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फैशन बनता बलात्कार ,(सो गई है आत्मा )

आज सर्वाधिक  प्रचलित शब्द है,माडर्न  होना या आधुनिक जीवन जीना..बच्चे ,बूढ़े,युवा,स्त्री -पुरुष सब एक ही दिशा में दौड़ लगते नज़र आते हैं, ऐसा लगता है कि उनको एक ही भय है, कि कहीं हम  इस रेस में पिछड  न जाएँ.यही कारण है,हमारा रहन-सहन,वेशभूषा ,वार्तालाप का ढंग सब बदल रहा है.ग्रामीण जीवन व्यतीत करने वाले भी किसी भी शहरी के समक्ष स्वयं को अपना पुरातन चोला उतारते नज़र आते हैं.ऐसा लगता है कि अपने पुराने परिवेश में रहना कोई अपराध है.
समय के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है,बदलते परिवेश में समय के साथ चलना अनिवार्यता है.भूमंडलीकरण के इस युग में जब “कर लो दुनिया मुट्ठी में “का उद्घोष सुनायी देता है,तो हम स्वयं को किसी शिखर पर खड़ा पाते हैं. आज मध्यमवर्गीय भारतवासी भी फोन ,इन्टरनेट,आधुनिक वस्त्र-विन्यास ,खान-पान ,जीवन शैली को अपना रहा है. वह नयी पीढ़ी के क़दमों के साथ कदम मिलाना चाहता है.आज बच्चों को भूख लगने पर  रोटी का समोसा बनाकर,या माखन पराठा  नहीं दिया जाता,डबलरोटी,पिज्जा,बर्गर ,कोल्ड ड्रिंक दिया जाता है,गन्ने का रस,दही की लस्सी का नाम यदा कदा  ही लिया जाता है.आधुनिकतम सुख-सुविधा,विलासिता के साधन अपनी अपनी जेब के अनुसार सबके घरों में हैं.बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में मोटा डोनेशन देकर पढाये  जा रहे हैं. परन्तु इतना सब कुछ होने पर भी हमारे  विचार वहीँ के वहीँ हैं. फिल्मों से यदि कुछ सीखा है तो किसी लड़की को सड़क पर देखते ही फ़िल्मी स्टाईल में उसपर कोई फब्ती कसना,अवसर मिलते ही उसको अपनी दरिंदगी का शिकार बनाना, ,अपराध के आधुनिकतम तौर तरीके  सीखना ,शराब सिगरेट  में धुत्त रहना आदि आदि ……. और हमारे विचार आज भी वही .पीडिता को ही    अपराधिनी मान लेना (यहाँ तक कि उसके परिजनों द्वारा भी),अंधविश्वासों से मुक्त न हो पाना,लड़की के जन्म को अभिशाप मानते हुए कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप में लिप्त होना,दहेज के लिए भिखारी बन एक सामजिक समस्या उत्पन्न करना आदि आदि .ये कलंक सुशिक्षित  शहरी समाज के माथे के घिनौने दाग हैं.

आज समाचार पत्र में पढ़ा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने देश में घटित बच्चों के सामूहिक हत्याकांड से व्यथित हैं,और कड़े  से कड़े कदम उठाने के लिए योजना बना रहे हैं. और निश्चित रूप से वहाँ  इस घटना की पुनरावृत्ति बहुत शीघ्र नहीं होगी ,दूसरी ओर हमारे देश में  बलात्कार,किसी भी बहिन,बेटी की इज्जत सरेआम नीलाम होने जैसी घटनाएँ आम होती जा रही हैं.जिनमें से अधिकांश पर तो पर्दा डाल दिया जाता है,  जो  राजधानी,कोई भी गाँव ,क़स्बा,महानगर ,छोटे शहर की सीमाओं में बंधी हुई नहीं हैं,सुर्ख़ियों में तब आती है,जब मीडिया की सुर्खी बन जाती है,या फिर किसी वी आई पी परिवार से सम्बन्धित घटना होती है.
rapeपूर्वी उत्तरप्रदेशवासिनी ,देहरादून से पेरामेडिकल की छात्रा ,जो अकेली नहीं अपने मित्र के साथ राजधानी दिल्ली में रात  को 9.30 बजे   चलती बस में सामूहिक बलात्कार ,उत्पीडन का शिकार बनी और  दोनों की बर्बर तरीके से पिटाई के बाद उनको बस  से नीचे फैंक दिया गया.अब लड़की बदतर जीवन कम मौत के दोराहे पर खड़ी है,,जहाँ सर्वप्रथम  तो उसके जीवन का भरोसा नहीं ,यदि मेडिकल सुविधाओं के कारण जीवन बच भी गया तो तन +मन दोनों से ही घायल वो अपना शेष जीवन व्यतीत करने को अभिशप्त होगी.

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