एक अंग्रेज पादरी का कथन है–‘‘जीवन एक बाज़ी के समान है। हार जीत तो हमारे हाथ में नहीं है, पर बाज़ी का खेलना हमारे हाथ में है।’’ और इसी के साथ यह भी सच है कि हार-जीत का रहस्य बाज़ी के खेल में छिपा है। हम जैसा खेल खेलेंगे, परिणाम भी हमें वैसा ही मिलेगा–यह मानी हुई बात है। लेकिन होता यह है कि खेल के दौरान हम इस रहस्य को भूलकर, अहंकार के वशीभूत हो जाते हैं। हम सोचते हैं कि हमें तो जीत मिलेगी ही। हमको कौन रोक सकता है। लेकिन इस बात के अनेक उदाहरण हैं कि चाहे कोई खेल हो, स्पर्धा हो, मंजिल हो या लक्ष्य हो–जिसके मन में उसकी प्राप्ति के प्रति अहंकार आ गया–उसकी हार अवश्यम्भावी है। बड़े-बड़े सूरमाओं और ज्ञानियों का अहंकार टूटा है और उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा है। इसलिए जीवन में जो जीतना चाहता है उसे उन तमाम कमियों और बुराइयों को दूर करना अनिवार्य होता है, जो हमारे मार्ग को प्रशस्त बनाने में बाधक बनती हैं।
वास्तव में जीवन के हर कदम पर हमसे कुछ अपेक्षाएं होती हैं। ये अपेक्षाएं ही हमारे जीवन-पथ को सुगम और सरल बनाती हैं’’ और हम इन्हीं के आधार पर जीत या विजय हासिल करते हैं। जीवन-पथ पर अग्रसर होने से पूर्व यह बहुत आवश्यक है कि आपके जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो। एक विद्वान का कहना है कि ‘‘जीवन-पथ पर आपका लक्ष्य, आपका सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त होना चाहिए। जीवन में उसकी सत्ता सर्वोपरि होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही आपकी शक्ति बढ़ सकेगी और परिणामतः आपके जीवन की गाड़ी आगे बढ़ती जाएगी। जो व्यक्ति अपना लक्ष्य निश्चित कर लेता है और उसके लिए सदा प्रयत्नशील रहता है, तो उसमें एक ऐसी शक्ति पैदा हो जाती है जिसे हम रचनात्मक, क्रियात्मक अथवा निर्माणात्मक सृजन शक्ति कह सकते हैं। ऐसी शक्ति वाला व्यक्ति ही कर्मठ कहलाता है। लेकिन उसके सामने उसका स्पष्ट लक्ष्य होना चाहिए। क्योंकि जब तक वह व्यक्ति एकनिष्ठ होकर अपने मन को किसी एक ही बिन्दु पर एकाग्र नहीं करता, तब तक उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता।’’
जीवन-संघर्ष में जीत उसी की होती है जो एकाग्र-मन में काम करता है। कारण यह है कि सृजन के लिए एकाग्र-मन का होना आवश्यक है। यदि मन में भय, शंका आदि ने घर किया हुआ है तो एकाग्रता ठीक से नहीं हो सकती। इसलिए भय, चिंता या शंका आदि को तुरंत मन से निकाल फेंकना चाहिए। तभी आप संतुलित मन से काम कर सकेंगे और तभी एकाग्रता भी संभव होगी।
आज अनेक युवक ‘शार्टकट’ अपनाकर सफलता प्राप्त करना चाहते हैं। वे जीवन की हर बाज़ी फटाफट जीतना चाहते हैं। पर उन्हें अंत में असफलता ही मिलती है। इसका कारण है उनका उतावलापन या जल्दबाजी। जो लोग आधी अधूरी शिक्षा के बल पर जीतना या सफल होना चाहते हैं-उन्हें अंत में निराशा ही हाथ लगती है। इसलिए धैर्य में काम करें। उचित शिक्षा लें और कदम-कदम आगे बढ़ें।
