भावनाएं इंसान की कमजोरी होती है लेकिन कभी-कभी यही इमोशंस या भावनाए इंसान की कमजोरी नहीं उसकी ताकत बन जाती है और उसे नया इतिहास लिखने का उत्साह देती हैं। भावनाओं को अपनी कमजोरी या ताकत बनाना आपके हाथ में है और अपना भविष्य बनाना भी।
एक दिन जब महर्षि वाल्मीकि गंगा नदी में स्नान करने के लिए जा रहे थे। तब उन्होने क्रौंच के एक जोड़े को आकाश में उड़ते हुए और एक दुसरे का चुंबन करते समय देखा। महर्षि उन्हे देखकर खुश हो रहे थे लेकिन इतनी देर में एक तीर गुजरा औश्र जोड़े में से एक पक्षी मारा गया। वह जमीन पर गिर गया। तब जोड़े का दुसरा पक्षी विलाप करने लगा। वह अपने साथी के शव के चारों और मंडराने लगा। यह दृश्य देखकर कवि के मन में वेदना और करुणा उमड़ी कि उन्होंने हत्यारे शिकारी से कहा। हे निषाद तु दुष्ट है। तुझमे बिल्कुल भी दया का भाव नहीं है। तेरा हत्यारा हाथ प्रेम देखकर भी नहीं रुका। मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:, यक्रौञचमिथुनादैमवथी: काममोहितम्तभी कवि ने अपने मन में सोचा यह क्या? यह मैं क्या कह गया? इस ढंग से तो मैं इसके पहले तो मैं कभी नहीं बोला था और तब एक देववाणी सुनायी दी। डरो मत यह कविता है जो तुम्हारे मुख से निकल रही है। संसार के कल्याण के लिए राम चरित्र काव्य लिखो। इस प्रकार राम की प्रथम कविता जन्म हुआ।
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......