सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गणेश परम चेतना के प्रतिक है

गणेश दिव्यता की निराकार शक्ति है, जिनको भक्तो के लाभ के लिए एक शानदार रूप में प्रकट किया गया है। गन यानि समूह। ब्रह्माण्ड परमानुयो और विभीन उर्जाओ का एक समूह है। इन विभीन उर्जा समूह के ऊपर यदि कोई सर्वोपरि नियम न बन कर रहे तो यह ब्रह्माण्ड अस्त- व्यस्त हो जाएगा। पर्मानुओऔर उर्जा के इन सभी समूहों के अधिपति गणेश है। वोह परमतत्व चेतना है,जो सब में व्याप्त है और इस ब्रह्माण्ड में व्यवस्था लती है।
आदि शंकर ने गणेश के सर तत्व का बार सुंदर वर्णन किया है। हालाँकि गणेश भगवन को हाथी के सर वाले रूप में पूजा जाता है, उनका यह स्वरुप हमे निराकार परब्रह्म रूप की और ले जाने के लिए है। वे अगम, निर्विकल्प, निराकार और एक ही है। अर्थात वे अजन्मे है, गुनातीत है और उस परम चेतना के प्रतिक है जो सर्वव्यापी है। गणेश वोही शक्ति है जिससे इस ब्रह्माण्ड का सृजन हुआ, जिससे सब कुछ प्रकट हुआ और जिसमे यह सब कुछ विलीन हो जाना है। हम सब इस कहानी से परिचित है की गणेश जी कैसे हाथी के सर वाले भगवान् बने। शिव और पारवती उत्सव मना रहे थे, जिसमे पारवती जी मैली हो गई। यह एहसास होने पर वे अपने श्रीर पर लगी मिट्टी को हटाकर उससे एक लरका बना देती है। वह स्नान करने जाती है और लरके को पहरेदारी करने के लिए कहती है। जब शिव लौटते है, वह लरका उन्हें पहचान नहीं पता और उनका रास्ता रोक देता है। तब शिव लरके का सीर काट देते है और अन्दर प्रवेश कर जाते है। पारवती चौक जाती है। वे समझती है की वह उनका बेटा था उसे बचने का निवेदन करती है। शिव अपने सहायको को उत्तर दीशा की और इशारा करते हुए किसी सोते हुए का सीर लाने के लीये कहते है। तब सहायक हाथी का सर लेकर आते है, जिसे शिव जी लरके के धर से जोर्र जेते है इस तरह गणेश की उत्पति होती है।
क्या यह सुने ऐ कुछ अजीब सा है? पारवती के शरीर पर मेल क्यों आया? सब कुछ जानने वाले शिव अपने ही बेटे को क्यों नहीं पहचान सके? शिव जो शान्ति के प्रतिक है, उनमे क्या इतना गुस्सा था की वे अपने ही बेटे का सर कट दे? और गणेश का सर हाथी का क्यों है? इसमे कुछ और गहरा रहस्य छिपा हुआ है। पारवती उत्सव की उर्जा का प्रतिक है। उनका मैला होना इस बात का प्रतिक है की उत्सव के दौरान हम आसानी से राजसिक हो सकते है। मेल अज्ञानता का प्रतिक है और शिव परमशान्ति और ज्ञान के प्रतिक है। गणेश द्वारा शिव का मार्ग रोकने का अर्थ है अज्ञानता ( जो इस सर का गुन है) जो ज्ञान को पहचान नहीं पाई। फिर ज्ञान को अज्ञानता मितानी परी। इसका प्रतिक यही है की शिव ने गणेश के सर को कटा। और हाथी का सर क्यों? ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति दोनों का प्रतिनिधित्व हाथी करता है। हाथी का बार सर बुधिऔर ज्ञान का प्रतिक है। हाथी न तो किसी अवरोध से बचने के लिए घूम कर निकालता है और न ही कोई बढ़ा उसे रोक पातीहै। वह सभी बाधाओं को हटातेहुए सीधे चलता रहता है। गणेश का बार पेट उदारता और पूर्ण स्वीकृति का प्रतिक है। उनका अभय मुद्रा में उठा हाथ संरक्षण का प्रतिक है- घबराओ नहीं- मैं तुम्हारे साथ हु। और उनका दूसरा हाथ निचे की तरफ है और हथेली बाहरकी और, जो कहती है की वह निरन्तर हमें दे रहे है। गणेश की का एक ही दंत है जो की एकाग्रचित होने का प्रतिक है। उनके हाथो में जो उपकरण है उनका भी प्रतिक है। वह अपने हाथो में अंकुश लीये हुए है जो की सजगता का प्रतिक है और पाश है जो नियंत्रण का प्रतीक है। चेतना जागृत होने पर बहुत उर्जा निकलती है जो बिना किसी नियंत्रण के अस्त-व्यस्त हो जायेगी।
और हाथी के सर वाले गणेश की सवारी इतने छोटे से चूहे पर क्यों होता है? यह बात असंगत सी लगती है न? यहाँ भी एक प्रतीक है। जो बंधन बाँध कर रखते है उसे चूहा कुतर- कुतर कर समाप्त कर देता है। चूहा उस मंत्र की भांति है, जो धीरे- धीरे अज्ञान की एक परत को काट कर भेद देता है , और उस परम ज्ञान की और ले जाता है जिसका प्रतिनिधित्व गणेश करते है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं...

इन्सान की जात से ही खुदाई का खेल है.

वाल्टेयर ने कहा है की यदि इश्वर का अस्तित्व नहीं है तो ये जरुरी है की उसे खोज लिया जाए। प्रश्न उठता है की उसे कहाँ खोजे? कैसे खोजे? कैसा है उसका स्वरुप? वह बोधगम्य है भी या नहीं? अनादिकाल से अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के जेहन में कुलबुलाते रहे है और खोज के रूप में अपने-अपने ढंग से लोगो ने इश्वर को परिभाषित भी किया है। उसकी प्रतिमा भी बने है। इश्वर के अस्तित्व के विषय में परस्पर विरोधी विचारो की भी कमी नहीं है। विश्वास द्वारा जहाँ इश्वर को स्थापित किया गया है, वही तर्क द्वारा इश्वर के अस्तित्व को शिद्ध भी किया गया है और नाकारा भी गया है। इश्वर के विषय में सबकी ब्याख्याए अलग-अलग है। इसी से स्पस्ट हो जाता है की इश्वर के विषय में जो जो कुछ भी कहा गया है, वह एक व्यक्तिगत अनुभूति मात्र है, अथवा प्रभावी तर्क के कारन हुई मन की कंडिशनिंग। मानव मन की कंडिशनिंग के कारन ही इश्वर का स्वरुप निर्धारित हुआ है जो व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ समाज और देश-काल सापेक्ष भी है। एक तर्क यह भी है की इश्वर एक अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता है, अतः स्थूल इन्द्रियों से उसे अनुभव नहीं किया जा सकता है। एक तरफ हम इश्वर के अस...