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ध्यान रहे...इस रिश्ते में गांठ न लगे



धागे का उपयोग इसी बात में है कि वह सही सूई में पिरोया जाए और उसमें गलत वक्त में गाँठ न लग जाए। सिलते वक्त बिना धागे की सूई चुभने के अलावा कुछ नहीं करेगी और बिना सूई का धागा गठाने में उलझने के सिवाय और क्या कर सकेगा। इसका सीधा संबंध मनुष्य और परमात्मा के रिश्ते से है।
जिन्दगी के धागे में लगी इस गठान को ही ऋषियों ने ग्रंथी कहा है। मनोग्रंथी खुली और उस परमशक्ति से साक्षात्कार हुआ। वो अंशी है और हम उसका अंश हैं। इसीलिए उस ईश्वर की सारी खूबियाँ हमारे भीतर भी हैं। पर इस ग्रंथी के कारण जिसे माया भी कहा गया है, हम उस भगवान् से दूर रह जाते हैं। हम सब एक ऐसा अंगारा बन जाते हैं जो अपने ही ऊपर राख जमाए बैठे हैं। इस कालिख के नीचे हमारा ओज-तेज, प्रकाश, ऊष्मा सब अकारण दबा है। अंगारा पूरी तरह राख में बदल जाए इसके पहले उसमें हलचल कर दें, ध्यान की फूँक से उसे प्रज्वलित कर दिया जाए। कभी-कभी हम व्यावहारिक जीवन में कहते भी हैं-
इसने पूर्वाग्रह की गाँठ बाँध ली है...
ऐसा हमने भी भगवान् के मामले में कर लिया है। धागे में गठान लगा दी। बारीकी से सोचें, गाँठ और धागा एक हैं फिर भी अलग हैं। यदि खोल दें तो गाँठ गायब सिर्फ धागा रह जाएगा। गाँठ यानी जीवन का उलझाव। जीवन के धागे को गठान से मुक्त करते ही परमात्मा मिल जाएगा। हमारी वह यात्रा शुरू हो जाएगी जिसमें हम जीवात्मा से महात्मा, महात्मा से देवात्मा और अन्त में परमात्मा तक पहुँच जाएंगे।

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