सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लोगों का काम है कहना...



पुरानी फिल्म का एक गीत है, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...। यह गीत हमारे जीवन के साथ भी जुड़ा हुआ है। हम जब भी कुछ काम करते हैं, आसपास के लोग तरह-तरह की बात करते हैं। कुछ लोग हमारे काम की तारिफ करते हैं, तो कुछ बुराई। हमेशा ऐसा ही होता है क्योंकि लोगों का काम है कहना।
पुराने समय की बात है। एक पिता अपने पुत्र के साथ गांव में रहते थे। वे एक दिन शहर से गधा खरीदकर अपने घर लौट रहे थे, रास्ता लंबा था। वे तीनों पिता-पुत्र और वह गधा पैदल ही आ रहे थे। तभी किसी ने कहा कि गधा लेकर आए हो तो पैदल क्यों चल रहे हो? गधे पर बैठकर जाओं। पिता-पुत्र को यह बात ठीक लगी। वे दोनों गधे पर बैठ गए। कुछ दूर चलने के बाद फिर किसी राहगीर ने कहा कि कितने निर्दयी पिता-पुत्र हैं, बेचारे गधे पर दोनों बैठ गए। यह सुनकर पिता ने पुत्र को गधे पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा।
फिर कुछ दूर चलने के बाद किसी ने कहा कि कैसा पुत्र है? पिता तो पैदल चल रहा है और खुद गधे पर आराम से बैठा है। यह सुनकर पुत्र उतर गया और पिता को गधे पर बैठा दिया, पुत्र पैदल चलने लगा। फिर कुछ दूर चलने के बाद किसी व्यक्ति ने कहा कि कैसा बाप है खुद तो आराम से बैठा है और पुत्र तो पैदल चल रहा है। इसी तरह जो भी उन्हें कुछ बोलता वे पिता-पुत्र वैसा ही करते और जैसे-तैसे घर पहुंच गए।
हमारे जीवन में भी कई बार ऐसा ही होता है। हम दूसरों की बात सुनकर कार्य शैली बदलते हैं, काम बदल लेते हैं लेकिन लोगों बोलना बंद नहीं करते। बेहतर है कि हम अपनी सोच-समझ के अनुसार कार्य करें और लोगों की बातों पर ध्यान न दें क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वो कागज़ की कश्ती

ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती , वो बारिश का पानी   स्वर्गीय श्री सुदर्शन फाकिर साहब की लिखी इस गजल ने बहुत प्रसिद्धि पाई,हर व्यक्ति चाहे वह गाता हो या न गाता हो, इस ग़ज़ल को उसने जरुर गुनगुनाया,मन ही मन इन पंक्तियों को कई बार दोहराया. जानते हैं क्यु?क्युकी यह ग़ज़ल जितनी सुंदर गई गई हैं,सुरों से सजाई गाई गई हैं,उससे भी अधिक सुंदर इसे लिखा गया हैं, इसके एक एक शब्द में हर दिल में बसने वाली न जाने कितनी ही बातो ,इच्छाओ को कहा गया हैं।   हम में से शायद ही कोई होगा जिसे यह ग़ज़ल पसंद नही आई इसकी पंक्तिया सुनकर उनके साथ गाने और फ़िर कही खो जाने का मन नही हुआ होगा,या वह बचपनs की यादो में खोया नही होगा। बचपन!मनुष्य जीवन की सर्वाधिक सुंदर,कालावधि.बचपन कितना निश्छल जैसे किसी सरिता का दर्पण जैसा साफ पानी,कितना निस्वार्थ जैसे वृक्षो,पुष्पों,और तारों का निस्वार्थ भाव समाया हो, बचपन इतना अधिक निष्पाप,कि इस निष्पापता की कोई तुलना कोई समानता कहने के लिए, मेरे पास शब्द ही नही हैं।

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं

मनचाही मंजिल उन्हें ही मिलती है जो...

बड़े खुशनसीब होते हैं वे जिनका सपना पूरा हो जाता है। वरना तो ज्यादातर लोगों को यही कह कर अपने मन को समझाना होता है कि- किसी को मुकम्मिल जंहा नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आंसमा नहीं मिलता। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। मंजिल के मिलने के पीछे लक का हाथ तो होता है, पर एक सीमा तक ही, वरना चाह और कोशिश अगर सच्ची हो तो कायनात भी साथ देती है। अगर आपको जीवन में सफल बनना है तो अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहना जरूरी है। आपकी पूरी नजर आपके लक्ष्य पर होनी चाहिए। तभी आपकी सफलता निश्चित हाती है। आइये चलते हैं एक वाकये की ओर... एक मोबाइल कम्पनी में इन्टरव्यू के लिए के लिए कुछ लोग बैठै थे सभी एक दूसरे के साथ चर्चाओं में मशगूल थे तभी माइक पर एक खट खट की आवाज आई। किसी ने उस आवाज पर ध्यान नहीं दिया और अपनी बातों में उसी तरह मगन रहे। उसी जगह भीड़ से अलग एक युवक भी बैठा था। आवाज को सुनकर वह उठा और अन्दर केबिन में चला गया। थोड़ी देर बाद वह युवक मुस्कुराता हुआ बाहर निकला सभी उसे देखकर हैरान हुए तब उसने सबको अपना नियुक्ति पत्र दिखाया । यह देख सभी को गुस्सा आया और एक आदमी उस युवक से बोला कि हम सब तुमसे पहले यहां