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सिर्फ शिक्षा ही सबकुछ नहीं होती, ये गुण भी जरूरी हैं



शिक्षा का महत्व हर युग में रहा है। और इस समय तो विद्या का कोई विकल्प ही नहीं है। निरक्षरता बोझ और अपराध है लेकिन इस बात के लिए सावधान रहा जाए कि विद्या का दुरुपयोग न हो। शिक्षा के साथ सद्गुण होना बड़ा जरूरी है। आज के दौर में विद्या और चरित्र पीठ करके बैठ गए हैं। परीक्षाओं में अच्छे-अच्छे नंबर लाने वाले भी सद्गुण क्या होते हैं यह नहीं जान पा रहे हैं। पढ़ा-लिखा आदमी जब दुर्गुण पाल लेता है तो बहुत खतरनाक हो जाता है।
हम रावण का उदाहरण देख चुके हैं। रावण विद्वान था लेकिन उसने दुर्गुण पाल लिए थे तो समाज आज तक उसकी कीमत चुका रहा है। इस मामले में हनुमानजी अपने चरित्र से एक सुंदर संदेश दे रहे हैं। हनुमानचालीसा की सातवीं चौपाई में उनके लिए लिखा गया है। बिद्यावान गुनी अति चातुर। रामकाज करिबे को आतुर।।
आप विद्वान, गुणी और बहुत चतुर हैं। राम कार्य के लिए आप सदैव उत्सुक और उत्साहित रहते हैं। एक तो हनुमानजी विद्वान हैं, उस पर चतुर भी हैं। कुछ लोग सिर्फ विद्वान होते हैं या फिर सिर्फ गुणी होते हैं, लेकिन हनुमानजी विद्वान, गुणी और चतुर भी हैं।इसी के साथ चतुर भी कैसे हैं, अतिचतुर। आज के जीवन में मनुष्य की सफलता के जो प्रमुख सूत्र हो सकते हैं इन पंक्तियों में तुसलसीदासजी ने उसकी बहुत अच्छी व्याख्या की है।
अनेक उच्चकोटि की विद्वता वालों को हम जुआ, मदिरापान, परस्त्रीसंग, हिंसा या अहंकार जैसे दुर्गुणों में लिप्त देखते हैं। श्रीहनुमत चरित्र से घोषणा है कि पहला गुण है विद्वान होना, दूसरा गुण है व्यक्ति को सद्गुणी भी होना चहिए। तीसरा गुण गोस्वामीजी बताते हैं कि वह चतुर भी हो। केवल विद्वता, गुण इससे संसार में काम नहीं चलता, इन दोनों के साथ अतिचतुरता बहुत आवश्यक है। जिसे कहा जाएगा एक्स्ट्रा क्लेवरनेस।

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