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सुख ही नहीं, कभी-कभी दु:ख भी देता है पैसा



कभी-कभी जरूरत से ज्यादा धन भी घर-परिवार में अशांति फैला देता है। धन का अपना स्वभाव है, वह सीमित मात्रा में मिलता रहे, जरूरत के काम पूरे होते रहें तो कभी परेशानी नहीं आती लेकिन जब अचानक बड़ी मात्रा में पैसा मिल जाता है तो वह परिवार में कहीं-न-कहीं लालच फैलाने का काम करता है। व्यक्ति धन संग्रह करने वाला और लालची होने लगता है यही स्वभाव उसके दु:ख का कारण बनता है।

एक गांव में एक सेठ और बढई पड़ोसी थे। सेठ बड़ा पैसे वाला था लेकिन उसे कोई संतान नहीं थी। उसके घर में केवल पत्नी और बूढ़ी मां थी। इतना धनवान होने के बाद भी उसके घर में शांति नहीं थी। वे दोनों अक्सर झगड़ते रहते थे। वहीं दूसरी ओर बढ़ई के घर में उसकी पत्नी और दो बच्चे थे, वे गरीब थे मगर बड़े प्रेम से रहते थे।

एक दिन सेठानी ने सेठ को अपने पास बुलाया और बढई के घर में झांकते हुए कहा कि ये लोग गरीब हैं मगर फिर भी कितने खुश हैं। सेठ ने पत्नी से कहा कि संतोषी को झोपड़ी भी महल लगती है। सेठानी सेठ जी की बात को समझ नहीं पाई। तब सेठ ने सेठानी को समझाने के लिए एक उपाय किया।

सेठ ने अगले दिन पैसों से भरी एक पोटली बढ़ई के घर में फेंक दी। जब बढ़ई ने सेठ से पूछा कि ये पोटली तुम्हारी है तो सेठ ने साफ इंकार कर दिया। बहुत दिनों के इन्तजार के बाद बढ़ई ने सोचा कि इतने पैसों का क्या किया जाए। उसकी पत्नी का दिमाग घूमने लगा।

उसने पति को समझाते हुए कहा कि इन पैसों को हम अपनी बेटियों की शादी के लिए रख लेते हैं लेकिन बढ़ई राजी न था, बस अब क्या था बढ़ई के घर में रोज झगड़े होने लगे। अब उनके मन में पहले की तरह संतोष न था। सेठ ने सेठानी से कहा कि जब इनके पास पैसे नहीं थे। तब ये लोग कितने संतोष पूर्वक रहा करते थे पैसों से भरी पोटली मिलने के बाद इनकी जिंदगी में क्लेश हो रहा है।

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