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प्रभु का सिमरण सबसे ऊंचा

एक चोर था ! बडा शातिर ! सभी जानते थे कि वह चोर है ! उस गांव के तथा आस-पास के गांवों में जितनी भी चोरियां होती थीं सबके लिए वही जिम्मेदार था ! परंतु वह इतनी सफाई से चोरी करता था कि कभी पकडा नही गया ! चोरी करने की सभी बारीकियों से वाकिफ ! वो अपनी पत्नी और इकलौते बेटे के साथ गांव के नज़दीक ही पहाडी पर एक झोंपडी में रहता था ! चोरी का सामान भी वहीं पहाडी में एक गुफा में छिपा कर रखता था जिससे तलाशी की नौबत आने पर भी पकडा न जा सके !

चोरी करते-करते उम्र के आखरी पडाव में आ पहुंचा ! अक्सर बीमार भी रहने लगा था ! उसे आभास होने लगा कि अब उसके जीवन के दिन थोडे ही हैं ! एक दिन उसने अपने बेटे को बुलाकर उसे चोरी के सारे गुर सिखा दिये और जहां पर उसने चोरी का सामान छुपाया था वह जगह भी दिखा दी ! भगवान की ऐसी कुदरत हुई कि कुछ दिनों बाद ही वो चल बसा !

अब मां-बेटे अकेले रह गए ! धीरे-धीरे पिता द्वारा छोडा चोरी का सामान समाप्त होने लगा ! तब बेटे ने अपनी मां से कहा – “मां, मैं कुछ काम करना चाहता हूं ! बताओ कौन सा काम करूं !”

“यह भी कोई पूछ्ने की बात है ?” मां ने समझाया -“बेटा तुम्हारे पिता चोरी किया करते थे ! तुम भी उस धंधे को आगे बढाओ और चोरी करो !

“बिलकुल ठीक है मां ! मैं कल से चोरी करने जाऊंगा” – बेटे ने उत्तर दिया !

“लेकिन चोरी करने जाने से पहले मेरी दो बातें ध्यान से सुनो और अपनी गांठ बांध लो !” मां ने फिर समझाया – “पहली बात तो यह है कि अगर तुम चोरी के इल्जाम में पकडे जाओ तो कभी भी अपनी चोरी कबूल मत करना ! चाहे लोग तुम्हें जान से ही मार दें ! और दूसरी बात कभी किसी मन्दिर, मस्जिद. गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान के आगे से नहीं गुजरना ! यदि किसी मजबूरी वश तुम्हें किसी धार्मिक स्थान से गुजरना ही पडे तो अपने दोनो कान अच्छी तरह से बन्द कर लेना जिससे वहां की कोई आवाज़ तुम्हारे कान में न पडे !”

मां की दोनो बातें गांठ बांधकर वो चोरी करने लगा ! अपने पिता की तरह वो भी इतनी चालाकी से चोरी करता कि पकडा नहीं जाता ! परंतु सब गांव वाले जानते थे कि वह चोर है !

प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि एक दिन वह किसी दूसरे गांव से आ रहा था ! बरसात के मौसम के कारण गांव में जगह-जगह पर पानी भरा हुआ था ! जिस रास्ते से वो अपने घर जाता था पानी के कारण वो रास्ता बन्द हो गया था ! उसने सोचा चलो आज दूसरे रास्ते से चलते हैं ! लेकिन दूसरे ही क्षण उसे ध्यान आया कि उस रास्ते में एक मन्दिर पडता है ! उसे मां की दी शिक्षा याद आ गई ! उसने अपने दोनो कान उंगलियां डाल कर जोर से बन्द कर लिए ! परंतु थोडी दूर जाने पर सडक पर पानी ज्यादा होने के कारण उसका पायजामा भीगने लगा ! तो उसने अपने हाथ कानो से निकाल कर अपना पायजामा उंचा करके पकड लिया ! इसी दौरान वह चोर मन्दिर के सामने पहुंच चुका था ! मन्दिर में एक महात्मा जी प्रवचन कर रहे थे ! उसी सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि – “देवी-देवताओं की न तो कभी आंख झपकती है और न ही उनकी परछाईं पडती है !”

