट हो गया। सात्यकि ने आवेश में आकर उसे चले जाने की चेतावनी दी, किंतु उस दैत्य का आकार और शक्ति सात्यकि के ऐसे बोल, व्यवहार से और बढ़ गए। तब उस दैत्य ने सात्यकि पर हमला कर घायल कर दिया। इसी तरह सात्यकि के बाद वासुदेव के पहरा देने पर वह दैत्य फिर से प्रकट हुआ। वासुदेव के भी सात्यकि की तरह दैत्य को देखकर तमतमाने से दैत्य

अगर अपनी वाणी को बनाना है प्रभावशाली तो ये करें....

अध्यात्म में एक प्यारा शब्द है आत्मानुभव। यह एक स्थिति है। यहां पहुंचते ही मनुष्य में साधुता, सरलता, सहजता और समन्वय की खूबियां जाग जाती हैं। उपवास में बहुत से लोग मौन का प्रयोग करते हैं। आत्मानुभव के लिए मौन एक सरल सीढ़ी है। भीतर घटा मौन बाहर वाणी के नियंत्रण के लिए बड़ा उपयोगी है। जैसे ही वाणी नियंत्रित होती है हम दूसरों के प्रति प्रतिकूल शब्द फेंकना बंद कर देते हैं। शब्द भी भीतर से उछाले लेते हैं और बाहर आकर निंदा के रूप में बिखरते हैं। ऐसे शब्दों का रूख अपनी ओर मोड़ दें, अपने ही विरोध में कहे गए शब्द आत्म विश्लेषण का मौका देंगे। जितना सटीक आत्म विश्लेषण होगा उतना ही अच्छा आत्मानुभव रहेगा। मन को आत्म विश्लेषण करना ना पसंद है। इसलिए वह हमेशा अपने भीतर भीड़ भरे रखता है। विचारों की भीड़, मन को खूब प्रिय है। फिर विचारों की भीड़ तो इन्सानों की बेकाबू भीड़ से भी ज्यादा खतरनाक होती है। ऐसा भीड़भरा मन मनुष्य के भीतर से तीन बातों को सोख लेता है- प्रेम, चेतना और जीवन को। प्रेमहीन व्यक्ति सिर्फ स्वार्थ और हिंसा के निकट ही जीएगा। चेतना को तो भीड़भरा मन जागृत ही नहीं होने देता। भीतर इतना शोर होत

मनचाही मंजिल उन्हें ही मिलती है जो...

बड़े खुशनसीब होते हैं वे जिनका सपना पूरा हो जाता है। वरना तो ज्यादातर लोगों को यही कह कर अपने मन को समझाना होता है कि- किसी को मुकम्मिल जंहा नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आंसमा नहीं मिलता। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। मंजिल के मिलने के पीछे लक का हाथ तो होता है, पर एक सीमा तक ही, वरना चाह और कोशिश अगर सच्ची हो तो कायनात भी साथ देती है। अगर आपको जीवन में सफल बनना है तो अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहना जरूरी है। आपकी पूरी नजर आपके लक्ष्य पर होनी चाहिए। तभी आपकी सफलता निश्चित हाती है। आइये चलते हैं एक वाकये की ओर... एक मोबाइल कम्पनी में इन्टरव्यू के लिए के लिए कुछ लोग बैठै थे सभी एक दूसरे के साथ चर्चाओं में मशगूल थे तभी माइक पर एक खट खट की आवाज आई। किसी ने उस आवाज पर ध्यान नहीं दिया और अपनी बातों में उसी तरह मगन रहे। उसी जगह भीड़ से अलग एक युवक भी बैठा था। आवाज को सुनकर वह उठा और अन्दर केबिन में चला गया। थोड़ी देर बाद वह युवक मुस्कुराता हुआ बाहर निकला सभी उसे देखकर हैरान हुए तब उसने सबको अपना नियुक्ति पत्र दिखाया । यह देख सभी को गुस्सा आया और एक आदमी उस युवक से बोला कि हम सब तुमसे पहले यहां

सीखें, कठिन समय में सही निर्णय लेना?

