सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्या खोया क्या पाया हमने ?

एक था राजा / एक थी रानी , किसी राज्य में एक राजकुमार / राजकुमारी रहते थे / किसी जंगल में एक विशालकाय दानव / शेर रहता था / बहुत पहले किसी देश में …….., जहाँ तक मुझे लगता है हर दादा / दादी , नाना / नानी की कहानिया कुछ ऐसे ही आरम्भ होती थी ,



आप सोच रहे होंगे की आज मै ये क्या लिखने बैठ गया ? ये मै बच्चो को कहानी सुनाने के लिए ब्लॉग पर कैसे आ गया ? पर हैरान ना हो , मै आपको कहानी सुना कर बोर नहीं करने जा रहा हूँ .



मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है की हर गर्मी की छुट्टी में हम सब मई /जून में नानी के घर जाया करते थे , और वहां पर छुट्टियों के दो महीने कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता था?



दिन भर हम चाहे कुछ भी करें , कहीं भी घूमे फिरे , पर रात में खाने के बाद सारे बच्चे नानी को घेर कर बैठ जाते थे , और फिर शुरू होती थी तरह तरह की कहानिया , जिसमे कभी पारी होती तो कहीं जिन्न , कहीं भूत होते तो कहीं राजा , रानी या राजकुमार राजकुमारी … … और फिर जब तक हम सब को घर के बड़े डांट कर भगा ना देते , हम सब नानी का पीछा नहीं छोड़ते थे . पर अब ये सब कहाँ बाकी रह गया है , वो दिन कहाँ चले गए ? सब कुछ अब केवल एक सपना सा लगता है . आज बदलते समय के साथ , संयुक्त परिवार की प्रथा लगभग समाप्त सी होती जा रही है , और आज मेरे लेख का विषय भी यही है,



संयुक्त परिवार और एकल परिवार



आज इस तेज भागती दुनिया में संयुक्त परिवार प्रायः लुप्तप्राय होते जा रहे हैं ., इसके कई कारण हैं , जैसे उधोगीकरण के कारण रोज़गार की खोज में लोगों का अपने घरो से पलायन और साथ में अपने परिवार को ले कर जाना , मनपसंद जीवन जीने की इच्छा , तो कभी बड़ो की बातों को हस्तक्षेप समझकर उनसे अलग रहने के चाह आदि ,.



जहाँ तक एकल परिवार की बात है तो उसमे बच्चों को पता ही नहीं होता की रिश्ते होते क्या हैं? उनकी दुनिया केवल अपने माँ बाप या भाई बहेन तक ही सीमित होके रह जाती है , दादी दादी /नाना नानी का लाड प्यार क्या होता है उनको पता ही नहीं होता है . उन्हें पता ही नहीं होता की चाचा चची , बुआ , ताया , ताई , आदि जैसे रिश्ते क्या होते हैं , जब कभी आपको माँ पिता जी से डांट पड़ने का चांस होता है तो आपका भाग कर दादा /दादी , नाना /नानी के आँचल में छुप जाना , ऐसा अनुभूति कहाँ मिलेगी एकल परिवार में ? संयुक्त परिवार में अनुशासन भी काफी पाया जाता है , प्रायः घर के सबसे बड़े को ही इसमें मुखिया बनाया जाता है और उनकी बात मानी जाती है , और किसी भी नयी कार्य के लिए उनका विचार सर्वोपरि होता है और उसका कारण उनका जीवन में अनुभव होता है , संयुक्त परिवार में इसके सदस्य भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं और उनका सम्बन्ध काफी सुदृढ़ होता है , इसमें हर सदस्य काफी सुरक्षित भी अनुभव करता हैं



एकल परिवार में भले उसके सदस्यों को सवतंत्रता का बहस हो पर यहाँ असुरक्षा की भावना अधिक पायी जाती है , अगर यहाँ पर माता पिता दोनों ही कार्य करते हो तो ऐसे में बच्चो को दिन भर स्कूल से लौटने के बात अकेले समय काटना होता है और वो टी.वी. और कम्प्यूटर पर आँखें गड़ाए चुपचाप अभिभावकों के लौटने का इंतजार करते हैं। ऐसे बच्चों के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता। उनमें संस्कारों का विकास नहीं हो पाता। कई बार तो वे समाज विरोधी हरकतें भी करने लगते हैं।


अब तो बस दादी दादी / नाना नानी के कहानी एक सपना सी रह गयी हैं .



पता नहीं इस नए युग में हमें क्या क्या मिला है और क्या क्या हमने खोया है ?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं...

इन्सान की जात से ही खुदाई का खेल है.

वाल्टेयर ने कहा है की यदि इश्वर का अस्तित्व नहीं है तो ये जरुरी है की उसे खोज लिया जाए। प्रश्न उठता है की उसे कहाँ खोजे? कैसे खोजे? कैसा है उसका स्वरुप? वह बोधगम्य है भी या नहीं? अनादिकाल से अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के जेहन में कुलबुलाते रहे है और खोज के रूप में अपने-अपने ढंग से लोगो ने इश्वर को परिभाषित भी किया है। उसकी प्रतिमा भी बने है। इश्वर के अस्तित्व के विषय में परस्पर विरोधी विचारो की भी कमी नहीं है। विश्वास द्वारा जहाँ इश्वर को स्थापित किया गया है, वही तर्क द्वारा इश्वर के अस्तित्व को शिद्ध भी किया गया है और नाकारा भी गया है। इश्वर के विषय में सबकी ब्याख्याए अलग-अलग है। इसी से स्पस्ट हो जाता है की इश्वर के विषय में जो जो कुछ भी कहा गया है, वह एक व्यक्तिगत अनुभूति मात्र है, अथवा प्रभावी तर्क के कारन हुई मन की कंडिशनिंग। मानव मन की कंडिशनिंग के कारन ही इश्वर का स्वरुप निर्धारित हुआ है जो व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ समाज और देश-काल सापेक्ष भी है। एक तर्क यह भी है की इश्वर एक अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता है, अतः स्थूल इन्द्रियों से उसे अनुभव नहीं किया जा सकता है। एक तरफ हम इश्वर के अस...