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प्रसन्नता से ईश्वर की प्राप्ति होती है

दो संयासी थे एक वृद्ध और एक युवा। दोनों साथ रहते थे। एक दिन महिनों बाद वे अपने मूल स्थान पर पहुंचे, जो एक साधारण सी झोपड़ी थी। जब दोनों झोपड़ी में पहुंचे। तो देखा कि वह छप्पर भी आंधी और हवा ने उड़ाकर न जाने कहां पटक दिया। यह देख युवा संयासी बड़बड़ाने लगा- अब हम प्रभु पर क्या विश्वास करें? जो लोग सदैव छल-फरेब में लगे रहते हैं, उनके मकान सुरक्षित रहते हैं। एक हम हैं कि रात-दिन प्रभु के नाम की माला जपते हैं और उसने हमारा छप्पर ही उड़ा दिया। वृद्ध संयासी ने कहा- दुखी क्यों हो रहे हों? छप्पर उड़ जाने पर भी आधी झोपड़ी पर तो छत है ही। भगवान को धन्यवाद दो कि उसने आधी झोपड़ी को ढंक रखा है। आंधी इसे भी नष्ट कर सकती थी किंतु भगवान ने हमारी भक्ति-भाव के कारण ही आधा भाग बचा लिया। युवा संयासी वृद्ध संयासी की बात नहीं समझ सका। वृद्ध संयासी तो लेटते ही निंद्रामग्न हो गया किंतु युवा संयासी को नींद नहीं आई। सुबह हो गई और वृद्ध संयासी जाग उठा। उसने प्रभु को नमस्कार करते हुए कहा- वाह प्रभु, आज खुले आकाश के नीचे सुखद नींद आई। काश यह छप्पर बहुत पहले ही उड़ गया होता। यह सुनकर युवा संयासी झुंझला कर बोला- एक त

नये साल की शुरुआत पॉजिटिव थिंकिग के साथ

सक्सेस केवल मेहनत से नहीं मिलती, इसके लिए पॉजिटिव नजरिया भी होना चाहिए। कई लोग थोड़ी सी परेशानियों से घबरा जाते हैं, जब संकट आता है तो यह मानकर की सारी मेहनत बेकार गई, वे निराश होकर बैठ जाते हैं। सफलता उन्हें मिलती है जो कभी निराश नहीं होते, परेशानी और मुसीबत में भी अपने लिए कुछ पॉजिटिव ही तलाशते हैं। जो चुनौतियों स्वीकार करते हैं और उन चुनौतियों को पूरा करने में पूरे मन से लग जाते हैं, सफलता उन्हें जल्दी मिल जाती है। एक बार नारद मुनि धरती पर घूमते हुए एक जंगल में पहुंचे। वहां उन्होंने एक अजीब नजारा देखा एक साधु एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या कर रहा है, दूसरी ओर एक ग्वाला पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजा रहा है। नारद को देखकर दोनों उनके पास आ गए। साधु ने नारदजी से कहा भगवन आप तो सारे लोकों में घूमते हैं, क्या आप मेरा एक काम करेंगे? नारदजी ने कहा बताओ, साधु ने कहा मैं कई सालों से तपस्या कर रहा हूं क्या आप भगवान विष्णु से पूछकर बता सकते हैं कि मुझे मोक्ष कब मिलेगा? नारद ने कहा ठीक मैं अभी पूछकर आता हूं। तभी ग्वाले ने भी उनसे कहा अब आप जा ही रहे हैं तो मेरे बारे में भी पूछ लेना कि मुझे कब मोक्ष

खुशी ढूंढने से नहीं मिलेगी

एक छोटे से घुटने के बल चलने वाले बच्चे ने एक दिन सूर्य के प्रकाश में खेलते हुए अपनी परछाई देखी। उसे एक अद्भुत वस्तु लगी क्योंकि वह हिलता तो उसकी वह छाया भी हिलने लगती थी। वह उस छाया का सिर पकडऩे की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह छाया के सिर को पकडऩे के लिए जाता वह दूर हो जाता। वह जितना आगे जाता छाया उससे उतनी ही दूर चली जाती। उसके और छाया के बीच फासला कम नहीं होता था। थक कर और असफलता से वह रोने लगा। इतने में जब उस बच्चे की मां की नजर उस पर पड़ी तो उसने आकर उस बच्चे का हाथ उसके सिर पर रख दिया। बस फिर क्या था। वह बच्चा हंसने लगा क्योंकि उसने अपने सिर के साथ ही छाया के सिर को भी पकड़ लिया था। हम भी उसी बच्चे की तरह हैं, जो छाया में खुशी तलाशने में लगे हैं। जिन्दगी एक छाया है और हम उसी छाया को सच मानकर उसके पीछे दौड़ रहे हैं बल्कि सच तो यही है कि हमारी इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। इन्हें जितना पूरा करो ये उतनी बढ़ती जाती हैं। आज हम जिन चीजों को अपनी जिन्दगी मानकर एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं। ये सब सिर्फ हमें पल दो पल की खुशी दे सकती हैं। जैसे किसी घर में हमेशा टेंशन बनी रहती है। घर के स

बिच्छु का स्वभाव है डंक मारना और हमारा...?

परमात्मा ने सभी जीवों को अपना अलग-अलग स्वभाव दिया है। सभी प्राणी उसी स्वभाव के अनुसार जीवन जीते हैं। जैसे बिच्छु का स्वभाव होता है डंक मारना। ऐसी ही एक कथा है: एक ज्ञानी और तपस्वी संत थे। दूसरों के दुख दूर करने में उन्हें परम आनंद प्राप्त होता था। एक बार वे सरोवर के किनारे ध्यान में बैठे हुए थे। तभी उन्होंने देखा एक बिच्छु पानी में डूब रहा है। वे तुरंत ही उसे बचाने के लिए दौड़ पड़े। उन्होंने जैसे ही बिच्छु को पानी से निकालने के लिए उठाया उसने स्वामीजी को डंक मारना शुरू कर दिया और वह संत के हाथों से छुटकर पुन: पानी में गिर गया। स्वामीजी ने फिर कोशिश परंतु वे जैसे ही उसे उठाते बिच्छु डंक मारने लगता। ऐसा बहुत देर तक चलता रहा, परंतु संत ने भी हार नहीं मानी और अंतत: उन्होंने बिच्छु के प्राण बचा लिए और उसे पानी से बाहर निकाल लिया। वहीं एक अन्य व्यक्ति इस पूरी घटना को ध्यान से देख रहा था। जब संत सरोवर से बाहर आए तब उस व्यक्ति ने पूछा- स्वामीजी मैंने देखा आपने किस तरह जहरीले बिच्छु के प्राण बचाए। बिच्छु को बचाने के लिए अपने प्राण खतरे में डाल दिए। जब वह बार-बार डंक मार रहा था तो फिर आपने उसे क