इतनी बात उस चोर के कानों में पड गई ! उसे झट से अपनी मां को दिया हुआ वचन याद आया ! उसने पायजामा छोड कर फिर से अपनी उंगलियां कानों में ठूस लीं ! परंतु उसके कान में महात्मा की देवी-देवताओं वाली बात पड गई थी !

समय गुजरता गया ! चोर अपनी चालाकी से चोरियां करता रहा और घर सुचारू रूप से चलता रहा ! ऐसे ही चोरी करते-करते एक दिन उसने पास के गांव के एक बडे जमींदार के घर चोरी की ! मौके पर चोर पकडा नहीं गया पर सब जानते थे कि चोर वही है ! जमींदार बडा रसूक वाला था ! वो राजा को बहुत सारा अनाज व धन लगान के रूप में देता था ! राज दरबार में उसका बहुत सम्मान था ! जमींदार ने राजा को चोरी होने की शिकायत की तथा उस चोर पर अपना शक जाहिर किया !

चोर को राजा के सामने पेश किया गया ! परंतु चोर ने अपने आप को निर्दोष बताया ! राजा ने हर तरह से चोर से चोरी उगलवाने का प्रयत्न किया परंतु चोर को मां की सीख याद थी ! उधर जमीन्दार का दबाव बढता जा रहा था तथा सभी गांव वाले उसी को चोर ठहरा रहे थे ! राजा भी परेशान हो गया ! जब तक जुर्म साबित न हो जाय या चोर अपनी चोरी कबूल न कर ले उसे सज़ा नहीं दी जा सकती !

अंत में राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी इस चोर से चोरी कबूल्वा देगा उसे इनाम दिया जायगा ! साथ ही यह भी ऐलान कर दिया कि अगर कोई चोरी न कबूल करवा सका तो उसे फांसी दे दी जायगी !

घोषणा सुनकर कई लोग आए ! सबने चोर से अपने अपने तरीके से चोरी कबूल करवाने का प्रयत्न किया लेकिन सफल न हो सके ! अंत में एक महिला ने राजा के पास आकर कहा कि वह इस चोर से चोरी मनवा लेगी ! राजा ने उसे सात दिन का समय दिया और साथ में हिदायत दी कि यदि सात दिनों में वह चोरी नही मनवा पाई तो उसे फांसी दे दी जायगी !

अब वह महिला रोज़ उस चोर के पास आकर तरह तरह से उससे जुर्म कबूल करवाने का प्रयास करती ! ऐसे ही 6 दिन बीत गए ! अब उसके जीवन का केवल एक दिन ही बचा था ! आखरी दिन वह महिला रात को एक देवी का रूप धारण करके उसके पास आई ! आते ही उसने चोर से कहा –“मैं एक देवी हूं ! मैं जानती हूं कि तुमने चोरी की है ! तुम देवी से झूठ नहीं बोल सकते मुझे सच सच बताओ तुमने चोरी कैसे की ?”

वो चोर उस महिला के झांसे में आ गया ! उसने सोचा कि अब देवी से क्या झूठ बोलना ! मुझे सब सच सच बता देना चाहिए ! यह सोचकर वो अभी सारा सच बताने ही वाला था कि उसने देखा कि देवी अपनी पलकें झपका रही थी ! उसने ध्यान से देखा तो उस कमरे में जल रहे दिये से उस देवी की परछांई भी पड रही थी ! चोर को मन्दिर के महात्मा जी की बात याद आ गई ! उन्होंने कहा था कि “देवी-देवताओं की न तो आंख झपकती है और न ही उनकी परछाईं पडती है

फिर इस देवी की तो पलक भी झपक रही है और परछांई भी पड रही है ! चोर समझ गया कि यह तो वही महिला देवी का रूप बनाकर मुझसे जुर्म कबूल करवाना चाहती है ! उसने एकदम से बात बदल कर हाथ जोडकर कहा -“देवी जी, आप तो सब बातें जानती हैं ! मैं चोर नहीं हूं ! मैंने चोरी नहीं की ! यह लोग मुझे जबरदस्ती फसाना चाहते हैं !”

