एक
समय था जब रिश्ते दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए होते थे। फिर वक्त बदला,
रिश्ते साझा लाभ के लिए होने लगे और अब वक्त आ गया है, जब निज हित रिश्तों
पर हावी हो गया है।
सार्वजनिक स्थान पर जब किसी काम के लिए कतार लगती है तो कुछ लोग बीच में घुसने की कोशिश कर रहे होते हैं और जो नियम से खड़े रहते हैं, वे आक्रोश व्यक्त करते हैं।
यह एक सामान्य दृश्य है। कतार में न लगना या पंक्ति तोड़कर आगे जाना कुछ लोगों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन जाता है। आजकल घरों में भी ऐसे कतार वाले दृश्य देखने को मिलते हैं। हर सदस्य दूसरे से जल्दी में है। वक्त आने पर धक्का भी दे रहा है।
परंपराओं की पंक्ति अहंकार के धक्के से तोड़ी जा रही है। लोगों ने घर के बाहर और घर के भीतर के शिष्टाचार की परिभाषा बदल दी है। घर के भीतर अपने ही लोगों के प्रति और उनकी जरूरतों के लिए न तो संवेदनशीलता बचाई जा रही है और न ही जिम्मेदारी निभाई जा रही है।
हमें एक बात समझनी चाहिए कि सार्वजनिक जीवन और पारिवारिक जीवन में एक फर्क होता है माताओं, बहनों की उपस्थिति। प्रकृति ने महिलाओं में ऐसे गुण और आकर्षण को मिलाया है कि उनकी मौजूदगी मात्र से ही वातावरण और हमारे आसपास एक अनदेखा सा अनुशासन आ जाता है।
कुल मिलाकर यह स्त्री की उपस्थिति का आभास है, चाहे वह पत्नी के रूप में हो या और कोई रिश्ते से। उन्हीं की मौजूदगी में घर में शिष्टाचार के अर्थ बदल जाते हैं। यह नियामत प्रकृति ने पुरुषों को नहीं दी है।
हमने देखा होगा सार्वजनिक स्थल पर यदि स्त्री मौजूद हो तो लोगों के तौर-तरीके और नीयत बदल जाती है। वैसा ही घर में होता है। इनकी मौजूदगी घर में प्रेमपूर्ण वातावरण बनाती है। इसलिए परिवारों में शिष्टाचार रिश्तों की दृष्टि से निभाए जाने चाहिए।
सार्वजनिक स्थान पर जब किसी काम के लिए कतार लगती है तो कुछ लोग बीच में घुसने की कोशिश कर रहे होते हैं और जो नियम से खड़े रहते हैं, वे आक्रोश व्यक्त करते हैं।
यह एक सामान्य दृश्य है। कतार में न लगना या पंक्ति तोड़कर आगे जाना कुछ लोगों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन जाता है। आजकल घरों में भी ऐसे कतार वाले दृश्य देखने को मिलते हैं। हर सदस्य दूसरे से जल्दी में है। वक्त आने पर धक्का भी दे रहा है।
परंपराओं की पंक्ति अहंकार के धक्के से तोड़ी जा रही है। लोगों ने घर के बाहर और घर के भीतर के शिष्टाचार की परिभाषा बदल दी है। घर के भीतर अपने ही लोगों के प्रति और उनकी जरूरतों के लिए न तो संवेदनशीलता बचाई जा रही है और न ही जिम्मेदारी निभाई जा रही है।
हमें एक बात समझनी चाहिए कि सार्वजनिक जीवन और पारिवारिक जीवन में एक फर्क होता है माताओं, बहनों की उपस्थिति। प्रकृति ने महिलाओं में ऐसे गुण और आकर्षण को मिलाया है कि उनकी मौजूदगी मात्र से ही वातावरण और हमारे आसपास एक अनदेखा सा अनुशासन आ जाता है।
कुल मिलाकर यह स्त्री की उपस्थिति का आभास है, चाहे वह पत्नी के रूप में हो या और कोई रिश्ते से। उन्हीं की मौजूदगी में घर में शिष्टाचार के अर्थ बदल जाते हैं। यह नियामत प्रकृति ने पुरुषों को नहीं दी है।
हमने देखा होगा सार्वजनिक स्थल पर यदि स्त्री मौजूद हो तो लोगों के तौर-तरीके और नीयत बदल जाती है। वैसा ही घर में होता है। इनकी मौजूदगी घर में प्रेमपूर्ण वातावरण बनाती है। इसलिए परिवारों में शिष्टाचार रिश्तों की दृष्टि से निभाए जाने चाहिए।
टिप्पणियाँ
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Aap sabhi bhaiyo & bahno se anurodh hai ki aap sabhi uchit comment de............
jisse main apne blog ko aap sabo ke samne aur acchi tarah se prastut kar saku......