माता-पिता को स्वार्थपूर्ति का माध्यम न समझें

माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीवन में बहुत कुछ करते हैं। वे बच्चों की जरुरतों को पूरा ध्यान रखते हैं लेकिन अक्सर देखने में यह आता है कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और मां-बाप बुढ़े। तो बच्चे उन्हें घर का अनावश्यक सामान समझने लगते हैं जबकि उम्र के इस पढ़ाव पर उन्हें अपनों के प्रेम की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। इसलिए अपने माता-पिता की आवश्यकताओं को समझें और उनके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें। एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ के आस-पास एक बच्चा खेलने आया करता था। बच्चे और पेड़ की दोस्ती हो गई। पेड़ ने उस बच्चे से कहा तू आता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बच्चा बोला लेकिन तुम्हारी शाखाएं बहुत ऊंची है मुझे खेलने में दिक्कत होती है। बच्चे के लिए पेड़ थोड़ा नीचे झुक गया। वह बच्चा खेलने लगा। एक बार बहुत दिनों तक बच्चा नहीं आया तो पेड़ उदास रहने लगा। और जब वह आया तो वह युवा हो चुका था। पेड़ ने उससे पूछा तू अब क्यों मेरे पास नहीं आता? वह बोला अब मैं बड़ा हो गया हूं। अब मुझे कुछ कमाना है। पेड़ बोला मैं नीचे झुक जाता हूं तो मेरे फल तोड़ ले और इसे बेच दे। तेरी समस्या का समाधान हो जाएगा। इस तरह वह पेड़

सुख ही नहीं, कभी-कभी दु:ख भी देता है पैसा

कभी-कभी जरूरत से ज्यादा धन भी घर-परिवार में अशांति फैला देता है। धन का अपना स्वभाव है, वह सीमित मात्रा में मिलता रहे, जरूरत के काम पूरे होते रहें तो कभी परेशानी नहीं आती लेकिन जब अचानक बड़ी मात्रा में पैसा मिल जाता है तो वह परिवार में कहीं-न-कहीं लालच फैलाने का काम करता है। व्यक्ति धन संग्रह करने वाला और लालची होने लगता है यही स्वभाव उसके दु:ख का कारण बनता है। एक गांव में एक सेठ और बढई पड़ोसी थे। सेठ बड़ा पैसे वाला था लेकिन उसे कोई संतान नहीं थी। उसके घर में केवल पत्नी और बूढ़ी मां थी। इतना धनवान होने के बाद भी उसके घर में शांति नहीं थी। वे दोनों अक्सर झगड़ते रहते थे। वहीं दूसरी ओर बढ़ई के घर में उसकी पत्नी और दो बच्चे थे, वे गरीब थे मगर बड़े प्रेम से रहते थे। एक दिन सेठानी ने सेठ को अपने पास बुलाया और बढई के घर में झांकते हुए कहा कि ये लोग गरीब हैं मगर फिर भी कितने खुश हैं। सेठ ने पत्नी से कहा कि संतोषी को झोपड़ी भी महल लगती है। सेठानी सेठ जी की बात को समझ नहीं पाई। तब सेठ ने सेठानी को समझाने के लिए एक उपाय किया। सेठ ने अगले दिन पैसों से भरी एक पोटली बढ़ई के घर में फेंक दी। जब बढ़ई ने

भरोसा करो लेकिन...

किसी भी व्यक्ति चाहे वो कैसा भी हो उसे सुधरने को मौका देना और उसे क्षमा करना ठीक है लेकिन किसी भी दुष्ट व्यक्ति पर आंख बंद करके विश्वास आपको दुख पहुचाने के साथ ही परेशानी में डाल सकता है। धोखे से बचने के लिए जरुरी है हमेशा भरोसा करें लेकिन सतर्कता के साथ क्योंकि किसी भी व्यक्ति की जो मूल प्रवृत्ति होती है वह उसे चाहकर भी नहीं छोड़ पाता। इसमें गलती उस व्यक्ति की नहीं, आपकी है। एक व्यक्ति हमेशा अपने कामों से लोगों को परेशान करता था। लोग उससे बहुत दुखी थे। वह लोगों को परेशान करके बहुत खुश होता था। एक दिन वह बीमार हो गया। अचानक उसके व्यवहार में बदलाव आया। वह सब से ठीक से पेश आने लगा। उसके व्यवहार से सभी को आश्चर्य होने लगा लेकिन उसके रिश्तेदारों और लोगों को लगा कि शायद वह सुधर गया है। इसलिए सभी का व्यवहार धीरे-धीरे उसके प्रति बदलने लगा। एक दिन उसकी तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई तो उसने अपनी कालोनी वालों और रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और कहा कि अगर आप सभी लोग चाहते हैं कि मरने के बाद मेरी आत्मा को शांति मिले तो आप सभी को मुझ से वादा करना होगा कि आप मेरी अंतिम इच्छा की पूर्ति करेंगें। लोंगो ने

अच्छे मित्रों को कभी धोखा ना दें...

एक मस्त-मौला बंदर था जो कि किसी नदी के किनारे फलदार वृक्षों पर रहता था। दिनभर पेड़ों पर मस्ती करता और वहीं से फल तोड़कर खाता और अपने उदर की पूर्ति करता था। इसी तरह उसका जीवन चल रहा था। एक दिन वह वृक्ष पर बैठा फल खा रहा था तभी एक मगरमच्छ किनारे पर आया और वह इधर-उधर ललचाई नजरों से देखने लगा। उसकी हालत देखकर सहसा ही अंदाजा हो रहा था कि वह बहुत भुखा और व्याकुल है। बंदर उसे देख रहा था, मगरमच्छ की यह हालत देखकर बंदर के मन में उसके लिए दया की भावना जाग गई और उसने मगरमच्छ से पूछा क्या हुआ भाई? इतने परेशान क्यूं हो? मगरमच्छ ने जवाब दिया बहुत दिनों से भुखा हूं कोई शिकार नहीं मिला, इसी वजह से परेशान हूं। बंदर को दया आई और उसने कुछ फल तोड़कर उसकी ओर फेंक दिए, मगरमच्छ को रसदार और स्वादिष्ट फल खा कर आनंद की अनुभूति हुई। उसे खुश देखकर बंदर ने कुछ और फल उसे दे दिए। इसी तरह वह दिन बीत गया। अगले फिर मगरमच्छ बंदर के पास आ गया और बंदर ने उसे फल खिलाए। अब उनकी दोस्ती गहरी होती गई। रोज शाम को मगरमच्छ कुछ फल अपनी पत्नी के लिए भी ले जाने लगा। मगरमच्छ की पत्नी ने पूछा आप रोज-रोज इतने फल कहां से लाते हैं? इस पर

जलन आदमी को अन्धा बना देती है

जलन एक ऐसी चीज है जो अक्सर इंसान को दूसरे इंसान का दुश्मन बना देती है चाहे वह कोई अपना को या पराया। जलन के चलते आज आदमी अपनों को भी नुकसान पहुंचाने में नहीं झिझकता। आज कोई भी किसी को खुद से ज्यादा समर्थ या आगे बढ़ते हुऐ नहीं देख सकता। भीम शक्तिशाली और पराक्रमी थे वे खेल खेल में धृतराष्ट्र के बेटों को परेशान किया करते थे वे कभी पेड़ पर चढ़े कौरवों को पेड़ से गिरा देते तो कभी एक साथ दस दस लोगों को बाल पकड़कर खींचते। कभी उनको कुश्ती में हरा देते कभी सबको दौड़ में पीछे कर देते।भीमसेन ऐसा खेल खेल में करते थे। लेकिन दुर्योधन को भीम की शक्तियों से बड़ी जलन होती वह किसी भी तरह भीम को मारना चाहता था। एक दिन पांडव और कौरव वन में घूमने गए जब सभी लोग वहां खाना खाने बैठे तभी दुर्योधन ने चोरी भीम के खाने में जहर मिला दिया। भीम उस खाने को खाने के बाद बेहोश हो गए तब दुर्योधन ने अपने साथियों के साथ मिलकर भीम को नदी में फेंक दिया। तब भीम नागलोक पहुंचे चूंकि नागलोक भीम का ननिहाल था इसलिए नागों ने भीम को पहचान लिया और उसे जहर से मुक्त कर वरदान दिया कि वह दस हजार हाथियों जैसा बलशाली होगा और तब भीम ने कौर

सबको खुश रखना है अगर...

