अध्यात्म के सागर में दुबकी लगाकर अंतर्मन की आवाज को सुनने वाली, इश्वर को नजदीक से महसूस करने वाली करुना और सहानुभूति की मूर्ति मदर टेरेसा को साडी दुनिया गरीबों की माँ के रूप से जानती है। बीते ५ सितम्बर को उनका जन्मदिन था।
अल्बानिया में २६ अगस्त १९१० में जन्मी नन्हीं अग्नेस बायाहु उन गिने-चुने लोगों में से एक थी, जिसने अपनी ह्रदय की आवाज को सुनकर उसका सकारात्मक उतर दिया और जिन्होंने अपने नारीत्व के श्रेष्ठ रूप को बंगाल की पवित्र धरती पर पूर्ण होता पाया।
मनुष्य रूप में माँ और देवी बनकर भारत के लोगों के साथ यीशु मसीह के प्रेम के संदेश बाटने वाली संत टेरेसा की दास्ताँ सचमुच अद्भुत है। १९२८ में बंगाल पहुँची १८ वर्षीय टेरेसा, सिस्टर बन्ने के लिए लोरेटो कॉन्वेंट में भरती होती है। १९३७ में वो अपना अन्तिम व्रत ग्रहण कर लोरेटो धर्म संघ की धर्म बहन की उपाधि प्राप्त करती है। और शिक्षिका के तौर पर कार्यरत टेरेसा एक दिन अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर यीशु मसीह के पदचिन्हों पर चलते हुए गरीबों की सेवा में निकल पड़ती है।
५४ वर्ष पूर्व शारीरिक तौर पर कमजोर लेकिन दृढ़-निश्चय वाली महिला, जिन्होंने एक नन और शिक्षिका के रूप में प्रशिक्षण ग्रहण किया था, कलकत्ता की सड़को पर गरीब निराश्रय लोगों को आश्रय प्रदान करने की चुनौती लिए लोरेटो कॉन्वेंट की सुख-सुविधाओ को छोड़, थैले में सिर्फ़ पांच रुपयों के साथ निकल पड़ी। उस समय मदर के उस निश्चय पर किसी ने तनिक भी विश्वास नहीं किया था। आज उनकी बारहवी पुण्यतिथि पर उनकी मिशनरीज ऑफ़ चेरिटी नमक संगठन पुरे विश्व में पांच सौ से भी अधिक ऐसे आश्रम चला रहा है। मदर टेरेसा का अध्यात्मिक जीवन शुरू से ही मसीह की शिक्षा पर आधारित था। वे हमेशा से ही यीशु के प्रेम के संदेश को जन-जन में बाँटती फिरती थी। विश्वास, दया, नम्रता, और प्रेम को अपने जीवन में अपनाते हुए टेरेसा दरिद्रो से भी दरिद्र और अमीरों से भी अमीर के बीच इंसानियत, भाईचारे और समानता का शुभ -संदेश अपने सेवा कार्य द्वारा देती रही। फा० डोमिनिक इम्मानुएल उनका एक संस्मरण सुनते है, जो मदर ने उन्हें सुनाया था। मदर ने बताया था, एक कार्यक्रम के सिलसिले में एक बार हम लोग इंदौर में ठहरे थे। एक रात किसी ने हमारे दरवाजे पर दस्तक देकर बताया की पास ही में एक गरीब हिंदू परिवार रहता है। उसमे आठ बच्चे है, वे सब भूखे है, आज उन्होंने कुछ खाना नहीं खाया है। मैं थाली में थोड़ा चावल लेकर उस घर की और गई। जब वहां पहुँची, तो बच्चों की माँ ने बहुत ही खुशी और कृतज्ञता से वह चावल हमसे ग्रहण किया। लेकिन फ़िर उसमे से थोड़ा चावल ले कर वह अचानक बहार गई और फ़िर झटपट वापस भी आ गई। जब मैंने उसकी और प्रस्न्भारी आँखों से देखा तो उसने बताया, मदर, हमारे पड़ोसी के बच्चों को भी आज दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था। वे मुस्लिम है। मैं यह सुनकर स्तब्ध रह गई। यह कहानी सुनाने के बाद मदर ने हमें समझाया था, मेरा मानना है कि उस स्त्री ने थाली में उस थोड़े से चावल के माध्यम से इश्वर का असीम प्रेम दूसरो के साथ बांटा।
मदर ने हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाईयों के बिच कभी कोई भेदभाव नहीं किया। न ही गरीबों या अमीरों के बिच। इसलिए दुनिया उन्हें भगवान कि तरह पुजती हो। एक बार एक भिखारी के घावो को साफ करते वक्त उसको मुस्कुराता देख उन्होंने जानना चाह कि उसकी मुस्कराहट का क्या राज है। वो बोला, ' आप सचमुच देवी है अन्यथा लोग तो दूसरो को जख्मी, भूखा, प्यासा, नंगा, तड़पता देखकर भी मदद नहीं करते।
मदर टेरेसा ने भूखे-प्यासे, दरिद्रों, अनाथ, गरीबों और बेसहारा लोगों में यीशु मसीह के क्रूस के दर्द का अनुभव किया था। शायद इसलिए मसीह के प्रेम से प्रेरित होकर मदर टेरेसा प्रेम कि मूर्ति बन गई।
