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अब नये अवतार में बिहार

भले ही मैजिक फिगर लगे 206, लेकिन यह मैजिक नहीं बल्कि नीतीश कुमार पर सूबे की 'जनता का विश्वास' है। वास्तव में यह है जाति का बंधन तोड़ विकसित होते बिहार की 'अंगड़ाई का नया अंदाज'। यह है नकारात्मक राजनीति करने वालों, बातें बनाने वालों और भोली-भाली अवाम को झूठे आश्वासनों से छलने वालों को एक खास संदेश कि अब बदल गया है बिहार और इसके साथ ही बदल गयी हैं इस राज्य की प्राथमिकताएं। राजनीति के कई आयाम देख चुके इस बिहार को यह नई इबारत सिखाई है नीतीश कुमार ने और सीखते बिहार ने फिर से विश्वास जता दिया है अपने आगुवाकार पर।

पिछले पांच साल चली बिहार के नवनिर्माण की प्रक्रिया का निष्कर्ष यह निकला कि 1952 से अब तक हुए 13 विधानसभा चुनावों का सारा रिकार्ड ही ध्वस्त हो गया। विधानसभा चुनाव में कुल 243 में से 206 सीटें एनडीए की झोली में गिर गयीं। भाजपा ने 102 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जिसमें 91 सदन में बैठेंगे जबकि जदयू के 141 में से 115 सदन का मुंह देखेंगे। अब सूरत यह कि विधानसभा में नेता विपक्ष नाम की चीज ही नहीं बची क्योंकि उसके लिए कम से कम दस फीसदी सीटें जरूरी हैं। जबकि नंबर दो पर रहा राजद 22 सीटों पर ही सिमट गया। ऐसे में उसकी विपक्ष की कुर्सी भी खिसक गई। जदयू व भाजपा के उम्मीदवारों में जिनकी किस्मत बहुत ही खराब रही हो वही सदन का मुंह नहीं देख सके वरना जिसे नीतीश और सुशील मोदी ने छुआ वह जीत गया।

लोग भले ही इस नतीजे को अभूतपूर्व बताएं, जाति पर विकास की जीत का नारा लगाएं या कुछ अन्य तर्क दें, पर यह नतीजा इससे इतर एक खास संदेश देता है और वह है वर्षो से जब-तब छली जाने वाली यहां की जनचेतना की अंगड़ाई। एक विकास पुरुष के गुहारने व समय-समय पर उनके दुख-दर्द को उनके घर तक जाकर समझने व उनके भीतर के अस्तित्व को झंझोरने के बाद आई है यह अंगड़ाई। जगी जनता से नीतीश के सीधे संवाद का ही नतीजा है कि लालटेन बुझ गयी, झोपड़ी जल गयी, वाम किले ध्वस्त हो गये और पंजा सिमट गया।

बिहार की जनता पर न ही चला राहुल गांधी का जादू, न चला लालू का माई समीकरण और न ही रामबिलास पासवान का पिछड़ा-दलित कार्ड। खास यह भी है कि आजादी के बाद से ही कुछेक सीटों पर कब्जा जमाए वामदलों के घर दरक गये। खुद को तीसमार खां समझने वाले कुछ जदयू नेताओं के बगावती तेवर भी कुंद हो गये और केंद्र के धन को लेकर नीतीश पर हमला करने वाली कांग्रेस की धार तो भोथरी साबित हुई ही। यह सब कर दिया अपने जादुई व्यक्तित्व और करिश्माई काम के बूते अकेले नीतीश कुमार ने। यही नहीं अपने साथ चल रही भाजपा को भी उनके स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी को बिहार में आने से रोककर भी शीर्ष पर बैठा दिया।

नीतीश की अगुआई में राजनीति की यह बदली इबारत अब नये सिरे से बिहार का निर्माण तो करेगी ही साथ ही राजनीति करने वालों को यह संदेश देगी कि अब फिर से उन्हें ककहरा सीखने की जरूरत है क्योंकि अगले चुनाव इस बदली इबारत के ही आधार पर होंगे।

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