इंसान की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है किसी को खुश रखना अगर आप चाहते हैं कि सभी आपको याद रखें तो आप जहां भी जाएं दूसरों को खुश रखने की कोशिश करें लेकिन खुश रहने के लिए सबसे पहले आप जो भी काम कर रहे हैं उसमें आपकी सौ प्रतिशत खुशी जरूरी है, तभी आप दूसरों को खुशी दे पाएंगे।एक महानगर में आंधी आई, उसमें बड़े-बड़े पेड़ धराशायी हो गए। बहुत सारे लोगों की मृत्यु हो गई। आंधी में कई लोग बेघर हो गए, कई बच्चे अनाथ हो गए। कई मांओं की गोद सुनी हो गई। दूसरी जगहों से उस महानगर का संबंध टूट गया। जिससे पूरे शहर में अव्यवस्था फैल गई। यह देखकर आंधी ने अपनी छोटी बहन बसंती बयार से प्रश्र किया क्या तुम मेरे समान शक्ति नहीं चाहती? जब मैं उठती हूं तो बड़े-बड़े भवनों को भी में खिलौनों की तरह मसल देती हूं। मेरी शक्ति देखकर अच्छे पहलवान भी अपने घरों में दुबक जाते हैं। पशु-पक्षी भी जान बचाकर भागते हैं।यह सुनकर बसंती बयार कुछ नहीं बोली और अपनी यात्रा पर निकल गई। उसे जाते देख आंधी भी उसके पीछे गई। आंधी ने देखा उसके आते देख नदियां, खेत, जंगल सभी मुस्कुराने लगे,बागों में फूल खिल उठे। आंधी ने जब बसंती बयार के आने पर जो खुशी

छुरी से भी तेज होती है शब्दों की चुभन

इस दुनिया में सिर्फ जुबान ही कड़वी और मीठी भी है ऐसा कहा जाता है कि किसी तीखे हथियार से ज्यादा गहरे जख्म किसी के तीखे शब्दों के होते हैं क्योंकि हथियार से किए गए जख्म तो भर जाते हैं लेकिन शब्दों के जख्म कभी नहीं भरते। आपकी बोली भी आपके व्यक्तित्व का एक आइना होती है अगर आप मीठा नहीं बोल सकते तो कोई बात नहीं लेकिन कोशिश करें कि आप जो भी बोले उससे किसी की भावनाओं का ठेस ना पहुंचे। एक बार चार दोस्त बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे। उनमें से एक ने पूछा कि संसार में मीठा क्या है? और तीखा क्या है? सभी ने अपनी राय दी किसी ने कहा गुड़ मीठा है। किसी ने कहा शक्कर। किसी ने कहा रसगुल्ले सभी ने मनपसंद चीजों के नाम बताए।उनमें से एक दोस्त ने कहां कि मेरी राय में तो जुबान ही कड़वी और मीठी होती है। सब दोस्तों ने उसका खुब मजाक बनाया कहा ये कैसी अजीब बात है। उस बात को बहुत दिन गुजर गए। एक दिन उस दोस्त ने अपने सारे दोस्तों को खाने पर बुलाया। उसने अपने घर में दावत की पूरी तैयारी कर रखी थी। खाना लाजवाब बना था। अब सभी लोग खाना खाने बैठे तो वह बोला आप लोग तो ऐसे खा रहे हैं जैसे कभी खाना देखा ही नहीं ये सुनकर सभी दोस्त

आपका एटिट्युड क्या है?

एक बार की बात है एक जगह मंदिर बन रहा था और एक राहगीर वहां से गुजर रहा था। उसने वहां पत्थर तोड़ते हुए एक मजदूर से पूछा कि तुम क्या कर रहे हो और उस पत्थर तोड़ते हुए आदमी ने गुस्से में आकर कहा देखते नहीं पत्थर तोड़ रहा हूं आंखें हैं कि नहीं? वह आदमी आगे गया उसने दूसरे मजदूर से पूछा कि मेरे दोस्त क्या कर रहे हो? उस आदमी ने उदासी से छैनी हथोड़ी से पत्थर तोड़ते हुए कहा रोटी कमा रहा हूं बच्चों के लिए बेटे के लिए पत्नी के लिए । उसने फिर अपने पत्थर तोडऩे शुरु कर दिए । अब वह आदमी थोड़ा आगे गया तो देखा कि मंदिर के पास काम करता हुआ एक मजदूर काम करता हुआ गुनगुना रहा था। उस आदमी ने उससे पूछा कि क्या कर रहे हो? उसने फिर पत्थर तोड़ते उस मजदूर से पूछा क्या कर रहे हो मित्र। उस आदमी ने कहा भगवान का मंदिर बना रहा हूं । और इतना कहकर उसने फिर गाना शुरु कर दिया । ये तीनों आदमी एक ही काम कर रहे हैं पत्थर तोडऩे का पर तीनों का अपने काम के प्रति दृष्टीकोण अलग -अलग है। तीसरा मजदूर अपने काम का उत्सव मना रहा है। तीनों एक ही काम कर रहें हैं लेकिन तीसरा मजदूर अपने काम को पूजा की तरह कर रहा है इसीलिए खुश है। जिन्दगी म

हृदय कभी नहीं भरता

एक महल के द्वार पर भीड़ लगी थी। किसी फकीर ने राजा से भीख मांगी थी। राजा ने उससे कहा था जो भी चाहते हो मांग लो। वह राजा जो भी सुबह सबसे पहले उससे भीख मांगता था वह उसे इच्छित वस्तु देता था। उस दिन वह भिखारी सबसे पहले राजा के महल पहुंचा था। फकीर ने राजा के आगे अपना छोटा सा पात्र बढ़ाया और बोला इसे सोने की मुद्राओं से भर दो। राजा ने उसके पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली तो उसे पता चला की वह पात्र जादुई है। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई वह उतना अधिक खाली होता गया। फकीर बोला नहीं भर सकें तो वैसा बोल दे मैं खाली पात्र लेकर चला जाउंगा। ज्यादा से ज्यादा लोग यही कहेंगे कि राजा अपना वचन पूरा नहीं कर सका। राजा ने अपना सारा खजाने खाली कर दियें,लेकिन खाली पात्र खाली ही था। उसके पास जो कुछ था, सब उस पात्र में डाल दिया गया लेकिन वह पात्र न भरा तो न भरा। तब राजा ने पूछा भिक्षु तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। इसे भरना मेरे बस की बात नहीं हैं। क्या मैं पूछ सकता हुं कि इस पात्र का रहस्य क्या है? कोई विशेष रहस्य नहीं है यह इंसान के हृदय से बना है। क्या आपको पता नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी नहीं भरता धन स