मनुष्य के जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं जब उसे तुरंत निर्णय लेने पड़ते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि वह लालच में आकर गलत निर्णय ले लेता है जो परेशानी का कारण बन जाते हैं। इसलिए जब भी विपरीत समय में कोई निर्णय लेने का अवसर आए तो उसके उसके दूरगामी परिणाम के बारे में भी अवश्य सोचें। किसी गांव में एक लालची व्यापारी रहता था। वह अपने गांव से दूर देश समुद्र की यात्रा करते हुए व्यापार करने जाता था। एक दिन उसके दोस्तों ने उससे पूछा कि क्या तुम्हें तैरना आता है? तो व्यापारी ने कहा- नहीं। दोस्तों ने कहा तुम समुद्र में यात्रा करते हो तो तैरना तो आना ही चाहिए। व्यापारी ने भी सोचा कि सभी ठीक कहते हैं। उसने सोचा क्यों न तैरना सीख लिया जाए लेकिन काम-का में व्यस्तता के कारण उसके पास समय नहीं रहता था।इस कारण जब वह तैरना नहीं सीख सका तो उसने अपने दोस्तों से पूछा कि अब क्या करुं? उसके दोस्तों ने उसे सुझाव दिया कि जब वह कश्ती में जाए तो अपने साथ खाली पीपे (डिब्बे) रख ले और अगर कभी तुफान में कश्ती डुबने लगे तो खाली पीपे शरीर पर बांधकर समुद्र में कूद जाए। ऐसा करने से उसकी जान बच जाएगी। व्यापारी ने ऐसा ही किया

भगत सिंह का एक ख़त

ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश कुदरती तौर पर मुझ में भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, पर मेरा ज़िंदा रहना एक शर्त है। मैं कैद होकर या पाबंद होकर ज़िंदा रहना नहीं चाहता। आज मेरा नाम हिंदुस्तानी इंकलाब का निशान बन चुका है और इंकलाब पसंद पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊँचा कर दिया है। इतना ऊँचा कि ज़िंदा रहने की सूरत में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियां लोगों के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का परचम कमज़ोर पड जायेगा। लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हँसते - हँसते फाँसी पाने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनाने की आरज़ू किया करेंगी औऱ देश के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इंपीरियलिस्म ( साम्राज्यवादी ) की तमाम शैतानी ताकतों के वश की बात नहीं होगी। हाँ, एक ख़्याल चुटकी लेता है। देश और इंसानियत के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ हिस्सा भी पूरा नहीं कर पाया। इसके अलावा फाँसी से बचने के लिए मेरे दिमाग में कभी कोई लालच नहीं आया। मुझसे ज़्यादा ख़ुशक

कुछ सफलताएं जीवन में खुद ही चलकर आती हैं

कभी जीवन में कुछ उपलब्धियां चलकर आ जाती हैं लेकिन उन्हें स्वीकार करने में हम चूक जाते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा में एक प्रसंग आता है - ग्वाले प्रसाद देने आए और राजा तुंगध्वज ने अहंकारवश प्रसाद नहीं लिया। यह प्रसाद सत्य का प्रसाद था। हमें कोई आकर भी जीवन में सत्य देता है, परमात्मा देता है, लेकिन हम अपने स्वभाव, आचरण, मनोवृत्ति, जीवनशैली, तौर-तरीके, हठ, अहंकार के कारण आती हुई कृपा को ठुकरा देते हैं, फिर दु:ख पाते हैं।अहंकार न करें यदि भक्त बनने की तैयारी में हैं। यदि भगवान को पाने की चाह है तो एक चीज से मुक्ति पाई जाए और वह है अहंकार। यह अहंकार हमें कहीं का नहीं रखेगा। याद रखिए आदमी के पास जो कुछ भी होता है वह अहंकार के कारण उल्टा चला ही जाता है। परमात्मा तब ही उपलब्ध होगा जब हम अपने च्च्मैंज्ज् को गिरा देंगे। राजा तुंगध्वज भेदभाव, छुआछूत के पुराने जमाने में जी रहा था। ग्वालों को उसने छोटा समझा था। परमात्मा के विधान में छोटे बड़े का न तो महत्व है और न ही इसकी आज्ञा। यह नए का युग है।जीवन वहाँ उदास हो जाएगा जहाँ नए जीवन की धाराएं बंद हो जाएगी। यदि हमारा दिमाग, हमारा चित्त, हमारे भीतर का आदम

