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अगर अपनी वाणी को बनाना है प्रभावशाली तो ये करें....

अध्यात्म में एक प्यारा शब्द है आत्मानुभव। यह एक स्थिति है। यहां पहुंचते ही मनुष्य में साधुता, सरलता, सहजता और समन्वय की खूबियां जाग जाती हैं। उपवास में बहुत से लोग मौन का प्रयोग करते हैं। आत्मानुभव के लिए मौन एक सरल सीढ़ी है। भीतर घटा मौन बाहर वाणी के नियंत्रण के लिए बड़ा उपयोगी है। जैसे ही वाणी नियंत्रित होती है हम दूसरों के प्रति प्रतिकूल शब्द फेंकना बंद कर देते हैं। शब्द भी भीतर से उछाले लेते हैं और बाहर आकर निंदा के रूप में बिखरते हैं। ऐसे शब्दों का रूख अपनी ओर मोड़ दें, अपने ही विरोध में कहे गए शब्द आत्म विश्लेषण का मौका देंगे। जितना सटीक आत्म विश्लेषण होगा उतना ही अच्छा आत्मानुभव रहेगा। मन को आत्म विश्लेषण करना ना पसंद है। इसलिए वह हमेशा अपने भीतर भीड़ भरे रखता है। विचारों की भीड़, मन को खूब प्रिय है। फिर विचारों की भीड़ तो इन्सानों की बेकाबू भीड़ से भी ज्यादा खतरनाक होती है। ऐसा भीड़भरा मन मनुष्य के भीतर से तीन बातों को सोख लेता है- प्रेम, चेतना और जीवन को। प्रेमहीन व्यक्ति सिर्फ स्वार्थ और हिंसा के निकट ही जीएगा। चेतना को तो भीड़भरा मन जागृत ही नहीं होने देता। भीतर इतना शोर होत