अच्छा बनना है तो खुद सोचो

इंसान को अगर खुद को बेहतर बनाना है और अपनी किसी बुराई को छोडऩा है तो उसे इस बात की शुरूवात खुद से ही करनी होगी क्यों कि किसी और के भरोसे आप अपनी किसी बुराई को नहीं छोड़ सकते। बस जरूरत है तो केवल दृढ़ विश्वास की । एक बार भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के पास एक शराबी युवक आया और हाथ जोड़कर कहने लगा कि गुरूजी मैं बहुत परेशान हूं । यह शराब मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती। आप कुछ उपाए बताइए जिससे मुझे पीने की इस आदत से मुक्ति मिल सके।विनोबाजी ने कुद देर तक सोचा और फिर बोले- अच्छा बेटा तुम कल मेरे पास आना, किंतु मुझे बाहर से ही आवाज देकर बुलाना, मैं आ जाऊंगा युवक खुश होकर चला गया। अगले दिन वह फिर आया और विनोबाजी के कहे अनुसार उसने बाहर से ही उन्हें आवाज लगाई। तभी भीतर से विनोबाजी बोले- बेटा। मैं बाहर नहीं आ सकता। युवक ने इसका कारण पूछा, तो विनोबाजी ने कहा- यह खंबा मुझे पकड़े हुए है, मैं बाहर कैसे आऊं। ऐसी अजीब सी बात सुनकर युवक ने भीतर झांका, तो विनोबाजी स्वयं ही खंबे को पकड़े हुए थे। वह बोला- गुरुजी। खंबे को तो आप खुद ही पकड़े हुए हैं। जब आप इसे छोडेंगे, तभी तो खंबे से अलग होंगे न।युवक की बा

सफलता अकेली ठीक नहीं, शांति भी हो

युवाओं को सफलता तो खुब मिल रही है, सारे सुख-सुविधाएं भी जुटाई जा रही हैं, मल्टीनेशनल्स में अच्छे पैकेज के साथ नौकरी भी है लेकिन गहराई से देखने पर पता चलता है कि अभी कुछ चूक हो रही है। हम भीतर से अशांत हैं क्योंकि हमारी जो जड़ें हैं, वे कमजोर होती जा रही हैं, आध्यात्मिक रूप से हम खोखले हैं। आज जितनी भी शिक्षा, ज्ञान, समझ दी जा रही है, पाठ पढ़ाया जा रहा है और अक्ल बांटी जा रही है, उसमें यह शर्त के साथ शपथ के रूप में बताया जा रहा है कि हर काम में, हर हाल में सफल होना ही है। असफल लोग जितने हताश और परेशानी में हैं सफल लोग उससे भी ज्यादा परेशानी और तनाव में हैं। सफल हो जाएं और फिर लगातार सफल बने रहें, यह इरादा एक दिन दुराग्रह में बदल जाता है और इससे भी आगे जाकर नशे का रूप ले लेता है। हर बार सफल होने की इच्छा धीरे-धीरे सदैव जीत की आकांक्षा में बदल जाती है। सफलता और जीत के बारीक फर्क को समझ लें। सफलता में स्वहित का भाव रहता है परन्तु परहित की कामना भी बनी रहती है। सफल लोग अपनी सफलता में दूसरों का नुकसान नहीं करना चाहते, किन्तु जीत, पराजय के बिना हासिल होती ही नहीं। दूसरों को पराजित करने में हम

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं

मुसीबत में होती है सच्चे प्यार की पहचान

आज बहुत सारे लोग सच्चे प्यार का दम भरते हैं लेकिन अगर सच्चाई पर गौर किया जाये तो हम देखते हैं कि वे ही लोग जरा सी मुसीबत आते ही अपने फर्ज से मुंह मोड़ लेते हैं और उनके सच्चे प्यार के दावे खोखले रह जाते हैं। एक व्यक्ति ने अपने परिवार के खिलाफ जाकर एक सुन्दर लड़की से शादी की और रात दिन पत्नी को खुश करने में जुट गया। एक बार वह पत्नी के साथ नौका विहार के लिए गया तभी अचानक तूफान आया और नाव डूबने लगी पत्नी को परेशान देखकर वह कहने लगा कि तुम घबराओ नहीं में तुम्हें डूबने नहीं दूंगा और पत्नी को कंधे पर बिठाकर तैरने लगा। बहुत देर तक कोई किनारा नहीं आया और वह युवक भी थक चुका था तभी उसके मन में स्वार्थ जागने लगा। वह अपनी पत्नी से बोला कि जब तक संभव हुआ मैंने तुम्हें बचाया लेकिन अब मैं थक चुका हूं और अगर मैं इसी तरह तुम्हें लेकर तैरता रहा तो मैं भी डूब जाऊंगा अब मैं मेरी जान की परवाह करूंगा क्योंकि अगर मैं जिन्दा रहा तो दूसरा विवाह कर सकता हूं।और इतना कह कर वह मझधार में अपनी पत्नी को छोड़कर चला गया। कथा का सार है कि सच्चे प्यार की पहचान कठिन समय में ही होती है और जो मुसीबत में साथ देता है वही सच्चा

जीने का अंदाज....एक बार ऐसा भी करके देखिए...

जीवन को यदि गरिमा से जीना है तो मृत्यु से परिचय होना आवश्यक है। मौत के नाम पर भय न खाएं बल्कि उसके बोध को पकड़ें। एक प्रयोग करें। बात थोड़ी अजीब लगेगी लेकिन किसी दिन सुबह से तय कर लीजिए कि आज का दिन जीवन का अंतिम दिन है, ऐसा सोचनाभर है। अपने मन में इस भाव को दृढ़ कर लें कि यदि आज आपका अंतिम दिन हो तो आप क्या करेंगे। बस, मन में यह विचार करिए कि कल का सवेरा नहीं देख सकेंगे, तब क्या करना...? इसलिए आज सबके प्रति अतिरिक्त विनम्र हो जाएं। आज लुट जाएं सबके लिए। प्रेम की बारिश कर दें दूसरों पर। विचार करते रहें यह जीवन हमने अचानक पाया था। परमात्मा ने पैदा कर दिया, हम हो गए, इसमें हमारा कुछ भी नहीं था। जैसे जन्म घटा है उसकी मर्जी से, वैसे ही मृत्यु भी घटेगी उसकी मर्जी से। अचानक एक दिन वह उठाकर ले जाएगा, हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। हमारा सारा खेल इन दोनों के बीच है। सच तो यह है कि हम ही मान रहे हैं कि इस बीच की अवस्था में हम बहुत कुछ कर लेंगे। ध्यान दीजिए जन्म और मृत्यु के बीच जो घट रहा है वह सब भी अचानक उतना ही तय और उतना ही उस परमात्मा के हाथ में है जैसे हमारा पैदा होना और हमारा मर जाना। इसलिए आज

प्रेम तो शक्ति है, उसे अपनी कमजोरी न बनने दें ...

