सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ना आना इस देश लाडो...

एक हफ्ते से घरों में नवरात्र की पूजा चल रही है। अष्टमी का बेसब्री से इंतजार है और आज अष्टमी भी आ गई। परंपराओं के अनुसार आज घर-घर में कन्याओं का पूजन होगा। इसके लिए कन्याओं की एडवांस बुकिंग हो चुकी है। शायद इस बार ढूंढने से आपको पूजने के लिए कन्याएं जरूर मिल जाएंगी, लेकिन आगे ऐसा आसानी से हो पाएगा कहना मुश्किल है। देश के कई हिस्सों में पहले ही हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 887-900 के खतरनाक स्तर तक आ गई है। देश के तमाम प्राइवेट हॉस्पिटल और घर पर होने वाली डिलीवरी के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह अंतर कहीं ज्यादा नजर आएगा। एक तरफ कन्याओं को पूजने और दूसरे तरफ कोख में ही मिटा देने के दुष्चक्र की कहानी भी अजीब है।

ये समाज का कौन सा चेहरा है जो एक तरफ साल में दो बार बेटियों की पूजा करता है, दूसरी तरफ अपने घर में बेटियों की किलकारी से उतना ही परहेज रखता है। नवरात्र के पवित्र दिनों में लोग दुर्गा की पूजा तो करते रहे, लेकिन दुर्गा रूप की आवाज इन दिनों में कमजोर से कमजोर होती गई। इस दौरान लड़कियों की मुकाबले लड़कों की पैदाईश ज्यादा हुई।

रूठ रही है नन्ही देवियां

नन्ही देवियां अब रूठ रही हैं। कहीं जन्म से पहले ही उन्हें मारा जा रहा है तो कहीं उन्हें पैदा होने के बाद भी दहेज, अपहरण, हत्या, उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है। बेटियों की संख्या घट रही है। नवरात्र के पहले दिन से लेकर सप्तमी तक के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो 19 सितंबर नवरात्र के प्रारंभ होने से लेकर 24 सितंबर तक देहरादून महिला हॉस्पिटल में जन्मे बच्चों में से 76 बच्चे मेल हैं। वहीं फिमेल बेबी की संख्या केवल 72 है। यह आंकड़े केवल एक महिला हॉस्पिटल के हैं। वहीं अगर दूसरे प्राईवेट हॉस्पिटल्स के भी आंकड़ों को शामिल किया जाए तो लड़का-लड़की के बीच की यह खाई और ज्यादा लंबी नजर आएगी।

अब बात करते हैं उत्ताराखंड में सेक्स रेशियो की अपने प्रदेश में लिंगानुपात पर अगर गौर करें तो 1000 पुरुषों पर केवल 962 महिलाएं हैं। मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में फिर भी स्थिति थोड़ी ठीक-ठाक कही जा सकती है। देहरादून जिले की अगर बात करें तो यहां हर 1000 पुरुषों पर केवल 887 महिलाएं हैं। हरिद्वार में यह आंकड़ा 865, उधमसिंहनगर में 902, है। हालांकि पर्वतीय क्षेत्रों में चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़ जैसे जिलों में स्थिति काफी हद तक संतोषजनक कही जा सकती है।

चाइल्ड सेक्स रेशियो

स्टेट लेवल पर अगर चाइल्ड सेक्स रेशियो पर अगर गौर करें तो यहां स्थिति और ज्यादा चिंताजनक नजर आती है। 0 से 6 वर्ष तक के चाइल्ड सेक्स रेशियो पर गौर करें तो प्रति 1000 लड़कों पर पूरे प्रदेश में केवल 908 लड़कियां हैं। हर जिले में लड़कियों की संख्या लड़कों की संख्या से कम है। यहां पर भी मैदानी व हाईली एजूकेटेड माने जाने वाले क्षेत्रों की स्थिति खराब है। अपने देहरादून जिले की बात करें तो प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या केवल 894 है। हरिद्वार में यह आंकड़ा 862, उधमसिंह नगर में 913, नैनीताल में 910 है। लिंगानुपात में सबसे कम अंतर रुद्रप्रयाग जिले में नजर आता है, यहां पर भी प्रति 1000 लड़कों में केवल 953 लड़कियां हैं। चाइल्ड सेक्स रेश्यो देखकर यह प्रश्न किसी के भी मन में आ सकता है कि आखिर लड़कियां जा कहां रही हैं। कन्या जीवन दायिनी समिति की सचिव गीता बलोधी कहती हैं कि पिछले सौ सालों में लिंगानुपात बहुत तेजी से बढ़ा है। पूरे देश की अगर बात करें तो वर्ष 1901 में अगर 1000 पुरुषों पर 972 महिलाएं थीं तो वहीं 2001 में महिलाओं की संख्या 933 तक खिसक आई है। चाइल्ड सेक्स रेश्यो की बात करें तो 1991 में ग‌र्ल्स का टोटल 945 था। जिसमें अर्बन में 935 व ग्रामीण क्षेत्रों में यह 948 था। वर्ष 2001 में इस अंतर को देखें तो यह अनुपात 927 पर खिसक आया। जिसमें अर्बन ऐरिया में यह संख्या केवल 906 है जबकि रूरल में 934। इससे इस बात का अंदाजा साफ लगाया जा सकता है कि अर्बन ऐरियाज की अपेक्षा रूरल क्षेत्रों में स्थिति काफी बेहतर है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं...

इन्सान की जात से ही खुदाई का खेल है.

वाल्टेयर ने कहा है की यदि इश्वर का अस्तित्व नहीं है तो ये जरुरी है की उसे खोज लिया जाए। प्रश्न उठता है की उसे कहाँ खोजे? कैसे खोजे? कैसा है उसका स्वरुप? वह बोधगम्य है भी या नहीं? अनादिकाल से अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के जेहन में कुलबुलाते रहे है और खोज के रूप में अपने-अपने ढंग से लोगो ने इश्वर को परिभाषित भी किया है। उसकी प्रतिमा भी बने है। इश्वर के अस्तित्व के विषय में परस्पर विरोधी विचारो की भी कमी नहीं है। विश्वास द्वारा जहाँ इश्वर को स्थापित किया गया है, वही तर्क द्वारा इश्वर के अस्तित्व को शिद्ध भी किया गया है और नाकारा भी गया है। इश्वर के विषय में सबकी ब्याख्याए अलग-अलग है। इसी से स्पस्ट हो जाता है की इश्वर के विषय में जो जो कुछ भी कहा गया है, वह एक व्यक्तिगत अनुभूति मात्र है, अथवा प्रभावी तर्क के कारन हुई मन की कंडिशनिंग। मानव मन की कंडिशनिंग के कारन ही इश्वर का स्वरुप निर्धारित हुआ है जो व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ समाज और देश-काल सापेक्ष भी है। एक तर्क यह भी है की इश्वर एक अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता है, अतः स्थूल इन्द्रियों से उसे अनुभव नहीं किया जा सकता है। एक तरफ हम इश्वर के अस...