सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Amitabh Bachchan (71) बुढ्ढा होगा तेरा बाप



अंकल सैम यानि इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के बिग बी यानि Amitabh Bachchan जिन्होंने चार्ली चैप्लिन और मरलेन ब्रैंडो जैसी इंटरनेशनल सेलिब्रिटीज को पीछे छोड़ते हुए 2009 में बीबीसी के सर्वे में एक्टर ऑफ द मिलेनियम का अवॉर्ड हासिल किया आज 71 इयर्स के हो गए.


बॉलिवुड में फर्स्ट एंग्री यंग मैन के टाइटिल से नवाजे गए अमिताभ बच्चन को कम बैक किंग भी कहा जा सकता है जिसने हर मुश्किल से लड़ कर बार बार वापसी की है. जब जब लगा की अमिताभ का करियर, उनकी मार्केट खत्म‍ हो गयी है. तब तब एक नए जोश और नए गेटअप के साथ उन्होंने वापसी करके लोगों और अपने क्रिटिक्स  को सरप्राइज किया.

फिल्मों में उनकी एंट्री ही रिजेक्शन के साथ हुई. एक के बाद एक सात फिल्में लाइन से फ्लॉप हुईं और लोगों ने उन्हें हारा हुआ सिपाही डिक्लेयर कर दिया किसी ने कहा की वो बांस की तरह लंबे और पतले हैं उनके जैसे एक्टर का कोई फ्यूचर नहीं है. किसी को उनकी आवाज में दम नहीं नजर आया और किसी को उनकी आंखें बेनूर लगीं लेकिन यही सब चीजें आगे चल कर उनके करियर का प्लस प्वाइंट बनीं.

अपने फादर फेमस पोयट हरिवंश रॉय बच्चन के दिए नाम अमिताभ को उन्होंने एकदम सही प्रूव कर दिया सचमुच वो एक ऐसे एक्टर हैं जिसकी आभा एंडलेस है और आज तक बॉलिवुड उनके टैलेंट से चमक रहा है. 1969 में उन्हों ने सात हिंदुस्तानी से अपने बॉलिवुड करियर शुरूआत की लेकिन सात फ्लॉप के बाद 1971 में हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म आनंद में उन्होंने पहली बार सक्सेज का स्वाद चखा. आनंद में उस दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना हीरो थे. इस फिल्म में उन्हें बेस्ट सर्पोटिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला.

अमिताभ की फर्स्ट सुपरहिट मूवी थी 1973 में रिलीज हुई जंजीर. इसी फिल्मे ने उन्हें स्टाहरडम के साथ एंग्री यंगमैन का टैग दिलवाया. अमिताभ की सक्सेज की जर्नी जब फुलस्पीड पकड़ चुकी थी तभी अचानक फिल्म कुली में हुए जबरदस्त एक्सीडेंट ने उस पर ब्रेक लगा दिया. इस हादसे ने दोबारा अमिताभ को वहीं लाकर खड़ा कर दिया जहां से उन्होंने शुरूआत की थी.


ठीक होने के बाद अमिताभ ने फिल्मों से ब्रेक लिया और अपने चाइल्डहुड फ्रेंड राजीव गांधी की रिक्वेस्ट पर पॉलिटिक्स में हाथ आजमाने चले गए. पर पॉलिटिक्स अमिताभ का जॉनर नहीं था और उसमें वो ना सिर्फ अनसक्सेजफुल रहे बल्कि उन पर बोर्फोस मामले में एलीगेशन भी लगे. जिनमें अभी लास्ट इयर ही उन्हें क्लीन चिट मिली है.

इसके बाद उनकी कमबैक फिल्म शहंशाह तो हिट रही लेकिन उसके बाद ना सिर्फ लाइन से फिल्में फ्लॉप हुईं बल्कि उनकी कंपनी एबीसीएल भी घाटे में चली गयी और वो करीब करीब बैंकरप्ट हो गए. लेकिन अमिताभ फिर वापसी की और सबके मना करने के बावजूद टीवी शो कौन बनेगा करोड़पती का होस्ट बनना एक्सेप्ट किया. शो को जबरदस्त सक्सेज मिली और अमिताभ को लोगों की एक्सेप्टेंस मिली. इससे सहारा लेकर अमित जी ने अपनी एज के अकॉर्डिंग रोल एक्सेप्ट करते हुए फिल्म मोहब्बतें साइन कर ली और उनका करियर फिर दौड़ पड़ा.