हमारी कमजोरियां हमें न सिर्फ नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि पतन भी करा देती हैं। श्रीराम के पिता राजा दशरथ की कमजोरी रानी कैकेयी थीं। राजा दशरथ ने कोप भवन में बैठी रानी को मनाने के लिए ऐसे वचन कहे थे- प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें॥ यानि कि हे प्रिये, मेरी प्रजा, कुटुम्बी, सारी सम्पत्ति, पुत्र और यहां तक कि मेरे प्राण ये सब तेरे अधीन हैं। तू जो चाहे मांग ले पर अब कोप त्याग, प्रसन्न होजा। यह राजा की कमजोरी थी। कैकेयी की कमजोरी उनकी दासी मंथरा थी जो कि स्वभाव से ही लालची थी। करइ बिचारू कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती॥ वह दुर्बुद्धि, नीच जाति वाली दासी विचार करने लगी कि किस प्रकार से यह काम रातोंरात बिगड़ जाए। श्रीराम के राजतिलक के पूर्व कैकेयी ने मंथरा की बात सुनी, उसके बहकावे में आ गईं और दशरथ से भरत के लिए राजतिलक तथा श्रीराम के लिए वनवास मांग लिया। अपनी कमजोरी के वश में आकर कैकेयी ने रामराज्य का निर्णय उलट दिया और तो और, दासी का सम्मान करते हुए कहा - करौ तोहि चख पूतरि आली। यदि मेरा यह काम होता है, मैं तुझे अपनी आंखों की पुतली बना लूंगी। मनुष्य अपनी ही कमजो

सिर्फ शिक्षा ही सबकुछ नहीं होती, ये गुण भी जरूरी हैं

शिक्षा का महत्व हर युग में रहा है। और इस समय तो विद्या का कोई विकल्प ही नहीं है। निरक्षरता बोझ और अपराध है लेकिन इस बात के लिए सावधान रहा जाए कि विद्या का दुरुपयोग न हो। शिक्षा के साथ सद्गुण होना बड़ा जरूरी है। आज के दौर में विद्या और चरित्र पीठ करके बैठ गए हैं। परीक्षाओं में अच्छे-अच्छे नंबर लाने वाले भी सद्गुण क्या होते हैं यह नहीं जान पा रहे हैं। पढ़ा-लिखा आदमी जब दुर्गुण पाल लेता है तो बहुत खतरनाक हो जाता है। हम रावण का उदाहरण देख चुके हैं। रावण विद्वान था लेकिन उसने दुर्गुण पाल लिए थे तो समाज आज तक उसकी कीमत चुका रहा है। इस मामले में हनुमानजी अपने चरित्र से एक सुंदर संदेश दे रहे हैं। हनुमानचालीसा की सातवीं चौपाई में उनके लिए लिखा गया है। बिद्यावान गुनी अति चातुर। रामकाज करिबे को आतुर।। आप विद्वान, गुणी और बहुत चतुर हैं। राम कार्य के लिए आप सदैव उत्सुक और उत्साहित रहते हैं। एक तो हनुमानजी विद्वान हैं, उस पर चतुर भी हैं। कुछ लोग सिर्फ विद्वान होते हैं या फिर सिर्फ गुणी होते हैं, लेकिन हनुमानजी विद्वान, गुणी और चतुर भी हैं।इसी के साथ चतुर भी कैसे हैं, अतिचतुर। आज के जीवन में मनुष्य क

जब कोई अपना भटक जाए तो...

हमारे जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब हमारा कोई परिचित या परिजन गलत रास्ते पर चल पड़ता है और हम भी यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि हमें क्या करना? उस स्थिति में हम भी उसके भटकने के उतने ही बड़े दोषी होते हैं जितना वह स्वयं। क्योंकि हमारा भी यह कर्तव्य होता है कि हम उसे सही रास्ता दिखाएं। एक पिता के दो बेटे थे। बड़ा बेटा समझदार था जबकि छोटा थोड़ा चंचल था। पिता के पास बहुत संपत्ति थी। जब दोनों बेटे बड़े हुए तो उनके स्वभाव को देखते हुए उनके पिता ने सोचा कि अब इन्में संपत्ति का बंटवारा कर देना चाहिए। छोटे बेटे के हिस्से में जो संपत्ति आई उसे वह ले जाकर शहर में ठिकाने लगा आया और एक दिन कंगाल हो गया। जो बड़ा बेटा था वह गांव में रहा और मेहनत कर अपनी सम्पत्ति को दोगुना कर लिया। एक दिन जब पिता को मालूम हुआ कि छोटा बेटा कंगाल हो गया है तो उसे वापस बुलाया कि अपने पास बहुत संपत्ति है तू वापस आ जा। बेटा जब वापस आने लगा तो पिता ने उसके स्वागत की बड़ी तैयारी की। जब यह बात बड़े बेटे को पता चली तो उसने कहा पिताजी यह आप क्या कर रहे हैं? मैंने जीवनभर आपकी सेवा की और उसने सारा पैसा खत्म कर दिया। फिर भी आप

ध्यान रहे...इस रिश्ते में गांठ न लगे

धागे का उपयोग इसी बात में है कि वह सही सूई में पिरोया जाए और उसमें गलत वक्त में गाँठ न लग जाए। सिलते वक्त बिना धागे की सूई चुभने के अलावा कुछ नहीं करेगी और बिना सूई का धागा गठाने में उलझने के सिवाय और क्या कर सकेगा। इसका सीधा संबंध मनुष्य और परमात्मा के रिश्ते से है। जिन्दगी के धागे में लगी इस गठान को ही ऋषियों ने ग्रंथी कहा है। मनोग्रंथी खुली और उस परमशक्ति से साक्षात्कार हुआ। वो अंशी है और हम उसका अंश हैं। इसीलिए उस ईश्वर की सारी खूबियाँ हमारे भीतर भी हैं। पर इस ग्रंथी के कारण जिसे माया भी कहा गया है, हम उस भगवान् से दूर रह जाते हैं। हम सब एक ऐसा अंगारा बन जाते हैं जो अपने ही ऊपर राख जमाए बैठे हैं। इस कालिख के नीचे हमारा ओज-तेज, प्रकाश, ऊष्मा सब अकारण दबा है। अंगारा पूरी तरह राख में बदल जाए इसके पहले उसमें हलचल कर दें, ध्यान की फूँक से उसे प्रज्वलित कर दिया जाए। कभी-कभी हम व्यावहारिक जीवन में कहते भी हैं- इसने पूर्वाग्रह की गाँठ बाँध ली है... ऐसा हमने भी भगवान् के मामले में कर लिया है। धागे में गठान लगा दी। बारीकी से सोचें, गाँठ और धागा एक हैं फिर भी अलग हैं। यदि खोल दें तो गाँठ गायब

असफलता ही सफलता की कुंजी

कूर्म पुराण की एक कथा के अनुसार मध्य भारत के किसी प्रांत के एक राजा ने इस बार पूरी तैयारी से शत्रु सेना पर हमला किया। घमासान युद्ध हुआ। राजा और उसके सैनिक बहुत ही वीरता से लड़े, किंतु सातवीं बार भी हार गए। राजा को अपने प्राणों के लाले पड़ गए। वह अपनी जान बचाकर भागा। भागते-भागते घने जंगल में पहुंच गया और एक स्थान पर बैठकर सोचने लगा कि सात बार हार चुकने के बाद अब तो शत्रु से अपना राज्य फिर से प्राप्त करने की कोई आशा ही नहीं रह गई है। अब मैं इसी जंगल में रहकर एकांत जीवन बिताऊंगा। जीवन में अब क्या शेष रह गया है। इन्हीं निराशाजनक विचारों में खोया राजा थकान के मारे सो गया। जब काफी देर बाद उसकी नींद खुली, तो सामने देखा कि उसकी तलवार पर एक मकड़ी जालाबना रही है। वह ध्यान से यह दृश्य देखने लगा। मकड़ी बार-बार गिरती और फिर से जाला बनाती हुई तलवार पर चढऩे लगती है। इस तरह वह दस बार गिरी और दसों बार पुन: जाल बनाने में जुट गई। तभी वहां एक संत आए और राजा की निराशा जानकर बोले देखों राजन। मकड़ी जैसा छोटा सा जीव भी बार-बार हारकर निराश नहीं होता। युद्ध हारने को हार नहीं कहते बल्कि हिम्मत हारने को हार कहते

जो जिम्मेदारी मिले उसे निभाओ, सवाल मत करो....

