पितृपक्ष शुरु होते ही दुनिया को अलविदा कह चुकी आत्माओं को अपने कुलदीपकों की याद आने लगी, जो बिना भूले उनकी याद में कुत्ते, कौवे और गायों को पकवान खिलते है। उनमे से कई पितरों ने अपने ठिकाने (स्वर्ग या ...) पर मीटिंग की और मर्त्यलोक आने की प्लानिंग की। अपने डिपार्टमेंट हेड धर्मराज या यमराज से अनुमति मांगी। डिपार्टमेंट हेड ने सबके आवेदन पत्रों को देखा, फ़िर पता-ठिकाना पूछा। सभी पितर उत्साहित थे, सटीक जानकारी दी। चित्रगुप्त महाराज ने भी अपने रजिस्टर से पता ठिकाने का मिलन किया। अधिकांश पते भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों से सम्बंधित थे। पता मिलते ही चित्रगुप्त महाराज ने सभी अप्लिकेशन्स पर 'ओके' की मुहर लगा दी। धर्मराज ने पितरों को रहस्यमय मुस्कराहट के साथ परमिट लैटर जरी कर दिया। डिपार्टमेंट हेड की तिरछी मुस्कान दुनिया से दूर रह रहे बुजुर्गों को चुभ गई। सहस जुटाकर पूछ ही लिया- महाराज, मर्त्यलोक जाने की आज्ञा है? धर्मराज उर्फ़ यमराज बोले - हे माननीयों, वर्ष में १६ दिन का समय आपका है। इस दौरान आपको अपने सगे-सम्बन्धियों की खातिरदारी कराने का विशेषाधिकार है। यहाँ तो सिर्फ़ डेटा मिलन के लिए ऍप्लिकेशन लिए जाते है। पितरों में से एक ने पूछा - रहस्यमय मुस्कान के साथ अनुमति देने का मतलब जान सकता हु, भगवन? यमराज बोले - महानुभावों, मैं सिर्फ़ यह बताना चाहता था की इस बार हिंदुस्तान में महंगाई आई हुई है। देवताओं की शिकायत है की यज्ञ-हवं और प्रसाद चढाने वाले भक्तो ने कटौती शुरू कर दी है। मानव मन्नतें तो बड़ी-बड़ी मांग रहा है मगर उसके चढावे की क्वालिटी कम करता जा रहा है। दानपेटियां भर नहीं पा रही है। जानकारी यह भी है की पितृपक्ष के बाकि बचे दिनों में भी महंगाई छाई रहेगी। इसलिए आप विशेष उम्मीद लेकर अपने वंशजों के पास न जाएँ। बाद कोशिश करें किसी तरह मोक्ष मिल जाए। उनकी कमखर्ची को कंजूसी न माने और भरपूर आशीर्वाद देकर ही लौटें।
यमराज के इस रहस्योद्घाटन के बाद कई दिवंगत आत्माओं का चेहरा उतर गया। मगर उन्होंने यमराज की बात परखने की थान ली। अपने अपने दोस्तों के साथ उन्होंने मर्त्यलोक की राह पकड़ी। अपने कुटुम्बों और सम्बन्धियों का हाल देखा। जब उनकी बातें सुनी तो माजरा समझ में आ गया। सभी महंगाई का रोना रो रहे थे। जब कुत्तों और कौओं की सेहत देखी, तब यमराज से सुना हाल सच जान पड़ा। पिछले पितृपक्ष में जो कौवे पकवान देखकर नाक-भों सिकोराते थे, वे इस साल एक पुरी देखकर ही उछल-कूद मचा रहे थे। कुत्तों की हालत ही बदतर थी। कभी पुचकारकर खिलने वाले इस बार श्रद्धालु इस बार भाव ही नहीं दे रहे थे। गायें सड़कों पर भटकती फ़िर रही थी। अ़ब स्कूटर वाला उन्हें ढूंढ़कर खाना नहीं खिला रहा। ये मूक पशु समझ नहीं पा रहे की इस खास महीने में आखिर इन्सान की नियत क्यों बदल गई है।
