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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आम आदमी की यह अजब दास्तान

उस दिन भी रोज की तरह बगीचे में टहल रहा था। मन में अजब बेचैनी थी। तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। तभी मेरी नजर एक पकेआम पर पड़ी। आम को देखते ही जाने क्यों आम आदमी का ख्याल आ गया। भाषण, लेख, हिदायतों और नसीहतों के बीच बचपन से ही आम आदमी के बारे में सुनता आ रहा हूं।   लगा कि भले बदलाव की तेज आंधी ही क्यूं न चले, पर आम आदमी के हाथ न कभी कुछ लगा है, न लग पाएगा। जब आम आदमी का जिक्र आता है तो मन में एक अजीब सहानुभूति आ जाती है। मैं सोच में डूबा सड़क पर आ गया। सोचा चलो आज सबसे पूछते हैं कि ये आम आदमी है कौन?   सामने मोटरसाइकिल दनदनाते दरोगाजी दिख गए। दुआ-सलाम के बाद उनसे पूछ ही लिया आम आदमी के बाबत। आम आदमीका नाम आते ही साहब लार टपकाते बोले - आम आदमी यानी पका फल, जिसे चूसने के बाद गुठली की तरह फेंक दिया जाता है। भाई साहब हमें तो यही ट्रेनिंग दी जाती है कि जब चाहो आम आदमी का मैंगो शेक बना लो या अचार डालकर मर्तबान में सजा लो। वैसे हमें आम आदमी का मुरब्बा बहुत पसंद है।    अभी आगे बढ़ा ही था कि एक रिक्शेवाला मिला। सोचा इनके भी विचार जान लेते हैं। पूछने पर पता चला कि वह पोस्ट