एक छोटे से घुटने के बल चलने वाले बच्चे ने एक दिन सूर्य के प्रकाश में खेलते हुए अपनी परछाई देखी। उसे एक अद्भुत वस्तु लगी क्योंकि वह हिलता तो उसकी वह छाया भी हिलने लगती थी। वह उस छाया का सिर पकडऩे की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह छाया के सिर को पकडऩे के लिए जाता वह दूर हो जाता। वह जितना आगे जाता छाया उससे उतनी ही दूर चली जाती। उसके और छाया के बीच फासला कम नहीं होता था। थक कर और असफलता से वह रोने लगा। इतने में जब उस बच्चे की मां की नजर उस पर पड़ी तो उसने आकर उस बच्चे का हाथ उसके सिर पर रख दिया। बस फिर क्या था। वह बच्चा हंसने लगा क्योंकि उसने अपने सिर के साथ ही छाया के सिर को भी पकड़ लिया था।
हम भी उसी बच्चे की तरह हैं, जो छाया में खुशी तलाशने में लगे हैं। जिन्दगी एक छाया है और हम उसी छाया को सच मानकर उसके पीछे दौड़ रहे हैं बल्कि सच तो यही है कि हमारी इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। इन्हें जितना पूरा करो ये उतनी बढ़ती जाती हैं। आज हम जिन चीजों को अपनी जिन्दगी मानकर एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं। ये सब सिर्फ हमें पल दो पल की खुशी दे सकती हैं। जैसे किसी घर में हमेशा टेंशन बनी रहती है। घर के सभी सदस्यों में आपसी खींचतान बनी रहती है। उस घर में अगर नई कार आ जाए तो उस जहरीले माहौल को कुछ समय के लिए जरुर खुशनुमा बनाया जा सकता है। हमेशा के लिए नहीं वो कार थोड़े समय के लिए परिस्थिति को सम्भाल जरुर सकती है पर सुधार नहीं सकती है। हमें हमेशा के लिए आनंदित रहना है, तो ये याद रखना चाहिए कि इस संसार में स्वयं के अलावा कुछ नहीं पाया जा सकता। जो अपने आप को खोजते हैं। वे पा लेते हैं। वासनाओं के पीछे भागने वाले लोग हमेशा असफल रहते हैं वे जीवन को कभी खुशी से जी ही नहीं पाते हैं क्योंकि वो असली खुशी से अनजान होते हैं। असली खुशी अपने ही अंदर हैं क्योंकि अपनी जिन्दगी को खुशी या गम से भरा आप खुद अपनी सोच से बनाते हैं, क्योंकि कोई परिस्थिति अच्छी या बुरी नहीं होती आपकी सोच और नजरिया और आपको स्वयं को न जानने की अज्ञानता ही आपको दुखी और सुखी बनाती है। जिसने इस सच को समझ लिया कि असली खुशी स्वयं के ही अंदर है वही इस जीवन को सही ढंग से जी पाता है।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......