अधिकतर लोगों के साथ यह समस्या है कि उन्हें कोई भी जिम्मेदारी दी जाए, वे कुछ न कुछ शिकायत करते ही रहते हैं। जीवन में अध्यात्म हो या व्यवसाय हर जगह तप जरूरी है। जब तक हम अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाते, सफलता कभी नहीं मिल सकती। अध्यात्म में भी सफलता का यही एक मार्ग है। प्रकृति या यूं कहें परमात्मा ने आपको जो काम दिया है उसे इमानदारी से बिना किसी शिकायत के पूरा करते चलें, आपको भगवान खुद ब खुद मिल जाएगा। यह कथा कर्तव्य और परमात्मा के संबंध को बताती है। बहुत पुरानी बात है, एक राज्य में जोरदार बारिश के कारण नदी में बाढ़ आ गई। सारा नगर बाढ़ की चपेट में आ गया। लोग जान बचाकर ऊंचे स्थानों की ओर भागे। बहुत से लोगों की जान गई। राज्य का राजा परेशान हो उठा। एक पहाड़ी से उसने नगर का नजारा देखा। सारा नगर पानी में डूब चुका था। राजा ने अपने मंत्रियों से बचाव कार्य पर चर्चा की। पंडितों को बुलाया गया। किसी भी तरह से बाढ़ का पानी नगर से निकाला जाए, बस सबको यही चिंता थी। राजा ने सिद्ध संतों से पूछा क्या कोई ऐसी विधि है जो नदी को उल्टा बहा सके, जिससे बाढ़ का पानी निकल जाए। पंडितों ने कहा ऐसी कोई विधि नहीं

जिंदगी पर सबसे भारी पड़ता है झूठ

आज के व्यवसायिक दौर में झूठ बोलना और झूठ के जरिए अपना काम निकालना आम हो गया है। लोग दिन में कई बार जाने-अनजाने झूठ बोलते रहते हैं लेकिन उन्हें उससे होने वाले नुकसान का अंदाजा नहीं होता। कई बार एक झूठ आपकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल बन जाता है। कई बार झूठ आपको पूरी तरह खत्म कर देता है। जीवन में जहां तक संभव हो, झूठ का प्रयोग न करें। अगर झूठ बोलना भी पड़े तो भी इससे बचने का प्रयास करें। महाभारत के अभिन्न पात्र दानवीर कर्ण ने जीवन में केवल एक बार ही झूठ बोला और यही झूठ उनके जीवन पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा। कर्ण ने अस्त्र विद्या भगवान परशुराम से सीखी थी, भगवान परशुराम का प्रण केवल ब्राह्मणों को ही शस्त्र विद्या सिखाने का था। कर्ण ब्राह्मण नहीं थे, लेकिन उन्होंने परशुराम से झूठ बोल दिया कि वो ब्राह्मण है। कर्ण की बात को सच मानकर परशुराम ने उन्हें शस्त्र की शिक्षा दे दी। एक दिन जंगल में कहीं जाते हुए परशुरामजी को थकान महसूस हुई, उन्होंने कर्ण से कहा कि वे थोड़ी देर सोना चाहते हैं। कर्ण ने उनका सिर अपनी गोद में रख लिया। परशुराम गहरी नींद में सो गए। तभी कहीं से एक कीड़ा आया और उसने कर्ण की जांघ पर

शब्दों की जरूरत न पड़े, रिश्ते ऐसे हों

आजकल पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव बढ़ गया है। लंबे समय तक बातें नहीं होती। एक-दूसरे की आवश्यकताओं को समझते नहीं, भावनाओं को पहचानते नहीं। रिश्ते ऐसे हों कि उनमें शब्दों की आवश्यकता ही न पड़े, बिना कहे-बिना बताए आप समझ जाएं कि आपके साथी के मन में क्या चल रहा है। ऐसी समझ प्रेम से पनपती है। यह रिश्ते का सबसे सुंदर हिस्सा होता है कि आप सामने वाले की बात बिना बताए ही समझ जाएं। दाम्पत्य के लिए राम-सीता का रिश्ता सबसे अच्छा उदाहरण है। इस रिश्ते में विश्वास और प्रेम इतना ज्यादा है कि यहां भावनाओं आदान-प्रदान के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। एक प्रसंग है वनवास के समय जब राम-सीता और लक्ष्मण चित्रकूट के लिए जा रहे थे। रास्ते में गंगा नदी पड़ती है। गंगा को पार करने के लिए राम ने केवट की सहायता ली। केवट ने तीनों को नाव से गंगा नदी के पार पहुंचाया। केवट को मेहनताना देना था। राम के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। वे केवट को देने के लिए नजरों ही नजरों में कुछ खोजने लगे। सीता ने राम के हावभाव से ही उनके मन की बात जान ली। वे बिना कहे ही समझ गई कि राम केवट को देने के लिए कोई भेंट के लायक वस्तु ख

छोटी सी बात भी बदल देती है जीवन की दिशा

हम कई बार अनजाने में ही कोई भी बात मुंह से निकाल देते हैं। बिना सोचे-समझें बोली गई कई बातें हमारा जीवन बदल देती हैं। कई बार थोड़ा सा गुस्सा या अनजाने में किया गया मजाक भी भारी पड़ सकता है। इसी कारण से विद्वानों ने कहा है कि हमेशा तौलों फिर बोलो। कई बार जरा सी बातें भी इतना तूल पकड़ती है कि उसका परिणाम आपकी जिंदगी की दिशा बदल देता है। श्रीमद् भागवत पुराण में एक कथा इसी बात की ओर संकेत करती है। वृषपर्वा दैत्यों के राजा थे, उनके गुरु थे शुक्राचार्य। वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा और शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी दोनों सखी थीं लेकिन शर्मिष्ठा को राजा की पुत्री होने का अभिमान भी बहुत था। दोनों साथ-साथ रहती थीं, घूमती, खेलती थीं। एक दिन शर्मिष्ठा और देवयानी नदी में नहा रही थीं, तभी देवयानी ने नदी से निकलकर कपड़े पहने, उसने गलती से शर्मिष्ठा के कपड़े पहन लिए। शर्मिष्ठा से यह देखा न गया और उसने अपनी दूसरी सहेलियों से कहा कि देखो, इस देवयानी की औकात, राजकुमारी के कपड़े पहनने की कोशिश कर रही है। इसका पिता दासों की तरह मेरे पिता के गुणगान किया करता है और यह मेरे कपड़ों पर अधिकार जमा रही है। देवयानी

रामायण क्या-क्या सिखाती है?

रामायण पौराणिक ग्रंथों में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब है। रामायण को केवल एक कथा के रूप में देखना गलत है, यह केवल किसी अवतार या कालखंड की कथा नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का रास्ता बताने वाली सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है। रामायण में सारे रिश्तों पर लिखा गया है, हर रिश्ते की आदर्श स्थितियां, किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करें, विपरित परिस्थिति में कैसे व्यवहार करेंं, ऐसी सारी बातें हैं। जो आज हम अपने जीवन में अपनाकर उसे बेहतर बना सकते हैं। - दशरथ ने अपनी दाढ़ी में सफेद बाल देखकर तत्काल राम को युवराज घोषितकर उन्हें राजा बनाने की घोषणा भी कर दी। हम जीवन में अपनी परिस्थिति, क्षमता और भविष्य को देखकर निर्णय लें। कई लोग अपने पद से इतने मोह में रहते हैं कि क्षमता न होने पर भी उसे छोडऩा नहीं चाहते। - राजा बनने जा रहे राम ने वनवास भी सहर्ष स्वीकार किया। जीवन में जो भी मिले उसे नियति का निर्णय मानकर स्वीकार कर लें। विपरित परिस्थितियों के परे उनमें अपने विकास की संभावनाएं भी तलाशें। परिस्थितियों से घबराएं नहीं। - सीता और लक्ष्मण राम के साथ वनवास में भी रहे, जबकि उनका जाना जरूरी नहीं था। ये हमें

लोगों का काम है कहना...