अल्बानिया में २६ अगस्त १९१० में जन्मी नन्हीं अग्नेस बायाहु उन गिने-चुने लोगों में से एक थी, जिसने अपनी ह्रदय की आवाज को सुनकर उसका सकारात्मक उतर दिया और जिन्होंने अपने नारीत्व के श्रेष्ठ रूप को बंगाल की पवित्र धरती पर पूर्ण होता पाया।
मनुष्य रूप में माँ और देवी बनकर भारत के लोगों के साथ यीशु मसीह के प्रेम के संदेश बाटने वाली संत टेरेसा की दास्ताँ सचमुच अद्भुत है। १९२८ में बंगाल पहुँची १८ वर्षीय टेरेसा, सिस्टर बन्ने के लिए लोरेटो कॉन्वेंट में भरती होती है। १९३७ में वो अपना अन्तिम व्रत ग्रहण कर लोरेटो धर्म संघ की धर्म बहन की उपाधि प्राप्त करती है। और शिक्षिका के तौर पर कार्यरत टेरेसा एक दिन अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर यीशु मसीह के पदचिन्हों पर चलते हुए गरीबों की सेवा में निकल पड़ती है।
५४ वर्ष पूर्व शारीरिक तौर पर कमजोर लेकिन दृढ़-निश्चय वाली महिला, जिन्होंने एक नन और शिक्षिका के रूप में प्रशिक्षण ग्रहण किया था, कलकत्ता की सड़को पर गरीब निराश्रय लोगों को आश्रय प्रदान करने की चुनौती लिए लोरेटो कॉन्वेंट की सुख-सुविधाओ को छोड़, थैले में सिर्फ़ पांच रुपयों के साथ निकल पड़ी। उस समय मदर के उस निश्चय पर किसी ने तनिक भी विश्वास नहीं किया था। आज उनकी बारहवी पुण्यतिथि पर उनकी मिशनरीज ऑफ़ चेरिटी नमक संगठन पुरे विश्व में पांच सौ से भी अधिक ऐसे आश्रम चला रहा है। मदर टेरेसा का अध्यात्मिक जीवन शुरू से ही मसीह की शिक्षा पर आधारित था। वे हमेशा से ही यीशु के प्रेम के संदेश को जन-जन में बाँटती फिरती थी। विश्वास, दया, नम्रता, और प्रेम को अपने जीवन में अपनाते हुए टेरेसा दरिद्रो से भी दरिद्र और अमीरों से भी अमीर के बीच इंसानियत, भाईचारे और समानता का शुभ -संदेश अपने सेवा कार्य द्वारा देती रही। फा० डोमिनिक इम्मानुएल उनका एक संस्मरण सुनते है, जो मदर ने उन्हें सुनाया था। मदर ने बताया था, एक कार्यक्रम के सिलसिले में एक बार हम लोग इंदौर में ठहरे थे। एक रात किसी ने हमारे दरवाजे पर दस्तक देकर बताया की पास ही में एक गरीब हिंदू परिवार रहता है। उसमे आठ बच्चे है, वे सब भूखे है, आज उन्होंने कुछ खाना नहीं खाया है। मैं थाली में थोड़ा चावल लेकर उस घर की और गई। जब वहां पहुँची, तो बच्चों की माँ ने बहुत ही खुशी और कृतज्ञता से वह चावल हमसे ग्रहण किया। लेकिन फ़िर उसमे से थोड़ा चावल ले कर वह अचानक बहार गई और फ़िर झटपट वापस भी आ गई। जब मैंने उसकी और प्रस्न्भारी आँखों से देखा तो उसने बताया, मदर, हमारे पड़ोसी के बच्चों को भी आज दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था। वे मुस्लिम है। मैं यह सुनकर स्तब्ध रह गई। यह कहानी सुनाने के बाद मदर ने हमें समझाया था, मेरा मानना है कि उस स्त्री ने थाली में उस थोड़े से चावल के माध्यम से इश्वर का असीम प्रेम दूसरो के साथ बांटा।
मदर ने हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाईयों के बिच कभी कोई भेदभाव नहीं किया। न ही गरीबों या अमीरों के बिच। इसलिए दुनिया उन्हें भगवान कि तरह पुजती हो। एक बार एक भिखारी के घावो को साफ करते वक्त उसको मुस्कुराता देख उन्होंने जानना चाह कि उसकी मुस्कराहट का क्या राज है। वो बोला, ' आप सचमुच देवी है अन्यथा लोग तो दूसरो को जख्मी, भूखा, प्यासा, नंगा, तड़पता देखकर भी मदद नहीं करते।
मदर टेरेसा ने भूखे-प्यासे, दरिद्रों, अनाथ, गरीबों और बेसहारा लोगों में यीशु मसीह के क्रूस के दर्द का अनुभव किया था। शायद इसलिए मसीह के प्रेम से प्रेरित होकर मदर टेरेसा प्रेम कि मूर्ति बन गई।
टिप्पणियाँ
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......