सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अग्निपरीक्षा में सफल हुई अयोध्या

अयोध्या : राम की प्रिय अयोध्या ने गुरुवार को वही अग्नि परीक्षा दी, जो कभी मर्यादा पुरुषोत्ताम की अर्धांगिनी सीता को देनी पड़ी थी। इस अग्निपरीक्षा के दौरान अयोध्या बेहद कश्मकश से गुजरी। मंदिर-मस्जिद विवाद के फैसले को लेकर पूरी दुनिया की टकटकी जिस अवधपुरी पर लगी थी, वह खुद इस निर्णय को लेकर बेहद ऊहापोह की स्थिति में थी। इस ऐतिहासिक फैसले को जानने के लिए यदि रामनगरी अपनी उत्सुकता को दबाये बैठी थी, तो उसके अंजाम को लेकर कुछ संशकित और सहमी भी दिखी। दोपहर के कुछ घंटे तो ऐसे गुजरे मानो धर्मनगरी में जीवनस्पंदन ही रुक गया हो। छावनी में तब्दील हो चुकी साकेतपुरी ने शाम को अदालत का फैसला आने के बाद राहत की सांस ली और उसकी खोयी हुई चेतना जैसे वापस लौटी।

अदालत के फैसले को लेकर फैली आशंकाओं के मद्देनजर अयोध्या में गुरुवार की सुबह से ही सन्नाटा था। पक्का घाट पर पंडे अदालत के फैसले को लेकर गुंफ्तगू में मशगूल थे, तो बगल में स्थित तुलसीदास घाट पर सिर्फ फैजाबाद और पड़ोस के सुल्तानपुर जिले के चंद श्रद्धालु पिंडदान करते नजर आये। पक्का घाट के तीर्थ पुरोहित सूरज लाल पांडेय ने बताया कि तीर्थयात्रियों को लेकर आने वाली बसें आना तो दूर, फैजाबाद रेलवे स्टेशन से उन्हें टेम्पो वाले भी अयोध्या लाने से इनकार कर रहे हैं। अमूमन सुबह ही खुल जाने वाली दुकानों में से अधिकांश बंद थीं। रामकोट इलाके में पसरा सन्नाटा अयोध्या की व्यथा बयां कर रहा था। दोपहर 12 बजे मणिराम दास जी की छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास अपने आश्रम में भजन कीर्तन में तल्लीन दिखे, तो दिगम्बर अखाड़े के महंत सुरेश दास अयोध्या विवाद से संबंधित न्यायालय के दस्तावेजों में खोये हुए। दोपहर में हनुमानगढ़ी में हो रहे भजन-कीर्तन के स्वर अयोध्या के नीरस वातावरण में सुखद तब्दीली घोल रहे थे। बावजूद इसके रामनगरी सिहरी हुई थी।

सशंकित अयोध्या तब और सहम गई जब दोपहर दो बजे यहां के मुख्य मार्ग पर पीएसी और रैपिड एक्शन फोर्स का फ्लैगमार्च हुआ। दोपहर 3.30 बजे फैसले की घड़ी का समय आते मानो पूरी रामनगरी में जैसे अघोषित क‌र्फ्यू लग गया हो। इस विस्मयकारी सन्नाटे के बीच कारसेवकपुरम में बने भारत कल्याण प्रतिष्ठान भवन के एक कमरे में साधुओं की मंडली जमा है। कमरे के एक कोने में लगे टीवी पर खबरिया चैनल चालू है। सामने की दीवार से लगे पलंग पर पद्मासन की मुद्रा में बैठे रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल टीवी स्क्रीन पर टकटकी लगाये देख रहे हैं। बगल में बिछे पलंग पर रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य और दिगम्बर अखाड़ा के महंत सुरेश दास, बड़ा भक्तमाल के महंत व विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के वरिष्ठ सदस्य कौशल किशोर दास और श्री रामवल्लाभाचार्य के अधिकारी राजकुमार दास बैठे हैं। एक कुर्सी पर विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्ताम नारायण सिंह और सामने जमीन पर बिछे गद्दे पर अयोध्या के विधायक लल्लू सिंह बैठे हैं। सभी के चेहरों से प्रस्फुटित होता घोर उत्सुकता का भाव। शाम के लगभग साढ़े चार बजे जैसे ही टीवी पर अदालत का सार्वजनिक किया जाता है, कमरे में मौजूद साधु मंडली हर्ष से तालियां बजाती है। राजकुमार दास उछलकर उठते हैं और महंत नृत्य गोपाल दास के चरणों में शीश नवाते हैं।

उधर, यहां के पांजी टोला मोहल्ले में बीते कई दिनों से मीडियाकर्मियों के आकर्षण का केंद्र रहे अयोध्या विवाद के पक्षकार मोहम्मद हाशिम अंसारी के घर का दरवाजा गुरुवार को सुबह से ही बंद था। हरे रंग का यह दरवाजा बीच-बीच में खुलता और फिर बंद हो जाता। अपराह्न 3.30 बजे से उनके घर के बाहर मीडियाकर्मी जुटने लगे। अदालत का फैसला आने के बाद मीडियाकर्मियों के इसरार पर हाशिम घर से बाहर निकले और कहा कि वह इस फैसले का स्वागत करते हैं और विवाद को यहीं खत्म करना चाहते हैं। इस मुद्दे को वह राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देंगे।

