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शक्ति की आराधना की नौ रातें

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थितः। नमस्तस्य नमस्तस्य नमस्तस्य नमो नमः।
नवरात्र का पर्व आसुरी शक्ति पर देवी शक्ति की विजय का प्रतिक है। चैत्र तथा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक के नौ दिन वासंतिक तथा शारदीय नवरात्र कहलाते है। आषाढ़ व माघ मास के यही दिन नवरात्र के रूप में कई शक्ति पीठों में मनाए जाते है, परन्तु उन्हें वैसी लोकप्रियता प्राप्त नहीं जैसी की वासंतिक तथा शारदीय नवरात्रों को है। इनमे आधाशक्ति दुर्गा की पूजा इन नौ रूपों में प्रतिपदा से नवमी तक की जाती है : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिधिदात्री। इन नौ शक्ति रूपों से युक्त होने के कारण इसे नवरात्र कहा गया है। भगवती आराधना के लिए महाशक्ति के दस महाविद्या रूप है - महाकाली, उग्रतारा, षोडशी (त्रिपुर सुंदरी), भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। जगत की सृष्टि करने के कारण भगवती दुर्गा ही जगजननी जगदम्बा है। दुर्गा ही चराचर प्राणियों में रहने वाली चेतना शक्ति है। निराश, हताश और दुखी लोगों का करुणामयी दुर्गा माँ ही सहारा है। संसार का कोई भी कार्य शक्ति के बिना सम्भव नहीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवता राक्षसों को नहीं हरा पाए तो उन्होंने अपना तेज देवी को समर्पित कर दिया, जिससे माँ दुर्गा का अविर्भाव हुआ और उन्होंने महिषासुर का मर्दन कर देवताओं को भयमुक्त किया।
ऋग्वेद के वक सूक्त में महर्षि अम्म्रीन कन्या वाक कहती है कि मैं सम्पूर्ण जगत कि उत्पतिकर्ता, पालनकर्ता तथा धारणकर्ता शक्ति हूँ। मैं ग्यारह रुद्रों, आठ वसुओं और बारह आदित्यों के रूप में भासमान होती हूँ। ज्ञान से संपन्न ब्रह्म को जानने वाली और ब्रह्म कि सृष्टि रचना कि शक्ति देने वाली मैं ही हूँ। दुर्गा सप्तशती में प्रारम्भ में ही कहा गया है : या देवी सर्वभूतेषु विष्णु मायेति शब्दिता।/ नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
श्रुतियों में शक्ति और शक्तिमान एक अविभाज्य रूप में प्रतिपादित हुए है। यह एक ही तत्व है जो परमपुरुष एवं पराशक्ति के रूप में है। शास्त्रकारों ने चिरंतन शक्ति कि कल्पना कभी पुरूष रूप तो कभी रूप में की है। स्त्री स्नेह एवं करुणा की देवी है। वह सामाजिक और पारिवारिक जीवन की धुरी है। अतएव श्रद्धावश मनुष्य ने शक्ति को स्त्री रूप में ही स्वीकारा है। जगदम्बा का 'पर' रूप निराकार ब्रह्म है और अपर रूप सदाशिव, ब्रह्म, विष्णु और रुद्र है।
हमारे रग-रग में रचे-बसे मर्यादा पुरषोतम श्रीराम उस दिव्य व्यक्तित्व के स्वामी है, जिसने समग्र भारतीय संस्कृति को आत्मसात किया हुआ है। यह एक ऐसा प्रेरनादायी चरित्र है जो कठिन से कठिन चुनौतियों को मुस्कुराते हुए सहज भाव से स्वीकारता है और हर कसौटी पर खरा उतरता है।
श्रीराम चरित्रवान है, बलवान है, धीर है, सहनशील है, क्षमावान है तथा दूरदर्शी है। वे एक आज्ञाकारी पुत्र है, प्रतिभावान शिष्य है, स्नेही भ्राता है, बेजोड़ पति, अन्तरंग मित्र, गौरवशाली प्रबंधक, यशस्वी योद्धा तथा आदर्श राजा है, जिन्होंने आदर्श राम राज्य की स्थापना करके प्रजा का सर्वांगीण उत्थान किया। जब -जब वे भावना और कर्तव्य के संघर्ष से रूबरू हुए तब-तब कर्तव्य के वर्चस्व के नए कीर्तिमान बने। राम वास्तव में अजात शत्रु है। उन्होंने आततायी रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद जैसे राक्षसों का वध किया और ऋषि-मुनि तथा सज्जन पुरुषों का निर्भय होकर अपने धार्मिक अनुष्ठान पूरा करने की स्वतंत्रता प्राप्त कराइ। श्रीराम वासंतिक तथा शारदीय नवरात्रों से इस तरह अभिन्न रूप से जुड़े है। लोगों द्वारा श्रीराम की भांति उदय तथा उन्नयन को पाने की निष्ठ साधना ही नवरात्रों में शक्ति की सही अर्थों में पूजा है।

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