पुरानी फिल्म का एक गीत है, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...। यह गीत हमारे जीवन के साथ भी जुड़ा हुआ है। हम जब भी कुछ काम करते हैं, आसपास के लोग तरह-तरह की बात करते हैं। कुछ लोग हमारे काम की तारिफ करते हैं, तो कुछ बुराई। हमेशा ऐसा ही होता है क्योंकि लोगों का काम है कहना। पुराने समय की बात है। एक पिता अपने पुत्र के साथ गांव में रहते थे। वे एक दिन शहर से गधा खरीदकर अपने घर लौट रहे थे, रास्ता लंबा था। वे तीनों पिता-पुत्र और वह गधा पैदल ही आ रहे थे। तभी किसी ने कहा कि गधा लेकर आए हो तो पैदल क्यों चल रहे हो? गधे पर बैठकर जाओं। पिता-पुत्र को यह बात ठीक लगी। वे दोनों गधे पर बैठ गए। कुछ दूर चलने के बाद फिर किसी राहगीर ने कहा कि कितने निर्दयी पिता-पुत्र हैं, बेचारे गधे पर दोनों बैठ गए। यह सुनकर पिता ने पुत्र को गधे पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा। फिर कुछ दूर चलने के बाद किसी ने कहा कि कैसा पुत्र है? पिता तो पैदल चल रहा है और खुद गधे पर आराम से बैठा है। यह सुनकर पुत्र उतर गया और पिता को गधे पर बैठा दिया, पुत्र पैदल चलने लगा। फिर कुछ दूर चलने के बाद किसी व्यक्ति ने कहा कि कैसा बाप है ख

मांगने से नहीं, देने से बढ़ता है प्रेम

प्रेम... प्यार... इश्क... लव... मोहब्बत... प्रीत... चाहत... दिल्लगी... रुहानियत... एक अहसास है जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना अत्यंत दुष्कर है। प्रेम को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। यह सिर्फ भावनाओं का अटूट संबंध है। बहुत से लोगों का प्रश्न होता है कि प्रेम क्या है? प्रेम होता कैसे है? और जब होता है तो क्या होता है? प्रेम की महानता के ऐसे असंख्य किस्से, उदाहरण है जिन्हें हम कहीं ना कहीं अक्सर सुनते-पढ़ते और कहते रहते हैं। प्रेमियों के लिए आदर्श प्रेम है राधा-कृष्ण का प्रेम। श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन प्रेम ही सिखाता है। श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम सभी को ज्ञात है। उनकी शादी ना हो सकी पर आज भी पूजा राधा-कृष्ण की होती है। इसी बात से यह सिद्ध होता है कि प्रेम ही पूजनीय है। प्रेम का हमारे धर्म में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। तो प्रेम एक ऐसा अहसास है जो प्रेमियों के हृदय, जीवन में खुशियों को संचार कर देता है। प्रेम में डुबे प्रेमी दुनिया की बुराइयों से परे अपनी ही दुनिया में खुशियों और आनंद के रस में डुबे रहते हैं। प्रेम में पड़कर व्यक्ति का मन सभी बुराइयों से दूर जाता है। प्रेम बुरे से बुरे

दुख अपने और पराए की पहचान कराता है

दुख कहां से आता है? यह कोई नहीं बता सकता, क्योंकि दुख आने के असंख्य कारण है। दुख..., दर्द..., परेशानियां..., समस्याएं..., प्रॉब्लम्स इन शब्दों से आज कोई अछूता नहीं है। यह भी सच्चाई है कि सुख को जाने से रोका नहीं जा सकता और दुख को आने से। हर धर्म में सुख-दुख जीवन का मूल आधार बताए गए हैं। ये एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। सुख-दुख के संबंध में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है 'धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी, आपतकाल परखिए चारी।' यानी संकट के समय ही धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा होती है। सुख में तो सभी साथ देते हैं। सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र के दुख को देखकर दुखी होता है तथा उसके दुख दूर करने का हर तरह से प्रयास करता है। उसे हर तरह का सहयोग करता है। उसके अवगुणों को छिपाकर गुणों का बखान करता है। कवि दुष्यंत कुमार ने एक कविता में कहा है- दुख को बहुत सहेज कर रखना पडा हमें, सुख तो किसी कपूर की टिकिया सा उड़ गया। अर्थात् सुख कपूर की तरह है जो आग लगते ही तेजी से भभक कर जल उठता है और फिर बुझ जाता है। हालांकि उसकी स्मृति लंबे समय तक बनी रहती है। देखा जाए तो दुख ही हमारे जीवन का सर्वश्रे

विवेकानंद ने समझाया जाति व कर्म का भेद

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने परिचितों के मध्य बैठे वार्तालाप कर रहे थे कि उनका एक शिष्य आया और उन्हें प्रमाण निवेदन कर एक कोने में बैठ गया। स्वामीजी ने स्नेह से उसे अपने पास बैठने के लिए कहा, तो वह सकुचाते हुए उठा और उनके समक्ष जाकर खड़ा हो गया। उपस्थित सभी लोगों ने सोचा कि स्वामीजी का यह शिष्य विनम्रतावश ऐसा कर रहा है। स्वामीजी ने खड़े होकर उसका हाथ पकड़ा और अपने पास बैठा लिया। फिर उसके आने का प्रयोजन पूछा। वह बोला- गुरुवर, मेरी हार्दिक इच्छा है कि आप मेरे घर भोजन करें। क्या आपको मेरा निमंत्रण स्वीकार है। स्वामीजी ने सहर्ष कहा- क्यों नहीं, मैं तुम्हारे घर कल अवश्य आऊंगा और भोजन भी गृहण करूंगा। अगले दिन स्वामीजी तय समय पर उस शिष्य के घर पहुंचे और भोजना करना शुरु किया। कुछ करीबी लोग भी उनके साथ थे जिन्हें तब तक यह ज्ञात हो चुका था कि स्वामीजी का वह शिष्य एक निचली जाति से है। वे सभी स्वामीजी को रोकते हुए कहने लगे- आप कुलीन होकर इसके यहां भोजन कर स्वयं को अपवित्र क्यों कर रहे हैं? तब स्वामीजी ने उनसे कहा- भोजन तो जाति से नहीं, अन्न से बना है और आपके व हमारे घरों में बनने वाले भोजन जितना ह

दोनों का रिश्ता बड़ा खास है...

