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रामलीला की अनोखी लीलाएँ

एक बार रामलीला मंच पर सीता स्वंयवर का दृश्य चल रहा था। बीच में भगवन शंकर का धनुष रखा हुआ था। सभी राजा उसे उठाने में असफल होने का अभिनय कर रहे थे। दरबार में उपस्थित रावण को भी इसी प्रकार अभिनय करना था। मगर उस दिन किसी बात पर उसका रामलीला के प्रबंधक से झगडा हो गया था, इसलिए वह रामलीला को बिगाड़ने पर तुला हुआ था। उसने धनुष को एक झटके में उठाकर तोड़ डाला और जोर से हुनकर लगे - अरे जनक, मैंने इस धनुष को तोड़ दिया। बुला अपनी सीता को। करा उससे मेरा विवाह। मंच पर उपस्थित सभी कलाकार आश्चर्यचकित रह गए। अ़ब क्या हो? तभी जनक का अभिनय करने वाले कलाकार को कुछ सूझा। उसने अपने दरबारियों की ओर देखते हुए कहा - अरे मूर्खों, तुम यह कौन सी धनुष ले आए। असली शिव धनुष तो अंदर ही रखा हुआ है। उसे लेकर आओ। इसके बाद परदा गिरा दिया गया ओर तब कहीं जाकर स्थिति संभली।
एक कसबे की रामलीला में तो इससे भी रोचक घटना घटी। लक्ष्मण मूर्छा के प्रसंग में भगवन राम मूर्छित लक्ष्मण को अपनी गोद में लिटाये विलाप कर रहे थे। हनुमान जडी-बूटी लेने गए हुए थे । उनके आने में विलंब हो रहा था। राम बने कलाकार ने अपने सम्पूर्ण संवाद पुरे कर लिए। फ़िर भी हनुमान नहीं आए। दर्शक बोर होने लगे। दरअसल हनुमान ऊपर रस्सी से टंगे हुए इस प्रतीक्षा में थे की परदे के पीछे की रस्सी ढीली हो तो वे उड़ने का अभिनय करते हुए धीरे-धीरे नीचें उतरे। मगर रस्सी उलझ गई थी ओर वह सुलझ नहीं पा रही थी। तब, रस्सी पर तैनात व्यक्ति को यह आशंका हुई कि और अधिक देर हो जाने से दर्शको में शोरगुल शुरू हो जाएगा। इसलिए इस परिस्थिति में उसे यही सूझा कि रस्सी काट दी जाए। उसने यही किया। रस्सी कटते ही हनुमान जी धम्म से मंच पर आ गिरे। मंच पर बैठे एक कलाकार को भी कुछ चोटें आई। हनुमान बना कलाकार तो इससे बहुत अधिक क्रुद्ध हो गया। राम बने कलाकार ने हनुमान बने कलाकार की ओर देखकर अपना संवाद बोला - वत्स हनुमान, बहुत विलंब कर दिया। हनुमान बने कलाकार ने आवेश में आकर जोर से कहा - वत्स को गोली मरो। पहले यह बतलाओ की रस्सी किसने काटी? इन सर्वथा नए संवादों को सुनकर दर्शक में जोर का ठहाका गूंज उठा। परदा गिरा दिया गया।
गुजरात के एक थियेटर कंपनी का वाकया भी कुछ ऐसा ही है। वहां मेघनाद बने कलाकार को कंपनी के मालिक ने कई माह से वेतन नहीं दिया था। इससे वह बड़ा परेशां था ओर मालिक को कुछ सबक सिखाना चाहता था। सो, जब लक्ष्मण ओर मेघनाद के बीच अन्तिम युद्ध हो रहा था ओर उसमे मेघनाद को मरना था, तो उसने मरने से उस समय तक साफ़ मना कर दिया, जब तक कि उसे पुरा वेतन न चुका दिया जाए। कंपनी के मालिक ने विंग से उसे इशारा किया कि इस प्रोग्राम के बाद उसे पूरे पैसे चुका दी जाएँगे। मगर वह नहीं मना। उसे मालिक पर तनिक भी विश्वास नहीं था।
इतना लंबा युद्ध चलते देखकर दर्शक भी बोर होने लगे थे। तब, कंपनी का मालिक उसके वेतन के पूरे रूपये ले आया ओर विंग से दिखा भी दी कि परदा गिरते ही उसे रूपये दे दिए जाएंगे। मगर कलाकार कोई रिस्क लेना नहीं चाहता था। तब, प्रश्न यह उठा कि मंच पर ही कलाकार के रूपये कैसे पहुंचे? मेघनाद को रिश्वत देने कि कोई चर्चा रामायण में नहीं है।
तब इसका उपाय भी उस कलाकार ने ही ढूंढा। उसने युद्घ करते-करते ही विंग की ओर इशारा करके लक्ष्मण से कहा - उधर तुम्हारे सैनिक मेरी सेना को बुरी तरह मार रहे है। पहले मैं उनसे निपट कर आता हूँ। इतना कहकर वह विंग में चला गया ओर अपनी वेतन के पूरे रूपये संभल लिए। इसके बाद ही उसने मंच पर आकर मरने का अभिनय किया। लोगों ने चैन की साँस ली की भले ही देर हुई, पर आखिरकार मेघनाद मारा तो सही।

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