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सॉरी बोलना सीखा तो क्षमा करना भी सीखें

कुछ ही दिन पहले मेरे दो साल के भतीजे ने सॉरी बोलना सीखा है। वह जब भी कोई खिलौना या खाने-पीने की चीजें फेंकता है तो किसी के टोकने से पहले ही दोनों हाथों से अपने कान पकड़कर सॉरी बोलता है। बहुत अच्छा लगता है उसे ऐसा करते देखकर। यह कहने का भी मन नहीं करता की तुमने सामान फेंका क्यों? उसके इस एक शब्द से चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। पर कल जब मैं ऑफिस के लिए निकला तो इस शब्द की ऐसी दुर्गति देखी कि मन खिन्न हो उठा। हमारी बिल्डिंग में रहने वाली एक सफाई पसंद महिला एक अनजान व्यक्ति से झगड़ रही थी। वह शख्स बार-बार सॉरी बोल रहा था, पर हमारी पडोसन थीं कि कुछ भी सुनने को यही तैयार नहीं थी।
कुछ देर माजरा समझ में आया। वह शख्स किसी फ्लैट में कुरिएर देने जा रहा था और उस के जूतों में लगी मिटटी से सीढियाँ गन्दी हो गई थी। वह बार-बार सॉरी बोल रहा था, पर महिला झगडे पर उतारू थी। क्या उसको क्षमा करके दोबारा सीढियों कि सफाई नहीं कि जा सकती थी? मैं रस्ते भर सोचता रहा कि हमने सॉरी बोलना तो सीख लिया है, पर हमें क्षमा करना कब आएगा। अपनी गलती पर हम शर्मिंदा होते है और क्षमा मांगते है, पर जब किसी और की गलती होती है तो उसकी सॉरी हम तक क्यों नहीं पहुँच पाता।
बचपन में एक कहानी पढ़ी थी, हजरत मोहम्मद साहिब के बारे में। वे जब भी एक गली से गुजरते थे, तो वहां रहने वाली एक झगडालू महिला गालियाँ देती थी और उन पर कूड़ा फेंकती थी। मोहम्मद साहिब ने उसकी गालियों का कभी जवाब नहीं दिया। एक दिन जब वे उस गली से गुजरे तो महिला ने न गलियां दी और न उन पर कूड़ा फेंका। वह वापस लौटे, सीधे सीढियां चढ़कर उस महिला के घर पहुंचे। देखा वह बीमार है और उसकी मदद करने वाला कोई नहीं है। मोहम्मद साहिब ने उसकी तीमारदारी की। ठीक होने पर महिला ने दोनों हाथ जोड़कर उनसे अपने किए की माफ़ी मांगी। मोहम्मद साहिब ने कहा, मैंने तो तुम्हे कब का माफ़ कर दिया, पर तुम तक वह माफ़ी पहुँची अ़ब है। दरअसल किसी को क्षमा करने के लिए अपने दुःख, अपने अंहकार और अपने क्रोध पर काबू पाना बहुत जरुरी होता है। पिछले साल मुंबई में २६/११ को आतंकवादी हमला हुआ। बहुत लोगों ने अपने अपनों को खोया। एक आतंकवादी गिरफ्तार किया गया। कुछ दिनों बाद टीवी पर एक इंटरव्यू में सुना, एक व्यक्ति जिसने उस हमले में अपनी पत्नी को खोया था, अपने दो बच्चो के साथ यह कह रहा था की उन सबों ने उस आतंकवादी को क्षमा कर दिया था। अगर हम उसे क्षमा नहीं करेंगे तो हमेशा उसके बारे में सोचकर क्रोध आएगा और हमारा दुःख बढ़ जाएगा।
यह बात सुनने में जितनी आसान लगती है, असल में होती नहीं है। ऐसा करने और कहने के लिए बहुत संयम की जरुरत होती है। यह समझने की भी जरुरत होती है कि गलती करने वाला भी तब तक सहता है जब तक आप उसे क्षमा नहीं कर देते, चाहे वह आपसे माफ़ी मांगे या नहीं। शायद इसी भावना ने प्रियंका गाँधी को उनके पिता राजीव गाँधी कि हत्या कि साजिश में शामिल लिट्टे कि महिला आतंकवादी नलिनी से जेल में जाकर मिलने को प्रेरित किया हो। पर यह ताकत जुटाने में उन्हें १७ साल का लंबा वक्त लगा।
क्षमा मांग कर जहाँ हम ख़ुद का बोझ उतरते है, वहीँ किसी को क्षमा करके दोनों का मन निर्मल करते है। जब क्रोध ही नहीं रखा तो क्षमा करो अरु अच्छा सोचो। छोटी-छोटी बातों के लिए मन में बैर क्यों रखें? कई बार हमें पता होता है कि कब हमने किसी का दिल दुखाया है, पर हमारा अंहकार हमें क्षमा मांगने की हिम्मत नहीं देता। और जब कोई हमसे क्षमा मांगता है तब अचानक लगता है की न जाने हम कितने महान है जो यह हमसे क्षमा मांग रहा है। लेकिन ठंडे दिमाग से सोचने और अपने दिल में झाँकने पर पता चलता है कि आख़िर क्षमा करने वाले हम कौन?

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