आज हर इंसान परेशान है। बच्चे, युवा या फिर बुजुर्ग, हर कोई परेशान ही दिखता है। बच्चों की परेशानी का कारण तो एक बार समझ आ जाता है कि उनका बचपन कही खो गया है, और वह समय से पहले ही बड़े हो गए है। बेटे को कुलदीपक और बेटी को पराई समझने वाले समाज में बुजुर्गों ने जब बच्चों का बचपन छीन लिया हो, तो बच्चों का परेशान होना जायज है। समझ नहीं आता हम क्यों बच्चों को बचपन की सुनहरी दुनिया से समय से पहले निकाल लेते है। बचपन कभी लौट कर नहीं आता, यह सबको पता है फिर क्यों हम उनके सुनहरे व स्वप्निल बचपन के वह पांच-छह साल छीन रहे है? जो उनको दोबारा कभी नहीं मिलने वाले। अब बात युवा की, माना जा रहा है युवा अपनी दशा-दिशा से भटक गया है और जब कोई अपनी दिशा से भटक से जाए, तो उसकी दशा तो खराब हो ही जाएगी। इसका कारण भी साफ नजर आता है, और सब समझते भी है कि एक कार चलाने वाला हवाई-जहाज कैसे उडा सकता है? एक क्रिकेटर बहुत अच्छा फुटबॉलर कैसे हो सकता है? एक डॉक्टर कैसे बिल्डिंग का निर्माण करवा सकता है? या फिर एक बिजनेसमैन कैसे सरहद पर फहरा दे सकता है? यह कुछ सवाल तो मात्र उदाहरण है, कि युवा को पता ही नहीं असलियत में जाना कहां है और फिर उसने अपने दिमाग का सहारा लेना भी छोड़ दिया है, वह तो केवल दिल की बात सुनता है और दिल है कि मानता ही नहीं। अगर मान भी लिया जाए कि अपने माता-पिता का सपना पूरा करना चाहता है तो उसके कई और रास्ते भी है। असलियत में माता-पिता का सपना होता है कि उनका बेटा अच्छी छवि वाला, बेहतर तरीके से समाज में अपने लिए जगह बनाए, साथ ही अगर उनकी इज्जत में कोई इजाफा न कर सके तो उनके साफ-सुथरे दामन पर कोई दाग भी न लगाए। जहां तक बुजुर्गों की बात है कि वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है कि वह सब उनका ही बोया हुआ है। फिर जैसा उन्होंने बोया वैसा ही काटेगे भी। फिर वह क्यों परेशान हो रहे है। उनको तो सब कुछ अच्छी तरह से मालूम है, उन्होंने अपने जीवन के लगभग ६० वसंत तो देख ही लिए है। उन्होंने यह भी देख ही लिया है कि दुनिया कैसे रंग बदलती है। अब उनको कौन समझा सकता है, क्योंकि उनसे अनुभवी तो युवा तो हो नहीं सकता। अब भी बुजुर्गों का हाल यह है कि वो बेटी को वह स्थान दिलाने में नाकाम साबित हो रहे है, जो बिटिया को मिलना चाहिए। यह अलग बात है कि कुछ अपवाद हो सकते है, जो बिटिया को बेटे से ज्यादा सम्मान देते है। मैं खुद अभी बेटियों की बात नहीं कर रहा हूं, क्योंकि बिटिया के बारे में मेरा सिर्फ इतना ही कहना है कि घर को सुख-संपन्न, खुशहाल बनाने का काम सिर्फ बिटिया ही कर सकती है। बिटिया की प्रशंसा में करने के लिए दिल में सागर उमड़ रहा है, पर मेरे शब्दकोश में अभी शब्दों की बहुत कमी है। क्योंकि हमारे समाज में अब तक बिटिया को पराई ही माना है, और पराई चीज की प्रशंसा से हर कोई परहेज करता है। हमारे समाज ने आज तक बिटिया को बेटे के बाद दोयम दर्जे का स्थान दिया है वह तब जब वर्ष में दो बार मां दुर्गा के व्रत रखकर उनके खुश करने के लिए अपने पडोस में बिटिया को ढूंढने निकलते है। हां सिर्फ इतना ही कह सकता है कि उनका जीवन का धन्य हो जाता है जिनके घर में पहले बच्चे के रूप में बिटिया जन्म लेती है।
ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती , वो बारिश का पानी स्वर्गीय श्री सुदर्शन फाकिर साहब की लिखी इस गजल ने बहुत प्रसिद्धि पाई,हर व्यक्ति चाहे वह गाता हो या न गाता हो, इस ग़ज़ल को उसने जरुर गुनगुनाया,मन ही मन इन पंक्तियों को कई बार दोहराया. जानते हैं क्यु?क्युकी यह ग़ज़ल जितनी सुंदर गई गई हैं,सुरों से सजाई गाई गई हैं,उससे भी अधिक सुंदर इसे लिखा गया हैं, इसके एक एक शब्द में हर दिल में बसने वाली न जाने कितनी ही बातो ,इच्छाओ को कहा गया हैं। हम में से शायद ही कोई होगा जिसे यह ग़ज़ल पसंद नही आई इसकी पंक्तिया सुनकर उनके साथ गाने और फ़िर कही खो जाने का मन नही हुआ होगा,या वह बचपनs की यादो में खोया नही होगा। बचपन!मनुष्य जीवन की सर्वाधिक सुंदर,कालावधि.बचपन कितना निश्छल जैसे किसी सरिता का दर्पण जैसा साफ पानी,कितना निस्वार्थ जैसे वृक्षो,पुष्पों,और तारों का निस्वार्थ भाव समाया हो, बचपन इतना अधिक निष्पाप,कि इस निष्पापता की कोई तुलना कोई समानता कहने के लिए, मेरे पास शब्द ही नही हैं।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......