मुश्किल एक दिन टल ही जाएगी

जिन्दगी में परेशानियां सभी के साथ होती हैं। समस्याओं से हारकर आप जीवन को जीना नहीं छोड़ सकते हैं। भगवान जिन्दगी का हर दिन हमें एक अनमोल सिक्के के रूप में दिया है। अगर आप खर्च करें तो ठीक, नहीं तो वह जिस तरह से देता है उसी तरह वापस भी ले लेता है। जिन्दगी के जो पल हैं उन्हें खुशी से बिताएं क्योंकि जिन्दगी का समय सीमित है और मौत एक सच्चाई । एक शहर में चार साधु आए। एक साधु शहर के चौराहे पर जाकर बैठ गया दूसरा घंटाघर में, एक कचहरी में और चौथा साधु शमशान में जाकर बैठ गया। चौराहे परबैठे साधु से लोगों ने पूछा, बाबाजी आप यहां आकर क्यों बैठे हो? क्या कोई अच्छी जगह नहीं मिली? साधु ने कहां यहां चारों दिशा से लोग आते है और चारों दिशाओं मे जाते हैं। किसी आदमी को रोको तो वह कहता है कि रुकने का समय नहीं हैं, जरुरी काम पर जाना है। अब यह पता नहीं लगता कि जरुरी काम किस दिशा में है इसलिए यह जगह बढिय़ा दिखती है। घंटाघर पर बैठे साधु से लोगों ने पूछा बाबा। यहां क्यों बैठे हो? साधु ने कहा घड़ी की सुइयां दिनभर घूमती है परंतु बारह बजते ही हाथ जोड़ देती है कि बस हमारे पास इतना ही समय है, अधिक कहां से लाएं? घंटा ब

सीखो जिदंगी से हर पल

मनुष्य का पूरा जीवन एक पाठशाला है यहां हर वक्त किसी न किसी पहलु पर हमें कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिलता है जिदंगी का हर क्षण हमें कुछ न कुछ सीख जरूर देता है। स्वामी रामतीर्थ जापान की यात्रा पर थे। जिस जहाज से वह जा रहे थे, उसमें नब्बे वर्ष के एक बुजुर्ग भी थे। स्वामी जी ने देखा कि वह एक पुस्तक खोल कर चीनी भाषा सीख रहे हैं। वह बार-बार पढ़ते और लिखते जाते थे। स्वामी जी सोचने लगे कि यह इस उम्र में चीनी सीख कर क्या करेंगे। एक दिन स्वामी जी ने उनसे पूछ ही लिया, 'क्षमा करना। आप तो काफी वृद्ध और कमजोर हो गए हैं। इस उम्र में यह कठिन भाषा कब तक सीख पाएंगे। अगर सीख भी लेंगे तो उसका उपयोग कब और कैसे करेंगे।यह सुन कर उस वृद्ध ने पहले तो स्वामी जी को घूरा, फिर पूछा, 'आपकी उम्र कितनी है? स्वामी जी ने कहा, 'तीस वर्ष।बुजुर्ग मुस्कराए और बोले, 'मुझे अफसोस है कि इस उम्र में आप यात्रा के दौरान अपना कीमती समय बेकार कर रहे हैं। मैं आप लोगों की तरह नहीं सोचता। मैं जब तक जिंदा रहूंगा तब तक कुछ न कुछ सीखता रहूंगा। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। यह नहीं सोचूंगा कि कब तक जिंदा रहूंगा, क्योंकि मृत्यु

