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वो और एक नजर

आते-जाते रास्तों पर मिलते थे वो मिलना भी क्या नजरों से मिलती थी नजर बस यूं ही सिलसिला चलता रहा एक दिन नहीं, दो दिन नहीं सालों- सालों तक ऐसा ही चला उनका आना, नजरे झुका कर जाना ऐसे ही एक दिन मिले वो उन्होंने हिला दिए लब अपने और मुझे लगा उन्होंने कुछ कहा उनका कुछ कहना या न कहना मेरा कुछ समझना या न समझना उनके आने से पहले ही मेरा वहां पहुंचना होने लगा मेरे लिए जरूरी एक नजर भर देखने के लिए चौबीस घंटे का इंतजार खलने लगा एक नजर के चक्कर में छूट गया सब कुछ दिन-रात बैचेनी होती थी इस बैचेनी में न मिली कामयाबी हुआ यूं कि न मैंने उन्हें कुछ कहा न उन्होंने कुछ कहा मुझे बस यूं ही अनजाने में समय गुजर गया अपना अब क्या न वो मिलते है रास्ते में न ही इच्छा होती कुछ करने की बस यूं ही चल रहा हूं जीवन पथ पर

फैशन बनता बलात्कार ,(सो गई है आत्मा )

आज सर्वाधिक  प्रचलित शब्द है,माडर्न  होना या आधुनिक जीवन जीना..बच्चे ,बूढ़े,युवा,स्त्री -पुरुष सब एक ही दिशा में दौड़ लगते नज़र आते हैं, ऐसा लगता है कि उनको एक ही भय है, कि कहीं हम  इस रेस में पिछड  न जाएँ.यही कारण है,हमारा रहन-सहन,वेशभूषा ,वार्तालाप का ढंग सब बदल रहा है.ग्रामीण जीवन व्यतीत करने वाले भी किसी भी शहरी के समक्ष स्वयं को अपना पुरातन चोला उतारते नज़र आते हैं.ऐसा लगता है कि अपने पुराने परिवेश में रहना कोई अपराध है. समय के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है,बदलते परिवेश में समय के साथ चलना अनिवार्यता है.भूमंडलीकरण के इस युग में जब “कर लो दुनिया मुट्ठी में “का उद्घोष सुनायी देता है,तो हम स्वयं को किसी शिखर पर खड़ा पाते हैं. आज मध्यमवर्गीय भारतवासी भी फोन ,इन्टरनेट,आधुनिक वस्त्र-विन्यास ,खान-पान ,जीवन शैली को अपना रहा है. वह नयी पीढ़ी के क़दमों के साथ कदम मिलाना चाहता है.आज बच्चों को भूख लगने पर  रोटी का समोसा बनाकर,या माखन पराठा  नहीं दिया जाता,डबलरोटी,पिज्जा,बर्गर ,कोल्ड ड्रिंक दिया जाता है,गन्ने का रस,दही की लस्सी का नाम

“हादसा एक दम नहीं होता, वक़्त करता है परवरिश बरसों”

फेसबुक और सोशल मिडिया पर बलात्कार के विरोध में उठती आवाजे यह बताती हैं कि पूरा समाज बलात्कार जैसे अनैतिक कृत्य के बहुत खिलाफ हैं,पर आखिर एक आदमी में बलात्कारी जैसा हिंसक पशु कहा से जन्म लेता हैं ? आज जो मिडिया बलात्कारों/यौन अपराधों/छेड़खानी को इतने ज्यादा कवरिंग के साथ एक एक सबूत के साथ पड़ोस रहा हैं ,उसका हमारे उपर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ रहा हैं ,वास्तव में हमारा सबसे शक्तिशाली मस्तिष्क का ९० % भाग अवचेतन मन सिर्फ चित्रों व कल्पनाओं की छवियो भाषा को समझता हैं ,और जो भी यह समझता हैं उसको दुनिया में हकीकत में अवश्य लाता हैं | सुबह और रात [सोने से पहले] हमारा मस्तिष्क अल्फ़ा अवस्था [alpha waves of brain]में होता हैं ,यह ऐसी अवस्था हैं की इस वक्त हम खुद को जो भी तस्वीर दिखायेंगे वह हमारे जीवन में धीरे धीरे हकीकत का रूप लेता जायेंगा | इस दौरान एक आम आदमी [कसबे/महानगर/शहर]का क्या करता हैं ?सुबह उठकर सबसे पहले [अभी अल्फ़ा अवस्था में ही]समाचार पत्र पढता हैं और चाय पीता हैं ,अखबारों में सबसे ज्यादा समाचार चोरी,हत्या,मृत्यु ,आकस्मिक बलात्कार आदि से भरे होते हैं ,औ

