ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती , वो बारिश का पानी स्वर्गीय श्री सुदर्शन फाकिर साहब की लिखी इस गजल ने बहुत प्रसिद्धि पाई,हर व्यक्ति चाहे वह गाता हो या न गाता हो, इस ग़ज़ल को उसने जरुर गुनगुनाया,मन ही मन इन पंक्तियों को कई बार दोहराया. जानते हैं क्यु?क्युकी यह ग़ज़ल जितनी सुंदर गई गई हैं,सुरों से सजाई गाई गई हैं,उससे भी अधिक सुंदर इसे लिखा गया हैं, इसके एक एक शब्द में हर दिल में बसने वाली न जाने कितनी ही बातो ,इच्छाओ को कहा गया हैं। हम में से शायद ही कोई होगा जिसे यह ग़ज़ल पसंद नही आई इसकी पंक्तिया सुनकर उनके साथ गाने और फ़िर कही खो जाने का मन नही हुआ होगा,या वह बचपनs की यादो में खोया नही होगा। बचपन!मनुष्य जीवन की सर्वाधिक सुंदर,कालावधि.बचपन कितना निश्छल जैसे किसी सरिता का दर्पण जैसा साफ पानी,कितना निस्वार्थ जैसे वृक्षो,पुष्पों,और तारों का निस्वार्थ भाव समाया हो, बचपन इतना अधिक निष्पाप,कि इस निष्पापता की कोई तुलना कोई समानता कहने के लिए, मेरे पास शब्द ही नही हैं।
जिन्दगी नाम हैं,हर पल जीने का। रोने का, हँसने का, युही कुछ गाने का। जिन्दगी नाम हैं, लड़ने का,जितने का,हारने का और फ़िर मुस्कुराने का। जिन्दगी नाम हैं उड़ने का,गिरने का और आसमानों पार जाने का । जिन्दगी नाम हैं बहने का ,न थमने का, नदियाँ की तरह बस बहते जाने का।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......