जीवन संघर्ष में जीतने और सफल होने के यही मूलमंत्र हैं। आप भी उन लोगों की तरह जीवन-पथ पर बढ़िये, जो प्रगति के पथ पर सदा बढ़ते रहे और कभी राह में रुके नहीं। वे ही जीते हैं, उन्हें ही सफलता मिली है। आपकी भी जीत होगी, आप भी सफल होंगे। अपना आत्मविश्वास बनाए रखिए। आपका आत्मविश्वास जैसे-जैसे जागृत होगा, जीत की मंजिल वैसे-वैसे प्रशस्त होगी और आप जीतेंगे। यह विश्वास सदा मन में बनाकर रखिए। अपनी शक्तियों को पहचानिए। उनको जागृत कीजिए। जीत आपकी होगी।
वास्तव में जीवन के हर कदम पर हमसे कुछ अपेक्षाएं होती हैं। ये अपेक्षाएं ही हमारे जीवन-पथ को सुगम और सरल बनाती हैं’’ और हम इन्हीं के आधार पर जीत या विजय हासिल करते हैं। जीवन-पथ पर अग्रसर होने से पूर्व यह बहुत आवश्यक है कि आपके जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो। एक विद्वान का कहना है कि ‘‘जीवन-पथ पर आपका लक्ष्य, आपका सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त होना चाहिए। जीवन में उसकी सत्ता सर्वोपरि होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही आपकी शक्ति बढ़ सकेगी और परिणामतः आपके जीवन की गाड़ी आगे बढ़ती जाएगी। जो व्यक्ति अपना लक्ष्य निश्चित कर लेता है और उसके लिए सदा प्रयत्नशील रहता है, तो उसमें एक ऐसी शक्ति पैदा हो जाती है जिसे हम रचनात्मक, क्रियात्मक अथवा निर्माणात्मक सृजन शक्ति कह सकते हैं। ऐसी शक्ति वाला व्यक्ति ही कर्मठ कहलाता है। लेकिन उसके सामने उसका स्पष्ट लक्ष्य होना चाहिए। क्योंकि जब तक वह व्यक्ति एकनिष्ठ होकर अपने मन को किसी एक ही बिन्दु पर एकाग्र नहीं करता, तब तक उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता।’’
जीवन-संघर्ष में जीत उसी की होती है जो एकाग्र-मन में काम करता है। कारण यह है कि सृजन के लिए एकाग्र-मन का होना आवश्यक है। यदि मन में भय, शंका आदि ने घर किया हुआ है तो एकाग्रता ठीक से नहीं हो सकती। इसलिए भय, चिंता या शंका आदि को तुरंत मन से निकाल फेंकना चाहिए। तभी आप संतुलित मन से काम कर सकेंगे और तभी एकाग्रता भी संभव होगी।
आज अनेक युवक ‘शार्टकट’ अपनाकर सफलता प्राप्त करना चाहते हैं। वे जीवन की हर बाज़ी फटाफट जीतना चाहते हैं। पर उन्हें अंत में असफलता ही मिलती है। इसका कारण है उनका उतावलापन या जल्दबाजी। जो लोग आधी अधूरी शिक्षा के बल पर जीतना या सफल होना चाहते हैं-उन्हें अंत में निराशा ही हाथ लगती है। इसलिए धैर्य में काम करें। उचित शिक्षा लें और कदम-कदम आगे बढ़ें।
जीवन संघर्ष में जीतने और सफल होने के यही मूलमंत्र हैं। आप भी उन लोगों की तरह जीवन-पथ पर बढ़िये, जो प्रगति के पथ पर सदा बढ़ते रहे और कभी राह में रुके नहीं। वे ही जीते हैं, उन्हें ही सफलता मिली है। आपकी भी जीत होगी, आप भी सफल होंगे। अपना आत्मविश्वास बनाए रखिए। आपका आत्मविश्वास जैसे-जैसे जागृत होगा, जीत की मंजिल वैसे-वैसे प्रशस्त होगी और आप जीतेंगे। यह विश्वास सदा मन में बनाकर रखिए। अपनी शक्तियों को पहचानिए। उनको जागृत कीजिए। जीत आपकी होगी।
APKA BLOG MERE LIYE BAHUT UPAYOGI HUA HAI.PRRSONALITY DEVELOPMENT KE CLASS ME ISKI CHARCHA KI. THANKS
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