ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश कुदरती तौर पर मुझ में भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, पर मेरा ज़िंदा रहना एक शर्त है। मैं कैद होकर या पाबंद होकर ज़िंदा रहना नहीं चाहता। आज मेरा नाम हिंदुस्तानी इंकलाब का निशान बन चुका है और इंकलाब पसंद पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊँचा कर दिया है। इतना ऊँचा कि ज़िंदा रहने की सूरत में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियां लोगों के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का परचम कमज़ोर पड जायेगा। लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हँसते - हँसते फाँसी पाने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनाने की आरज़ू किया करेंगी औऱ देश के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इंपीरियलिस्म ( साम्राज्यवादी ) की तमाम शैतानी ताकतों के वश की बात नहीं होगी। हाँ, एक ख़्याल चुटकी लेता है। देश और इंसानियत के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ हिस्सा भी पूरा नहीं कर पाया। इसके अलावा फाँसी से बचने के लिए मेरे दिमाग में कभी कोई लालच नहीं आया। मुझसे ज़्यादा ख़ुशक...
जिन्दगी नाम हैं,हर पल जीने का। रोने का, हँसने का, युही कुछ गाने का। जिन्दगी नाम हैं, लड़ने का,जितने का,हारने का और फ़िर मुस्कुराने का। जिन्दगी नाम हैं उड़ने का,गिरने का और आसमानों पार जाने का । जिन्दगी नाम हैं बहने का ,न थमने का, नदियाँ की तरह बस बहते जाने का।