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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगत सिंह का एक ख़त

ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश कुदरती तौर पर मुझ में भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, पर मेरा ज़िंदा रहना एक शर्त है। मैं कैद होकर या पाबंद होकर ज़िंदा रहना नहीं चाहता। आज मेरा नाम हिंदुस्तानी इंकलाब का निशान बन चुका है और इंकलाब पसंद पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊँचा कर दिया है। इतना ऊँचा कि ज़िंदा रहने की सूरत में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियां लोगों के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का परचम कमज़ोर पड जायेगा। लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हँसते - हँसते फाँसी पाने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनाने की आरज़ू किया करेंगी औऱ देश के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इंपीरियलिस्म ( साम्राज्यवादी ) की तमाम शैतानी ताकतों के वश की बात नहीं होगी। हाँ, एक ख़्याल चुटकी लेता है। देश और इंसानियत के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ हिस्सा भी पूरा नहीं कर पाया। इसके अलावा फाँसी से बचने के लिए मेरे दिमाग में कभी कोई लालच नहीं आया। मुझसे ज़्यादा ख़ुशक

कुछ सफलताएं जीवन में खुद ही चलकर आती हैं

कभी जीवन में कुछ उपलब्धियां चलकर आ जाती हैं लेकिन उन्हें स्वीकार करने में हम चूक जाते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा में एक प्रसंग आता है - ग्वाले प्रसाद देने आए और राजा तुंगध्वज ने अहंकारवश प्रसाद नहीं लिया। यह प्रसाद सत्य का प्रसाद था। हमें कोई आकर भी जीवन में सत्य देता है, परमात्मा देता है, लेकिन हम अपने स्वभाव, आचरण, मनोवृत्ति, जीवनशैली, तौर-तरीके, हठ, अहंकार के कारण आती हुई कृपा को ठुकरा देते हैं, फिर दु:ख पाते हैं।अहंकार न करें यदि भक्त बनने की तैयारी में हैं। यदि भगवान को पाने की चाह है तो एक चीज से मुक्ति पाई जाए और वह है अहंकार। यह अहंकार हमें कहीं का नहीं रखेगा। याद रखिए आदमी के पास जो कुछ भी होता है वह अहंकार के कारण उल्टा चला ही जाता है। परमात्मा तब ही उपलब्ध होगा जब हम अपने च्च्मैंज्ज् को गिरा देंगे। राजा तुंगध्वज भेदभाव, छुआछूत के पुराने जमाने में जी रहा था। ग्वालों को उसने छोटा समझा था। परमात्मा के विधान में छोटे बड़े का न तो महत्व है और न ही इसकी आज्ञा। यह नए का युग है।जीवन वहाँ उदास हो जाएगा जहाँ नए जीवन की धाराएं बंद हो जाएगी। यदि हमारा दिमाग, हमारा चित्त, हमारे भीतर का आदम