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मांगने से नहीं, देने से बढ़ता है प्रेम



प्रेम... प्यार... इश्क... लव... मोहब्बत... प्रीत... चाहत... दिल्लगी... रुहानियत... एक अहसास है जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना अत्यंत दुष्कर है। प्रेम को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। यह सिर्फ भावनाओं का अटूट संबंध है। बहुत से लोगों का प्रश्न होता है कि प्रेम क्या है? प्रेम होता कैसे है? और जब होता है तो क्या होता है?
प्रेम की महानता के ऐसे असंख्य किस्से, उदाहरण है जिन्हें हम कहीं ना कहीं अक्सर सुनते-पढ़ते और कहते रहते हैं। प्रेमियों के लिए आदर्श प्रेम है राधा-कृष्ण का प्रेम। श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन प्रेम ही सिखाता है। श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम सभी को ज्ञात है। उनकी शादी ना हो सकी पर आज भी पूजा राधा-कृष्ण की होती है। इसी बात से यह सिद्ध होता है कि प्रेम ही पूजनीय है। प्रेम का हमारे धर्म में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
तो प्रेम एक ऐसा अहसास है जो प्रेमियों के हृदय, जीवन में खुशियों को संचार कर देता है। प्रेम में डुबे प्रेमी दुनिया की बुराइयों से परे अपनी ही दुनिया में खुशियों और आनंद के रस में डुबे रहते हैं। प्रेम में पड़कर व्यक्ति का मन सभी बुराइयों से दूर जाता है। प्रेम बुरे से बुरे इंसान को भी अच्छाई के रास्ते पर ले आता है। जो कार्य आप गुस्से या जबरजस्ती से नहीं करा सकते है वह प्रेम के दो बोल बोलकर आसानी कराए जा सकते हैं। प्रेम मांगने से कम होता है और देने से बढ़ता है।
अन्य रिश्तों की तरह ही प्रेम में भी तालमेल बेहद जरूरी है। यदि आप हारमोनियम को बेतरतीब बजाएंगे तो शोर सुनाई देगा, परंतु आप इसे एक लय के साथ बजाएंगे तो मधुर संगीत सुनाई देगा। यही समरसता प्यार है, जिसके लिए सामंजस्य बेहद जरूरी है।
आपको प्यार कब, कैसे और कहां हो जाएगा आप खुद भी नहीं समझ सकते। कभी-कभी प्रेम पहली नजर में भी हो सकता है और हो सकता है कि कई मुलाकातों के बाद। प्यार जब होता है तो अहंकार छूट जाता है। अहंकार छूटने से सत्य का जन्म होता है। जहां तक मीरा, सूफी संतों की बात है, उनका प्रेम अमृत है।

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