फैसले का हल्ला हो जाने के बाद भी अयोध्या शांत दिखी और हालात पर पैनी निगाह रखे प्रशासन ने शहर की सुरक्षा व्यवस्था को कसे रखा। शाम ढलते-ढलते नि:स्पंद अयोध्या की खोई ऊर्जा फिर वापस आयी। घरों में दुबके अयोध्यावासी सड़कों पर निकले, दुकानें भी खुलीं, लेकिन राम की नगरी ने मर्यादा पुरुषोत्ताम के कहे पर अमल करते हुए समभाव का परिचय दिया। वातावरण में न कहीं हर्षातिरेक दिखा और न ही विषाद।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपने ईगो को रखें पीछे तो जिदंगी होगी आसान

आधुनिक युग में मैं(अहम) का चलन कुछ ज्यादा ही चरम पर है विशेषकर युवा पीढ़ी इस मैं पर ज्यादा ही विश्वास करने लगी है आज का युवा सोचता है कि जो कुछ है केवल वही है उससे अच्छा कोई नहीं आज आदमी का ईगो इतना सर चढ़कर बोलने लगा है कि कोई भी किसी को अपने से बेहतर देखना पसंद नहीं करता चाहे वह दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई बिजनेस पार्टनर या फिर कोई भी अपना ही क्यों न हों। आज तेजी से टूटते हुऐ पारिवारिक रिश्तों का एक कारण अहम भवना भी है। एक बढ़ई बड़ी ही सुन्दर वस्तुएं बनाया करता था वे वस्तुएं इतनी सुन्दर लगती थी कि मानो स्वयं भगवान ने उन्हैं बनाया हो। एक दिन एक राजा ने बढ़ई को अपने पास बुलाकर पूछा कि तुम्हारी कला में तो जैसे कोई माया छुपी हुई है तुम इतनी सुन्दर चीजें कैसे बना लेते हो। तब बढ़ई बोला महाराज माया वाया कुछ नहीं बस एक छोटी सी बात है मैं जो भी बनाता हूं उसे बनाते समय अपने मैं यानि अहम को मिटा देता हूं अपने मन को शान्त रखता हूं उस चीज से होने वाले फयदे नुकसान और कमाई सब भूल जाता हूं इस काम से मिलने वाली प्रसिद्धि के बारे में भी नहीं सोचता मैं अपने आप को पूरी तरह से अपनी कला को समर्पित कर द...

सीख उसे दीजिए जो लायक हो...

संतो ने कहा है कि बिन मागें कभी किसी को सलाह नही देनी चाहिए। क्यों कि कभी कभी दी हुई सलाह ही हमारे जी का जंजाल बन जाती है। एक जंगल में खार के किनारे बबूल का पेड़ था इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी जिस पर बया का घोंसला था। एक दिन आसमान में काले बादल छाये हुए थे और हवा भी अपने पूरे सुरूर पर थी। अचानक जोरों से बारिश होने लगी इसी बीच एक बंदर पास ही खड़े सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया उसने पेड़ के पत्तों में छिपकर बचने की बहुत कोशिश की लेकिन बच नहीं सका वह ठंड से कांपने लगा तभी बया ने बंदर से कहा कि हम तो छोटे जीव हैं फिर भी घोंसला बनाकर रहते है तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो फिर भी इधर उधर भटकते फिरते हो तुम्हें भी अपना कोई ठिकाना बनाना चाहिए। बंदर को बया की इस बात पर जोर से गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया और उस डाली को जोर जोर से हिलाने लगा जिस पर बया का घोंसला बना था। बंदर ने डाली को हिला हिला कर तोड़ डाला और खार में फेंक दिया। बया अफसोस करके रह गया। इस सारे नजारे को दूर टीले पर बैठा एक संत देख रहे थे उन्हें बया पर तरस आने लगा और अनायास ही उनके मुं...

इन्सान की जात से ही खुदाई का खेल है.

वाल्टेयर ने कहा है की यदि इश्वर का अस्तित्व नहीं है तो ये जरुरी है की उसे खोज लिया जाए। प्रश्न उठता है की उसे कहाँ खोजे? कैसे खोजे? कैसा है उसका स्वरुप? वह बोधगम्य है भी या नहीं? अनादिकाल से अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के जेहन में कुलबुलाते रहे है और खोज के रूप में अपने-अपने ढंग से लोगो ने इश्वर को परिभाषित भी किया है। उसकी प्रतिमा भी बने है। इश्वर के अस्तित्व के विषय में परस्पर विरोधी विचारो की भी कमी नहीं है। विश्वास द्वारा जहाँ इश्वर को स्थापित किया गया है, वही तर्क द्वारा इश्वर के अस्तित्व को शिद्ध भी किया गया है और नाकारा भी गया है। इश्वर के विषय में सबकी ब्याख्याए अलग-अलग है। इसी से स्पस्ट हो जाता है की इश्वर के विषय में जो जो कुछ भी कहा गया है, वह एक व्यक्तिगत अनुभूति मात्र है, अथवा प्रभावी तर्क के कारन हुई मन की कंडिशनिंग। मानव मन की कंडिशनिंग के कारन ही इश्वर का स्वरुप निर्धारित हुआ है जो व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ समाज और देश-काल सापेक्ष भी है। एक तर्क यह भी है की इश्वर एक अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता है, अतः स्थूल इन्द्रियों से उसे अनुभव नहीं किया जा सकता है। एक तरफ हम इश्वर के अस...