सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भक्तिभाव से भर देती है दुर्गापूजा

आजकल देवी दुर्गा का सबसे मान्य स्वरुप आठ हाथों वाली माँ दुर्गा की मूर्ति है, जो शेर पर सवार है। उनके दो हाथों को छोड़कर हर हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र है। शेष दोनों हाथों से वह भाला पकड़े हुए है, जो महिषासुर के छाती में घुसा हुआ है। दुर्गा पूजा के लिए तैयार की जाने वाली ज्यादातर मूर्तियों में देवी के साथ लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिक को भी दर्शाया जाता है। इनमे से लक्ष्मी धन की देवी है। सरस्वती ज्ञान और बुद्धि की भगवती है। कार्तिक रूप के देवता है और गणेश के बिना किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत नहीं हो सकती।
ड्रम बजाना दुर्गा पूजा का अहम् अंग माना जाता है। ड्रम के कई प्रकार है, जिन्हें काफी पसंद किया जाता है। 'ढाक' ऐसा ही ड्रम है, जिसे कोलकाता के लोग खूब पसंद करते है। इसे षष्टी के दिन से ही बजाय जाता है। इसे एक तरफ़ मोटी और दूसरी तरफ़ पतली छड़ी से थाप दी जाती है। यूँ तो दुर्गा पूजा का आयोजन दस दिनों तक किया जाता है, लेकिन कोलकाता में मुख्य पूजा का आरंभ षष्टी की शाम से ही माना जाता है। इसके कुछ घंटों के बाद ही सप्तमी आरंभ हो जाती है। इन दिन माँ देवी में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। परम्परा है की देवी के प्राण नजदीकी नदी से लाकर देवी की मूर्ति में प्रतिष्ठापित किए जाते है। इसके बाद मुख्य पूजा की शुरुआत होती है। इसके लिए सबसे मुख्य समय अष्टमी और नवमी के मिलन का होता है, जिसे संदिक्षण काल कहते है। इसके बाद नवमी और फ़िर दशमी को मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है।
पूजा की रस्म
आश्विन के पहले चाँद के साथ ही माँ की पूजा शुरू हो जाती है, जबकि माँ की मूर्ति की पूजा महाअष्टमी से प्रारम्भ होती है यानि तीन दिनों की ही मुख्य पूजा होती है, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी। विभिन्न विधि-विधानों, मंत्र और श्लोकों से स्तुति के साथ ही पूजा आरंभ होती है। फ़िर आरती के साथ ही समापन भी हो जाता है।
महाषष्टी
इस दिन माँ के चेहरे से पर्दे को हटाया जाता है। इस प्रक्रिया में भी विधि पर काफी ध्यान दिया जाता है।
महासप्तमी
इस दिन नौ तरह के पेड़ों की पूजा माँ दुर्गा का प्रतीक समझ कर ही किया जाती है।
महाअष्टमी
अष्टमी के दिन पंडालों में माँ के दर्शनों के लिए भीड़ उमड़ परती है। घरों में होने वाली पूजा में कुंवारी पूजा का खास महत्व है। इसी दिन संधि पूजा भी कराइ जाती है, जो अष्टमी और नवमी को जोड़ने के लिए होती है।
महानवमी
संधि पूजा के समापन के साथ ही महानवमी आरंभ हो जाती है। इसी दिन देवी को भोग लगाया जाता है।
दशमी
माँ को अश्रुपूर्ण विदाई सी दिन की जाती है। माँ की मूर्ति को तालाब या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। इसी दिन विजयदशमी का पर्व पुरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं...

इन्सान की जात से ही खुदाई का खेल है.

वाल्टेयर ने कहा है की यदि इश्वर का अस्तित्व नहीं है तो ये जरुरी है की उसे खोज लिया जाए। प्रश्न उठता है की उसे कहाँ खोजे? कैसे खोजे? कैसा है उसका स्वरुप? वह बोधगम्य है भी या नहीं? अनादिकाल से अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के जेहन में कुलबुलाते रहे है और खोज के रूप में अपने-अपने ढंग से लोगो ने इश्वर को परिभाषित भी किया है। उसकी प्रतिमा भी बने है। इश्वर के अस्तित्व के विषय में परस्पर विरोधी विचारो की भी कमी नहीं है। विश्वास द्वारा जहाँ इश्वर को स्थापित किया गया है, वही तर्क द्वारा इश्वर के अस्तित्व को शिद्ध भी किया गया है और नाकारा भी गया है। इश्वर के विषय में सबकी ब्याख्याए अलग-अलग है। इसी से स्पस्ट हो जाता है की इश्वर के विषय में जो जो कुछ भी कहा गया है, वह एक व्यक्तिगत अनुभूति मात्र है, अथवा प्रभावी तर्क के कारन हुई मन की कंडिशनिंग। मानव मन की कंडिशनिंग के कारन ही इश्वर का स्वरुप निर्धारित हुआ है जो व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ समाज और देश-काल सापेक्ष भी है। एक तर्क यह भी है की इश्वर एक अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता है, अतः स्थूल इन्द्रियों से उसे अनुभव नहीं किया जा सकता है। एक तरफ हम इश्वर के अस...