आदत मन से जुड़ी एक विशेष स्थिति को कहा जाता है। और जग जाहिर है कि मन सबसे बड़ा रहस्य का पिटारा है। आदत के बारे में कहा जाता है कि उसे पकड़ा तो जा सकता है लेकिन छोडऩा उतना ही कठिन होता है। आदत से परेशान होकर व्यक्ति संकल्प लेता है कसमें खाता है लेकिन जिस आवेश में आकर उसने कसम खाई थी, उसके शांत होते ही महाचालाक मन फिर से आदत को दोहराने की तरकीब निकाल ही लेता है। हजारों-लाखों में कोई एक होगा जो दृढ़ संकल्प करता भी है और हर हाल में उसे पूरा भी करता है। आदत कितनी ताकतवर होती है यह जानने के लिये आइये चलते हैं एक बेहद छोटी व बहुत सुन्दर कथा की ओर...
ओशो के नाम से विश्वभर में विख्यात महान दार्शनिक, विचारक और संत आचार्य रजनीश के पास एक दुखी और परेशान व्यक्ति आया। उसे देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह लगभग 70-75 साल की आयु पार कर चुका था। मोका मिलते ही वह बड़ा दुखी होकर बोला- ''आचार्य जी! मेने सुना है कि आपने कई लोगों की जिंदगियां बदल दी हैं, मुझ पर भी दया कीजिये। वैसे तो मेरी लगभग पूरी उम्र ही खत्म होने को आई है, लेकिन मैं नहीं चाहता कि इस बोझ को लेकर में मरूं। असल में मेरी समस्या यह है कि मैं भांग-गांजे की लत का शिकार हूं। मैंने इसे छोडऩे की हर संभव कोशिश कर ली लेकिन यह आदत मुझसे छूटने को तैयार ही नहीं है। मुझे पूरे 50 साल हो गए इसे छोडऩे की कोशिश करते-करते, अब तो मैं हार चुका हूं। मरने से पहले मेरी यही इच्छा है कि कम से कम मरने के पहिले तो मैं बेदाग हो जाऊं, किसी तरह इस आदत से छूट जाऊं।''
आचार्य रजनीश उस वृद्ध व्यक्ति की पूरी बात सुनकर मुस्कुराए और बड़े स्नेह व प्रेम से बोले-'' मित्र अगर तुम्हें लगता है कि आदत ने तुम्हें पकड़ रखा है, तुमने आदत को नहीं पकड़ रखा तो फिर कभी कुछ नहीं हो सकता। 50 ही क्या 50 जन्म कोशिश करने के बाद भी तुम किसी आदत से मुक्त नहीं हो पाओगे। क्योंकि तुम सिर्फ उसे छोड़ सकते हो जिसको तुमने पकड़ा हो। अगर तुम्हे लगता है कि आदत ने ही तुम्हे पकड़ रखा तब तो यह आदत की मर्जी पर निर्भर हुआ कि वह चाहे तो तुम्हे छोड़े या न चाहे तो न भी छोड़े।
एक बात और सुन लो कि अगर तुम वाकई मरने से पहले नशे की आदत को छोडऩा चाहते हो तो सबसे पहले तो तुम इस कोशिश को छोड़ो। जो कोशिश तुम पिछले 50 सालों से कर रहे हो उसे छोड़ ही दो तभी कुछ हो सकता है। क्योंकि तुम्हारे मन को नशे से ज्यादा मज़ा तो इस छोडऩे की कोशिश में आने लगा है।
छोडऩा मुश्किल है, तुम छोडऩे की फिक्र छोड़ ही दो। हां पकडऩे पर ध्यान दो तो अवश्य कुछ भला हो सकता है। जो भी कुछ अच्छा हो उसे पकड़ते जाओ। अच्छा पकड़ते-पकड़ते तुम्हे याद ही नहीं रहेगा कि अच्छाई की भीड़ में एक बुराई जाने कबकी पीछे छूट चुकी है।''
आचार्य रजनीश की बातों में उस वृद्ध व्यक्ति का बड़ा कीमती सूत्र हाथ लग गया, वह अपनी आदत छोड पाया या नहीं यह तो वही जाने लेकिन इतना अवश्य है कि वह उस छोडऩे-पकडऩे की उधेड़बुन से उसी वक्त मुक्त हो गया हल्का हो गया। शायद कोई ग्रंथि थी जो आज मिट गई। वह बड़ा प्रशन्न होकर लोट गया।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......