रात बीत गई ! वो महिला भी उससे चोरी कबूल नहीं करवा सकी ! दूसरे दिन राजा ने चोर को बुलाया और कहा –“तुम्हारे खिलाफ चोरी का कोई भी सबूत नहीं मिला है ! अतः तुम पर चोरी का इल्ज़ाम नहीं लगाया जा सकता ! हम तुम्हें बाईज्जत बरी करते हैं ! जितने दिन हमने शक के कारण तुमको बन्दी बनाकर रखा उसके लिए हम तुम्हें ईनाम देंगें !”

इतना कहकर राजा ने उस चोर को बहुत सारा इनाम देकर विदा किया !

चोर इनाम लेकर अपने घर वापिस आ गया ! उसने अपनी मां को वो सारा सामान जो राजा से इनाम के रूप में मिला था दे दिया ! रात को उसकी मां तो सो गई लेकिन वो चोर सो न सका वो चारपाई पर लेटा लेटा सोचता रहा…सोचता रहा ! मैं दिन रात चोरी करता हूं ! पाप की कमाई खाता हूं ! कभी भगवान का नाम नहीं लिया ! मां के कहने पर किसी मन्दिर में नहीं गया ! उस महात्मा कि केवल एक लाईन ही सुनी थी ! सिर्फ एक लाईन ! और उस लाईन ने ही मेरी जान बचा दी ! वरना आज मैं जेल में होता ! अगर मैं अपना जीवन भगवान के चरणों में लगा दूं तो मेरा सारा जीवन संवर जायगा !

प्रातः अपनी मां के उठने से पहले उठकर उसने अपनी मां के पैर छूकर प्रणाम किया और घर से निकल पडा ! फिर उस चोर को किसी ने नहीं देखा !

टिप्पणियाँ

  1. बहुत मनोरंजक कहानी है| अच्छी लगी| लेकिन प्रभु का सिमरण सबसे ऊंचा शीर्षक देकर इस कहानी को एक नई संज्ञा देते हुए आप बुद्धिजीवी के मन में एक विवाद खड़ा कर रहे हैं| प्रभु का सिमरण व्यक्तिगत भावना और विश्वास है जो मनुष्य में निरंतर पनपती उस पुण्य आत्मा का अंग है जो उसके जीवन को सार्थक बनाये रखती है| स्वार्थहीन, सत्य का पालन कर वह समाज में अच्छे व्यवहार व कर्मों द्वारा जीवन यापन करता है| समस्त भारत में भ्रष्टाचार और सामाजिक अनैतिकता के वातावरण में कही यह कहानी और ऐसी ही अन्य कहानियां केवल मनोरंजन हेतु सत्संग में भीड़ एकत्रित करने में अवश्य सफल होती हैं| और हाँ, धर्म के धंधे में बहुत पैसा है| अधिक भीड़, और भी अधिक पैसा| परन्तु प्रश्न है कि सत्संग का क्या हुआ? मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे अथवा दूसरे धार्मिक स्थान को यदि मनोरंजन सभा बना दिया जाये तो धर्म व आदर्श सीखने के लिए कहाँ जाना होगा? स्वतंत्रता के पहले मंदिर बहुत कम संख्या में दूर पहाड़ों में या धार्मिक स्थलों में होते थे जहां केवल श्रदालू भगत पहुँचते थे| जीवन में यह अभ्यास छोटे बड़े सभी में नम्रता को जन्म देता था| घर में बड़े-बूढों के साथ रहते बच्चों में चरित्र का निर्माण होता था| आज जब गली गली मुहल्लों में मंदिर, मस्जिद, और गुरद्वारे स्थित हैं तो इन पन्नों पर भगवान बाबू की प्रतिक्रिया व्यावहारिक रूप से उपयुक्त प्रतीत होती है क्योकि सत्संग में कही इन कहानियों से पथभ्रष्ट हो मनुष्य में प्रभु और धर्म के तत्व को समझने व जीवन में अपनाने की गंभीरता मिट जायेगी|

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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............

jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......

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