महंगाई का असली चेहरा देखने के बाद सभी पवित्र आत्माएं उन नदी-तालाबों पर पहुँची, जहाँ पंडितजी अपने यजमानों को वैदिक मंत्रो के सहारे तर्पण करा रहे थे। वैदिक मंत्रो के साथ तर्पण पुरा हुआ। wahan मौजूद पितरों ने उनका arghya swikar किया। बारी दक्षिणा की आई। यजमानों ने अपनी जेब में से सिक्के निकलकर पंडित जी को थमा दिए। पंडित जी बोले- यजमानों महंगाई जान ले रही है और आप लोगों ने भी दक्षिणा कम क्यों कर दी। यजमानों ने भी महंगाई का वास्ता देकर दक्षिणा स्वीकार करने का आग्रह किया। पंडितजी खीझते हुए बोले -इस तरह मेरी आमदनी कम होती रही तो तर्पण कराना मुश्किल है। यजमानों ने हामी भरते हुए जवाब किया -इतनी महंगाई में कौन चाहता है तर्पण करना। महंगाई ऐसी रही तो आगे से ये सरे कार्यक्रम बंद करने पड़ेंगे। पंडितजी ने पूछा- पितर तो दुनिया देखकर चले गए, अ़ब महंगाई में अपने वंशजों को परेशां भला क्योँ करेंगे? पंडितजी और उनकी बातें सुनकर सभी आत्माएं दुखी हुई। मगर उन्हें यमराज की बातें याद आई और वे महंगाई के सामने बेबस कुटुम्बों को आशीर्वाद देकर अपने ठिकानों पर चले गई, जहाँ से वे आई थी।
यमराज के इस रहस्योद्घाटन के बाद कई दिवंगत आत्माओं का चेहरा उतर गया। मगर उन्होंने यमराज की बात परखने की थान ली। अपने अपने दोस्तों के साथ उन्होंने मर्त्यलोक की राह पकड़ी। अपने कुटुम्बों और सम्बन्धियों का हाल देखा। जब उनकी बातें सुनी तो माजरा समझ में आ गया। सभी महंगाई का रोना रो रहे थे। जब कुत्तों और कौओं की सेहत देखी, तब यमराज से सुना हाल सच जान पड़ा। पिछले पितृपक्ष में जो कौवे पकवान देखकर नाक-भों सिकोराते थे, वे इस साल एक पुरी देखकर ही उछल-कूद मचा रहे थे। कुत्तों की हालत ही बदतर थी। कभी पुचकारकर खिलने वाले इस बार श्रद्धालु इस बार भाव ही नहीं दे रहे थे। गायें सड़कों पर भटकती फ़िर रही थी। अ़ब स्कूटर वाला उन्हें ढूंढ़कर खाना नहीं खिला रहा। ये मूक पशु समझ नहीं पा रहे की इस खास महीने में आखिर इन्सान की नियत क्यों बदल गई है।
महंगाई का असली चेहरा देखने के बाद सभी पवित्र आत्माएं उन नदी-तालाबों पर पहुँची, जहाँ पंडितजी अपने यजमानों को वैदिक मंत्रो के सहारे तर्पण करा रहे थे। वैदिक मंत्रो के साथ तर्पण पुरा हुआ। wahan मौजूद पितरों ने उनका arghya swikar किया। बारी दक्षिणा की आई। यजमानों ने अपनी जेब में से सिक्के निकलकर पंडित जी को थमा दिए। पंडित जी बोले- यजमानों महंगाई जान ले रही है और आप लोगों ने भी दक्षिणा कम क्यों कर दी। यजमानों ने भी महंगाई का वास्ता देकर दक्षिणा स्वीकार करने का आग्रह किया। पंडितजी खीझते हुए बोले -इस तरह मेरी आमदनी कम होती रही तो तर्पण कराना मुश्किल है। यजमानों ने हामी भरते हुए जवाब किया -इतनी महंगाई में कौन चाहता है तर्पण करना। महंगाई ऐसी रही तो आगे से ये सरे कार्यक्रम बंद करने पड़ेंगे। पंडितजी ने पूछा- पितर तो दुनिया देखकर चले गए, अ़ब महंगाई में अपने वंशजों को परेशां भला क्योँ करेंगे? पंडितजी और उनकी बातें सुनकर सभी आत्माएं दुखी हुई। मगर उन्हें यमराज की बातें याद आई और वे महंगाई के सामने बेबस कुटुम्बों को आशीर्वाद देकर अपने ठिकानों पर चले गई, जहाँ से वे आई थी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......