अगर फर्स्ट इनिंग्स में जंजीर, नमकहलाल, शोले, कुली, सुहाग, अभिमान, सिलसिला, मिली, मिस्‍टर नटवर लाल, द ग्रेट गैंबलर, अग्निपथ, चुपके-चुपके और लावारिस से उन्होंने अपनी कामयाबी की कहानी लिखी तो मोहब्बतें के बाद ब्‍लैक, बंटी और बबली, कभी खुशी कभी गम, सरकार, सरकार राज, आरक्षण और सत्याग्रह जैसी फिल्मों तक ये सिलसिला जारी है. साथ ही अमिताभ बच्चन आजएक ब्रांड बन चुके हैं जिसके सहारे तमाम प्रोडेक्ट अपनी पब्ल्सिटी कर रहे हैं.टीवी पर कौन बनेगा करोड़पती का सेवेंथ सीजन अमिताभ के कंधों पर ही सक्सेफुल हो रहा है. अब अमिताभ को हॉलिवुड भी अपनी ओर बुला रहा है जिस का प्रूफ है उनकी फर्स्ट हॉलिवुड मूवी द ग्रेट गैट्सबी.
 







ऐसा नहीं है की अमिताभ बच्च‍न की पर्सनल लाइफ इन सब उतार चढ़ावों से खाली रही हो. उनकी जिंदगी में जया भादुड़ी तो आयी हीं जिनसे उन्होंइने 3 जून 1973 को शादी की. फिल्मु गुड्डी के दौरान अमिताभ की जया से मुलाकात हुई और जंजीर फिल्म के दौरान ही उन्होंने शादी करने का डिसीजन लिया. अब दोनों के दो बच्चे हैं, बेटी श्वेता जो एस्कॉर्ट ग्रुप के ज्वॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर निखिल नंदा की वाइफ हैं और बेटा अभिषेक बच्चन जो खुद एक्ट‍र है और और मिस वर्ल्ड रह चुकी एक्ट्रेस ऐश्वर्या रॉय के हसबेंड हैं. 



ऐसा नहीं है की अमिताभ बच्च‍न की पर्सनल लाइफ इन सब उतार चढ़ावों से खाली रही हो. उनकी जिंदगी में जया भादुड़ी तो आयी हीं जिनसे उन्होंइने 3 जून 1973 को शादी की. फिल्मु गुड्डी के दौरान अमिताभ की जया से मुलाकात हुई और जंजीर फिल्म के दौरान ही उन्होंने शादी करने का डिसीजन लिया. अब दोनों के दो बच्चे हैं, बेटी श्वेता जो एस्कॉर्ट ग्रुप के ज्वॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर निखिल नंदा की वाइफ हैं और बेटा अभिषेक बच्चन जो खुद एक्ट‍र है और और मिस वर्ल्ड रह चुकी एक्ट्रेस ऐश्वर्या रॉय के हसबेंड हैं.
 




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं...

इन्सान की जात से ही खुदाई का खेल है.

वाल्टेयर ने कहा है की यदि इश्वर का अस्तित्व नहीं है तो ये जरुरी है की उसे खोज लिया जाए। प्रश्न उठता है की उसे कहाँ खोजे? कैसे खोजे? कैसा है उसका स्वरुप? वह बोधगम्य है भी या नहीं? अनादिकाल से अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के जेहन में कुलबुलाते रहे है और खोज के रूप में अपने-अपने ढंग से लोगो ने इश्वर को परिभाषित भी किया है। उसकी प्रतिमा भी बने है। इश्वर के अस्तित्व के विषय में परस्पर विरोधी विचारो की भी कमी नहीं है। विश्वास द्वारा जहाँ इश्वर को स्थापित किया गया है, वही तर्क द्वारा इश्वर के अस्तित्व को शिद्ध भी किया गया है और नाकारा भी गया है। इश्वर के विषय में सबकी ब्याख्याए अलग-अलग है। इसी से स्पस्ट हो जाता है की इश्वर के विषय में जो जो कुछ भी कहा गया है, वह एक व्यक्तिगत अनुभूति मात्र है, अथवा प्रभावी तर्क के कारन हुई मन की कंडिशनिंग। मानव मन की कंडिशनिंग के कारन ही इश्वर का स्वरुप निर्धारित हुआ है जो व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ समाज और देश-काल सापेक्ष भी है। एक तर्क यह भी है की इश्वर एक अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता है, अतः स्थूल इन्द्रियों से उसे अनुभव नहीं किया जा सकता है। एक तरफ हम इश्वर के अस...