कुछ इस तरह से दुनिया में आए भगवान ईसा मसीह

क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे अहम और विश्व का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है. हर साल 25 दिसम्बर को मनाया जाने वाला यह त्यौहार आज हर जाति और धर्म में समान लोकप्रियता हासिल कर चुका है. इसकी रंगारंग धूमधाम और मनोरंजन को देखते हुए अब ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ने लगे हैं. क्रिसमस भगवान ईसा मसीह (जिन्हें यीशु के नाम से भी पुकारा जाता है) के जन्मदिवस के रुप में मनाया जाता है. ‘क्रिसमस’ शब्द ‘क्राइस्ट्स और मास’ दो शब्दों के मेल से बना है, जो मध्य काल के अंग्रेजी शब्द ‘क्रिस्टेमसे’ और पुरानी अंग्रेजी शब्द ‘क्रिस्टेसमैसे’ से नकल किया गया है. 1038 ई. से इसे ‘क्रिसमस’ कहा जाने लगा. इसमें ‘क्रिस’ का अर्थ ईसा मसीह और ‘मस’ का अर्थ ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या ‘मास’ है. यीशु के जन्‍म के संबंध में नए टेस्‍टामेंट के अनुसार व्‍यापक रूप से स्‍वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा. गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्‍म देगी तथा बच्‍च

प्रकृति ने यह विशेषता सिर्फ महिलाओं को ही दी है...

एक समय था जब रिश्ते दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए होते थे। फिर वक्त बदला, रिश्ते साझा लाभ के लिए होने लगे और अब वक्त आ गया है, जब निज हित रिश्तों पर हावी हो गया है। सार्वजनिक स्थान पर जब किसी काम के लिए कतार लगती है तो कुछ लोग बीच में घुसने की कोशिश कर रहे होते हैं और जो नियम से खड़े रहते हैं, वे आक्रोश व्यक्त करते हैं। यह एक सामान्य दृश्य है। कतार में न लगना या पंक्ति तोड़कर आगे जाना कुछ लोगों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन जाता है। आजकल घरों में भी ऐसे कतार वाले दृश्य देखने को मिलते हैं। हर सदस्य दूसरे से जल्दी में है। वक्त आने पर धक्का भी दे रहा है। परंपराओं की पंक्ति अहंकार के धक्के से तोड़ी जा रही है। लोगों ने घर के बाहर और घर के भीतर के शिष्टाचार की परिभाषा बदल दी है। घर के भीतर अपने ही लोगों के प्रति और उनकी जरूरतों के लिए न तो संवेदनशीलता बचाई जा रही है और न ही जिम्मेदारी निभाई जा रही है। हमें एक बात समझनी चाहिए कि सार्वजनिक जीवन और पारिवारिक जीवन में एक फर्क होता है माताओं, बहनों की उपस्थिति। प्रकृति ने महिलाओं में ऐसे गुण और आकर्षण को मिलाया

प्रेम में चाह नहीं

भिखारी कभी सुखी नहीं रहता। उसे केवल भीख ही मिलती है। वह भी दया और तिरस्कार से युक्त। लेकिन हम सब भिखारी हैं। जो कुछ हम करते हैं, उसके बदले में हम कुछ चाह रखते हैं। हम लोग व्यापारी हैं। हम जीवन के व्यापारी हैं। गुणों के व्यापारी हैं। धर्म के व्यापारी हैं। अफसोस. हम प्यार के भी व्यापारी हैं। यदि तुम व्यापार करने चलो, तो वह लेन-देन का सवाल है। इसलिए तुम्हें क्त्रय और विक्त्रय के नियमों का पालन करना होगा। भाव में चढ़ाव-उतार होता ही रहता है और कब व्यापार में चोट आ लगे, यही तुम सोचते रहते हो। देखा जाए तो व्यापार आईने में मुंह देखने के समान है। उसमें तुम्हारा प्रतिबिंब पड़ता है। तुम अपना मुंह बनाते हो तो आईने का मुंह भी बन जाता है। तुम हंसते हो, तो आईना भी हंसने लगता है। यही है खरीद-बिक्त्री और लेन-देन। लेकिन अक्सर हम फंस जाते हैं। क्यों? इसलिए नहीं कि हम कुछ देते हैं, वरन इसलिए कि हम कुछ पाने की अपेक्षा करते हैं। हमारे प्यार के बदले हमें दुख मिलता है। इसलिए नहीं कि हम प्यार करते हैं, वरन इसलिए कि हम इसके बदले में भी प्यार चाहते हैं। जहां चाह नहीं है, वहां दुख भी नहीं है। वास