....इस कारण संत बीमार नहीं होते

एक सवाल सामान्य लोग आपस में किया करते हैं और वह यह है कि क्या साधु-संत बीमार नहीं पड़ते। और यदि उन्हें भी वे सारी व्याधि सताती हैं जो अन्य मनुष्यों को परेशान करती हैं तो फिर संत और सामान्य में भेद कैसा। आइये आज साधु-संतों की बीमारी से परिचित हो लें। देह उनके पास भी है, शरीर हमारे पास भी है। फर्क यह है कि उनके लिए शरीर धर्मशाला की तरह है और हमने स्थाई मुकाम बना लिया है। इब्राहिम के जीवन की एक घटना है। उनकी कुटिया एक ऐसे मोड़ पर थी जहां से बस्ती और मरघट दोनों के रास्ते निकलते थे। आने-जाने वाले राहगीर उनसे रास्ता पूछा करते थे। फकीरों की जुबां भी निराली होती है लेकिन होती है अर्थभरी। वे लोगों को बस्ती किधर है यह पूछने पर जिस रास्ते पर भेजते वह रास्ता मरघट का होता। और मरघट जाने वालों को रिहायशी इलाके में रवाना कर देते। बाद में लोग आकर इनसे झगड़ते। इब्राहिम का जवाब होता था कि मेरी नजर में मरघट एक ऐसी बस्ती है जहां एक बार जो गया वह हमेशा के लिए बस गया। वहां कोई उजाड़ नहीं होता, लेकिन बस्ती वह जगह है जहां कोई स्थाई बस नहीं सकता। फकीरों की नजर में जिसको हम रहने की जगह कहते हैं उसको वह श्मशान कह

कल की चाह में न बिगाड़े अपना आज

अक्सर लोग भविष्य के चक्कर में अपने आज के जीवन को भुला देते हैं।कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अतीत को ही सोचते रहते हैं, और उनका आज हाथ से छूट जाता है। और कुछ ऐसे लोग होते जो भविष्य के खयालों में ही खोए रहते हैं और कभी अपने वर्तमान की परवाह नहीं करते और आज में जीना भूल जाते हैं। अधिकतर लोगों का जीवन बीते दिनों की यादें या भविष्य की कल्पनाओं में बीत जाता है। लेकिन वे इससे कुछ हासिल नहीं कर पाते। लेकिन सच तो यह है कि अतीत और भविष्य दोनों हमारे नियंत्रण से बाहर हैं। सच तो केवल आज है जिसमें हम जी रहे हैं। तीन दोस्त एक साथ लम्बी यात्रा पर गए। वे एक रेगिस्तान से भी गुजरे। रेगिस्तान बहुत लम्बा था, रास्ते में आंधी आ गई। वे तीनों रास्ता भटक गए। उनका सारा सामान खो गया। उनके पास केवल रोटी का एक टुकड़ा और एक छोटी सी बोतल में पानी जो कि जैसे-तैसे बच गया था। उसमें तीनों की पूर्ति नही हो सकती थी। उन्होंने सोचा, बजाय इसके हम तीनों इसको खाएं और तीनों ही मर जाएं, इससे अच्छा है हम में से एक इसे खा ले और मंजिल तक पहुंच जाए। उन तीनों में विवाद हो गया कि कौन इसे खाए? कोई फैसला नहीं हो सका। तो तीनों ने यह सोचा

इमोशंस से नहीं होता कोई कमजोर

भावनाएं इंसान की कमजोरी होती है लेकिन कभी-कभी यही इमोशंस या भावनाए इंसान की कमजोरी नहीं उसकी ताकत बन जाती है और उसे नया इतिहास लिखने का उत्साह देती हैं। भावनाओं को अपनी कमजोरी या ताकत बनाना आपके हाथ में है और अपना भविष्य बनाना भी। एक दिन जब महर्षि वाल्मीकि गंगा नदी में स्नान करने के लिए जा रहे थे। तब उन्होने क्रौंच के एक जोड़े को आकाश में उड़ते हुए और एक दुसरे का चुंबन करते समय देखा। महर्षि उन्हे देखकर खुश हो रहे थे लेकिन इतनी देर में एक तीर गुजरा औश्र जोड़े में से एक पक्षी मारा गया। वह जमीन पर गिर गया। तब जोड़े का दुसरा पक्षी विलाप करने लगा। वह अपने साथी के शव के चारों और मंडराने लगा। यह दृश्य देखकर कवि के मन में वेदना और करुणा उमड़ी कि उन्होंने हत्यारे शिकारी से कहा। हे निषाद तु दुष्ट है। तुझमे बिल्कुल भी दया का भाव नहीं है। तेरा हत्यारा हाथ प्रेम देखकर भी नहीं रुका। मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:, यक्रौञचमिथुनादैमवथी: काममोहितम्तभी कवि ने अपने मन में सोचा यह क्या? यह मैं क्या कह गया? इस ढंग से तो मैं इसके पहले तो मैं कभी नहीं बोला था और तब एक देववाणी सुनायी दी। डरो मत यह

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द