कर्मवादी लोग कहते हैं भाग्य कुछ नहीं होता, भाग्यवादी लोग कहते हैं किस्मत में लिखा ही होता है, कर्म कुछ भी करते रहो। भाग्यवादी और कर्मवादी लोगों की यह बहस कभी खत्म नहीं हो सकती। लेकिन यह भी सत्य है कि भाग्य और कर्म दोनों के बीच एक रिश्ता जरूर है। कर्म से भाग्य बनता है या भाग्य से कर्म करते हैं लेकिन दोनों के बीच कोई खास रिश्ता जरूर होता है। भाग्य और कर्म के बीच के इस रिश्ते को समझने के लिए यह कथा बहुत ही अच्छा उदाहरण हो सकती है। कहते हैं एक बार ऋषि नारद भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने शिकायती लहजे में भगवान से कहा पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है। भगवान ने कहा नहीं, ऐसा नहीं है, जो भी हो रहा है, सब नियती के मुताबिक ही हो रहा है। नारद नहीं माने। उन्होंने कहा मैं तो देखकर आ रहा हूं, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है। भगवान ने कहा कोई ऐसी घटना बताओ। नारद ने कहा अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई

न जन्‍म है, न मृत्‍यु !

हम कब से हैं ? जन्‍म लेने के बाद से? या फिर नामकरण के बाद से? उसके पूर्व नहीं थे ? या मृत्‍यु के बाद नहीं रहेंगे ? कह सकते हैं अस्तित्‍व का होना जीवन है और उस ‘होने’ का न रह जाना मृत्‍यु। दोनों का आधार जन्‍म है। तो फिर वही पुराना सवाल- पहले अंडा हुआ या मुर्गी ? ‍पहले जन्‍म हुआ या मृत्‍यु ? जन्‍म हुआ तो मृत्‍यु भी होगी ही। दोनों क्‍या एक ही सिक्‍के के दो पहलू नहीं हैं ? तो फिर वह सिक्‍का क्‍या है ? जन्‍म पर थाली क्‍यों बजाना और मृत्‍यु पर मातम क्‍यों मनाना ? हम विचार करें तो पाते हैं कि जन्‍म -मृत्‍यु की चर्खी अनवरत चलती रहती है। आ रहे और अपना पार्ट अदा कर जा रहे हैं। शरीर और मन में भी श्‍ह खेल चलता रहता है। हजारों लाखों कोशिकायें प्रति पल जन्‍मती-मरती रहती हैं। कितने ही भाव-विचार और संकंल्‍प-विकल्‍प आते जाते रहते हैं। हर सांस में आयु घट रही है, शरीर जर्जर हो रहा है । मर रहा है। एक क्षण भी स्थिर नहीं है। जवान होने पर लडकपन मर जाता है और बूढे होने पर जवानी भी मर जाती है। इसे रोक-टाल पाना किसी वश में नहीं है। सब कुछ मरणशील- मरणधर्मा है। हम सब जानते हैं किएक दिन हम भी मरेंगे।सब बिछड जाएंगे

जातिगत राजनीति को राजग का तमाचा

बिहार में आए ऐतिहासिक जनादेश ने साबित कर दिया है कि अरसे तक हिंसा, अराजकता और परिवारवाद की अजगरी कुंडली में जकड़ा बिहार अब करवट ले रहा है। सकारात्मक सोच और रचनात्मक वातावरण का निर्माण करते हुए आम लोगों में विकास की भूख जगी है। नतीजतन नीतीश भाजपा गठबंधन के साथ दोबारा सत्ता में लौटे।  काग्रेस, बसपा, लोजपा और वामपंथी दलों की बात तो छोड़िए, बिहार की बड़ी राजनीतिक ताकत रहे लालू प्रसाद यादव अपनी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी समेत पूरे कुनबे को डूबो बैठे। बिहार के परिणाम देश के राष्ट्रीय क्षितिज और क्षेत्रीय दलों के लिए एक ऐसा संदेश है कि मतदाता अब जातिवाद, वंशवाद को नकारने के साथ अहंकारियों से भी मुंह मोड़ रहे हैं। देश में बढ़ती विषमता के साथ-साथ हिंसा बढ़ रही है, इस संदर्भ में बिहार में नीतीश कुमार का कुशल राजनीतिक नेतृत्व एक सबक है। बिहार की यह विजयश्री राजनीतिक स्थिरता के लिए भी मेंडेट है, जिससे विकास की गति आगामी पांच साल अवरुद्ध न हो। काग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, इससे जाहिर होता है कि राहुल गांधी का जादू बिहार में नहीं चला। मतदाता वंशवाद के सम्मोहन से तो मुक्त हो ही

अब नये अवतार में बिहार

भले ही मैजिक फिगर लगे 206, लेकिन यह मैजिक नहीं बल्कि नीतीश कुमार पर सूबे की 'जनता का विश्वास' है। वास्तव में यह है जाति का बंधन तोड़ विकसित होते बिहार की 'अंगड़ाई का नया अंदाज'। यह है नकारात्मक राजनीति करने वालों, बातें बनाने वालों और भोली-भाली अवाम को झूठे आश्वासनों से छलने वालों को एक खास संदेश कि अब बदल गया है बिहार और इसके साथ ही बदल गयी हैं इस राज्य की प्राथमिकताएं। राजनीति के कई आयाम देख चुके इस बिहार को यह नई इबारत सिखाई है नीतीश कुमार ने और सीखते बिहार ने फिर से विश्वास जता दिया है अपने आगुवाकार पर। पिछले पांच साल चली बिहार के नवनिर्माण की प्रक्रिया का निष्कर्ष यह निकला कि 1952 से अब तक हुए 13 विधानसभा चुनावों का सारा रिकार्ड ही ध्वस्त हो गया। विधानसभा चुनाव में कुल 243 में से 206 सीटें एनडीए की झोली में गिर गयीं। भाजपा ने 102 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जिसमें 91 सदन में बैठेंगे जबकि जदयू के 141 में से 115 सदन का मुंह देखेंगे। अब सूरत यह कि विधानसभा में नेता विपक्ष नाम की चीज ही नहीं बची क्योंकि उसके लिए कम से कम दस फीसदी सीटें जरूरी हैं। जबकि नंबर दो पर रहा राजद 22

जनादेश पर खरा उतरने की चुनौती

बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों में जनता ने जद [यू]-भाजपा गठजोड़ को भारी बहुमत देकर यही संकेत दिया कि पारंपरिक धारणाओं के विपरीत वह जातिवाद से ऊपर उठकर फैसला करने में सक्षम है। मीडिया सर्वेक्षणों ने लगभग आम राय से संकेत दिया था कि नीतीश कुमार फिर सत्ता में लौटने जा रहे हैं। जमीनी स्तर पर भी माहौल यही था, लेकिन यह कल्पना खुद नीतीश और भाजपा को भी नहीं थी उन्हें प्रचंड जनादेश मिलेगा। बिहार की जनता ने नकारात्मक मुद्दे दरकिनार कर दिए और विकास के हक में वोट डाला। इससे विकास की मौजूदा प्रक्रिया को जारी रखने के लिए ठप्पा लगा। जद [यू]-भाजपा गठबंधन ने पिछली बार बेहद विषम हालात में सत्ता की बागडोर संभाली थी, लेकिन नीतीश कुमार प्रचार और श्रेय की फिक्र किए बिना चुपचाप भ्रष्टाचार और बदइंतजामी का मलबा हटाने में लगे रहे। यह ऐसा राच्य था जहा सत्ता के ज्यादातर स्तंभों पर जंग लग चुका था जहा धनबल, बाहुबल और राजनैतिक दबाव के बिना पत्थर भी नहीं हिलता था। राजनीति तथा अपराध के बीच की विभाजन रेखा लगभग अदृश्य थी। ऐसे में पहली बार सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री के हौसले भले ही कितने भी बुलंद हो, उनके लिए धारा के विप