बाड़े की कील

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था, छोटी-छोटी बात पर अपना आप खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि , ” अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना.” पहले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी.पर धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी,उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक काबू करना सीख लिया. और फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना temper नहीं loose किया. जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने कहा कि ,” अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना.” लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी, और अपने पित

प्रेम नहीं करोगे तो जानोगे कैसे?

एक बार की बात है एक प्रेमी को किसी महलों में रहने वाली लड़की से प्यार हो गया। जब ये बात उसके परिवार वालों को पता चली तो उन्होंने उस लड़के के मरवाने के लिए कुछ गुंडों को भेजा। जब उस लड़की तक यह खबर पहुंची कि उसके प्रेमी को मरवाने की साजिश रची गई है तो उसने सबका विरोध किया। विरोध करने पर जब उसके घरवालों ने उस पर पहरे लगवा दिए तो वो अपने प्रेमी को बचाने के लिए पहरों को तोड़कर जब उस जगह पर पहुंची जहां उसके प्रेमी के सिर पर बंदुक रखे कुछ लोग खड़े थे। तब लड़की दौड़कर उसके प्रेमी के आगे खड़ी हो गई और बोली मुझे मार डालो। उसके बाद इसे मार देना तब उसे मारने वाले लोगों में से एक व्यक्ति बोला लड़की तू मौत को गले लगाने के लिए इतनी उतावली क्यों हो रही है। तब उसने कहा कि मैं जानती हूं कि जिंदगी से बढ़कर कुछ भी नहीं है लेकिन मैं मानती हूं कि प्रेम ही मेरे लिए सबकुछ है क्योंकि बिना प्रेम के जीवन कुछ भी नहीं। जो एक बार सचमुच प्रेेम के अर्थ को समझ लेता है। उसे महसूस कर लेता है। उसकी पवित्रता को समझ लेता है। उसके मूल्यों को जान लेता है। बिना प्रेम के जीवन कुछ भी नहीं प्रेम से जीवन है बिना प्रेम जी

If you want to change your luck......किस्मत को बदलना है तो ऐसे सोचें....

कई लोग अपनी सारी असफलता और परेशानी को भगवान या किस्मत पर छोड़ देते हैं। जब भी किसी काम में अच्छे परिणाम नहीं मिलते तो लोग किस्मत को कोसने लगते हैं, या अपनी हार को भगवान के मत्थे मढ़ देते हैं। कई लोग यह सोचकर दोबारा प्रयास भी नहीं करते कि शायद किस्मत में लिखा ही नहीं है। ऐसे में निराशा हम पर हावी हो जाती है। हम कोशिशें बंद कर देते हैं और फिर निष्क्रिय रहना हमारा स्वभाव बन जाता है। एक राजा के दरबार में विरोचन और मुनि दो गायक थे। विरोचन की गायकी का पूरा दरबार कायल था, हर कोई उसे ही सुनता था। मुनि को यह बात अखरती थी। धीरे-धीरे उसने इसे अपनी किस्मत समझकर समझौता कर लिया। हर कोई विरोचन को मुनि से बेहतर मानता था क्योंकि दरबार में ज्यादातर विरोचन ही सुने जाते थे। लगातार खुद की उपेक्षा होते देख, मुनि ने अपना नियमित अभ्यास भी छोड़ दिया। वह रोज शिव मंदिर के सामने बैठकर खुद की किस्मत और भगवान को कोसता रहता। एक दिन भगवान ने सोचा क्यों ना इसकी भी सुन ली जाए। मुनि मंदिर में बैठा भगवान को अपनी खराब किस्मत के लिए कोस रहा था तभी शिवजी प्रकट हो गए। उन्होंने कहा मुनि तू क्या चाहता है। मुनि ने कहा मु