हमारे जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब हमारा कोई परिचित या परिजन गलत रास्ते पर चल पड़ता है और हम भी यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि हमें क्या करना? उस स्थिति में हम भी उसके भटकने के उतने ही बड़े दोषी होते हैं जितना वह स्वयं। क्योंकि हमारा भी यह कर्तव्य होता है कि हम उसे सही रास्ता दिखाएं।
एक पिता के दो बेटे थे। बड़ा बेटा समझदार था जबकि छोटा थोड़ा चंचल था। पिता के पास बहुत संपत्ति थी। जब दोनों बेटे बड़े हुए तो उनके स्वभाव को देखते हुए उनके पिता ने सोचा कि अब इन्में संपत्ति का बंटवारा कर देना चाहिए। छोटे बेटे के हिस्से में जो संपत्ति आई उसे वह ले जाकर शहर में ठिकाने लगा आया और एक दिन कंगाल हो गया। जो बड़ा बेटा था वह गांव में रहा और मेहनत कर अपनी सम्पत्ति को दोगुना कर लिया। एक दिन जब पिता को मालूम हुआ कि छोटा बेटा कंगाल हो गया है तो उसे वापस बुलाया कि अपने पास बहुत संपत्ति है तू वापस आ जा।
बेटा जब वापस आने लगा तो पिता ने उसके स्वागत की बड़ी तैयारी की। जब यह बात बड़े बेटे को पता चली तो उसने कहा पिताजी यह आप क्या कर रहे हैं? मैंने जीवनभर आपकी सेवा की और उसने सारा पैसा खत्म कर दिया। फिर भी आप उसे इतने सम्मान के साथ वापस बुला रहे हैं। तब पिता ने अपने बड़े बेटे से कहा- बेटा जब तू भेड़ चराने जाता है और जब कोई एक भेड़ रास्ता भटक जाती है तो तू उसे ढूंढता है और कंधे पर बैठाकर लाता है। दूसरी भेड़ों को कंधे पर नहीं उठाता क्योंकि वो तो सही रास्ते पर चल रही हैं। बस यही बात है कि वो भटक गया था आज लौट कर आ रहा है इसलिए मैं उसका स्वागत कर रहा हूं।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......